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भारत-पाक सीमा पर स्थित मुनाबाव का शिव मंदिर: आस्था, परंपरा और सुरक्षा का संगम

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भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे बाड़मेर जिले का मुनाबाव गांव सिर्फ सामरिक दृष्टि से नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। यहां स्थित शिव मंदिर वर्षों से एक आस्था का केंद्र बना हुआ है, जहां पाकिस्तान आने-जाने वाले हिंदू यात्री शीश नवाकर अपनी यात्रा की शुरुआत करते रहे हैं।

यह मंदिर न केवल स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय है, बल्कि इसका सीधा संबंध भारत-पाक विभाजन, सीमावर्ती रिश्तों और थार एक्सप्रेस जैसी ऐतिहासिक रेल सेवा से भी जुड़ा है। यही कारण है कि यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और भावनात्मक स्मृतियों का केंद्र भी बन चुका है।

हर हर महादेव के उद्घोष के साथ सीमा की रक्षा

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान जब भारतीय सेना और बीएसएफ के जवान सीमाओं की ओर बढ़ते थे, तो वे इस मंदिर के सामने “हर हर महादेव” के जयघोष के साथ कूच करते थे। यह मंदिर जवानों का मनोबल बढ़ाने और धार्मिक संबल देने का केंद्र बन गया था। यहां रुककर वे भगवान शिव से सुरक्षा, विजय और साहस की कामना करते थे।

थार एक्सप्रेस और यात्रियों की आस्था

आजादी से पहले और फिर थार एक्सप्रेस के पुनः संचालन के दौरान भी यह मंदिर बेहद खास बन गया। थार एक्सप्रेस जब मुनाबाव अंतरराष्ट्रीय रेलवे स्टेशन से होकर चलती थी, तो पाकिस्तान से भारत आने वाले यात्री या भारत से पाकिस्तान जाने वाले हिंदू श्रद्धालु इस मंदिर को दूर से नमन करते थे।

रेलवे स्टेशन के ठीक भीतर से ही मंदिर दिखाई देता था और मुसाफिर ट्रेन से झांकते हुए शिवजी के दर्शन कर यात्रा की कुशलता की कामना करते थे। यह एक अलिखित परंपरा थी, जो वर्षों तक चली और आज भी स्मृतियों में जीवित है।

आज भी कायम है श्रद्धा

हालांकि थार एक्सप्रेस का संचालन अब बंद हो चुका है, लेकिन मुनाबाव का यह शिव मंदिर आज भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है। सीमावर्ती गांवों के लोग, सुरक्षा बलों के जवान, और कभी-कभी पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी भी जब इस रास्ते से गुजरते हैं, तो मंदिर में शीश नवाना नहीं भूलते।

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