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शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान नहीं, चरित्र और समाज सेवा की भावना भी होनी चाहिए: राष्ट्रपति

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नैनीताल। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मंगलवार को कहा कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की आधारशिला होती है। इसका उद्देश्य केवल बौद्धिक और कौशल विकास नहीं बल्कि नैतिक बल और चरित्र निर्माण भी होना चाहिए।

उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कुमाऊं विश्वविद्यालय के 20वें दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि शिक्षा हमें आत्मनिर्भर बनाती है, साथ ही विनम्रता और समाज व देश के विकास में योगदान देना भी सिखाती है। उन्होंने शिक्षा को वंचित वर्गों की सेवा और राष्ट्र निर्माण के कार्य में समर्पित करने का आह्वान किया। यही सच्चा धर्म है, जो उन्हें सही अर्थों में आनंद और संतोष देगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। सरकार निरंतर प्रगति के लिए कई नीतिगत पहल कर रही है, जिससे युवाओं के लिए नए अवसर बन रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों को युवाओं को इन अवसरों का सदुपयोग करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि हिमालय जीवनदायिनी संसाधनों के लिए जाना जाता है इसलिए इनका संरक्षण और संवर्धन सभी की ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है और इसमें युवाओं की अहम भूमिका है।

इससे पहले राष्ट्रपति ने नैनीताल स्थित नैना देवी मंदिर में पूजा-अर्चना की और कैंचीधाम स्थित श्री नीम करौली बाबा आश्रम में दर्शन किए।

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