राजस्थान की तपती धरती पर एक बार फिर लोकतंत्र, समरसता और सामाजिक समरसता की गूंज सुनाई देने वाली है। कुछ ही देर में बायतु विधायक हरीश चौधरी का काफिला बाड़मेर के सर्किट हाउस से रवाना होगा। उनके नेतृत्व में सैकड़ों वाहनों का यह विशाल काफिला जैसलमेर जिले के ऐतिहासिक और सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक बासनपीर गांव की ओर कूच करेगा।
'गांधी रामधुन का कार्यक्रम'
बासनपीर में आज सर्वधर्म प्रार्थना और गांधी रामधुन का कार्यक्रम प्रस्तावित है, जो न केवल सांप्रदायिक एकता का संदेश देगा, बल्कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप भी माना जा रहा है। हरीश चौधरी के आह्वान पर उनके हजारों समर्थक जुटने लगे हैं। स्थानीय सांसद उम्मेदराम बेनीवाल, पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी, पूर्व विधायक मदन प्रजापत और पदमाराम मेघवाल समेत कई कांग्रेस नेता भी इस कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे, जो इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बनेंगे।
प्रशासन ने बासनपीर में धारा 163 लागू की
बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर ज़िला प्रशासन ने कड़े सुरक्षा प्रबंध किए हैं। बासनपीर में धारा 163 लागू कर दी गई है ताकि कानून-व्यवस्था बनी रहे और कार्यक्रम शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो सके और कोई अप्रिय घटना न घटे। प्रशासन ने काफिले की सुरक्षा सुनिश्चित की है। इस यात्रा को सिर्फ़ राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखना सीमित दृष्टिकोण होगा। यह एक सामाजिक संदेश, सांस्कृतिक स्मृति और एकता के एक नए अध्याय की शुरुआत भी है। हरीश चौधरी ने इसे 'मोहब्बत का पैगाम' नाम दिया है।
बासनपीर में ही छतरियाँ तोड़ दी गईं
10 जुलाई को जैसलमेर ज़िले के बासनपीर जूनी गाँव में पुरानी छतरियों के पुनर्निर्माण और मरम्मत का काम चल रहा था। इस दौरान बासनपीर जूनी गाँव की आबादी के सैकड़ों पुरुष, महिलाएँ और बच्चे इकट्ठा हो गए। उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाकर छतरियों के निर्माण का विरोध किया। भीड़ ने अवैध रूप से इकट्ठा होकर पुलिस बल, प्रशासनिक कर्मचारियों और अधिकारियों पर पथराव किया। इतना ही नहीं, उन्होंने उन्हें घेरकर पत्थरों और लाठियों से भी पीटा। इससे गाँव में माहौल तनावपूर्ण हो गया। इस घटना के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी। गहन जाँच के बाद जैसलमेर पुलिस ने मुख्य षड्यंत्रकारी हासम खान समेत कुल 23 आरोपियों को हिरासत में लिया और पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
1835 में हुई थी छतरियों का निर्माण
इन छतरियों का निर्माण 1835 में तत्कालीन महारावल गजसिंह ने करवाया था। 1828 में जैसलमेर और बीकानेर के बीच हुए युद्ध में जैसलमेर की ओर से भाग लेते हुए वीर झाझड़ रामचंद्र सोडा ने वीरगति प्राप्त की थी, उनकी स्मृति में यह छतरी बनवाई गई थी। हदूद जी पालीवाल ने गाँव में एक तालाब खुदवाया था, इसलिए उनके लिए भी एक छतरी बनवाई गई थी।
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