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म्यांमार: बीबीसी ने भूकंप प्रभावित इलाक़े मांडले में क्या देखा?

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BBC म्यांमार की सैन्य सरकार के डर के कारण लोग पत्रकारों से बात करने से हिचकिचा रहे थे.

चेतावनी: इस लेख के कुछ अंश पाठकों को विचलित कर सकते हैं.

म्यांमार में पिछले दिनों आए भूकंप की तबाही का भयानक मंज़र मांडले की सड़कों पर धीरे-धीरे साफ़ दिखने लगा है.

हम जिस भी गली में मुड़े, ख़ासकर शहर के उत्तरी और मध्य के हिस्सों में, वहाँ क्षतिग्रस्त इमारतें दिखीं और कई इमारतें मलबे के ढेर में तब्दील हो चुकी थीं.

हमने जितनी भी इमारतें देखीं, उनकी कम से कम एक दीवार पर दरार पड़ी हुई थी, जिससे उन इमारतों के अंदर जाना बेहद ख़तरनाक था. शहर के मुख्य अस्पताल में मरीजों का इलाज अस्पताल की इमारत के बाहर ही किया जा रहा था.

म्यांमार की सैन्य सरकार ने कहा था कि वह भूकंप के बाद किसी भी विदेशी पत्रकार को देश में घुसने की अनुमति नहीं देगी, इसलिए हम अंडरकवर गए. हमें बहुत सावधानी के साथ काम करना पड़ा क्योंकि वहां जगह-जगह पर मुखबिर और ख़ुफिया एजेंट मौजूद थे, जो आम लोगों पर नज़र रखते हैं.

हमने देखा कि इस विनाशकारी आपदा के बाद लोगों को बहुत कम मदद मिल रही थी.

image BBC

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image BBC अपने बेटे के इंतज़ार में एक मां image BBC नान सिन हेन का 21 साल का बेटा पांच मंजिला इमारत के गिरने के बाद से लापता है.

41 साल की नान सिन हेन ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि वह ज़िंदा है, भले ही इसकी संभावना कम हो."

नान सिन लगातार पिछले पांच दिनों से एक गिरी हुई पांच मंजिला इमारत के सामने अपने बेटे का इंतज़ार कर रहीं थीं.

उनका 21 साल का बेटा साई हान फा एक मज़दूर है जो उस इमारत में इंटीरियर का काम कर रहा था. वो इमारत पहले एक होटल थी और जिसे ऑफिस में बदला जा रहा था.

नान सिन कहती हैं, "अगर वो उसे आज निकाल लेंगे, तो उसके बचने की उम्मीद बनी रहेगी."

जब 7.7 तीव्रता का भूकंप आया, तो इमारत का निचला हिस्सा धंस गया और ऊपरी हिस्सा सड़क की ओर झुक गया था. ऐसा लग रहा था जैसे इमारत कभी भी गिर सकती है.

साई हान फा और चार अन्य मज़दूर अंदर फंसे हुए थे.

बचाव कार्य कहां तक पहुंचा image BBC तपती धूप और 40 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में बचाव दल को मुश्किलें पेश आ रही हैं.

जब हम वहां पहुंचे, तब तक इमारत में बचाव कार्य शुरू भी नहीं हुआ था और कुछ पता नहीं था कि बचाव कार्य जल्द कब शुरू होगा. ज़मीन पर मदद की भारी कमी थी और इसकी मुख्य वजह देश की राजनीतिक स्थिति थी.

भूकंप के पहले से ही म्यांमार में उथल-पुथल की स्थिति थी. वहां गृहयुद्ध चल रहा था, जिसकी वजह से अब तक करीब 35 लाख लोग बेघर हो चुके हैं. इस आपदा के बावजूद, सेना ने विद्रोही समूहों के ख़िलाफ़ अपनी सैन्य कार्रवाई जारी रखी है.

इसका मतलब है कि सुरक्षाबल राहत और बचाव कार्य में ज्यादा मदद नहीं कर पा रहे हैं. कुछ जगहों को छोड़कर, हमें मांडले में बड़ी संख्या में सैनिक नज़र नहीं आए.

सैन्य सरकार ने दुर्लभ तरीके से अंतरराष्ट्रीय मदद के लिए एक अपील की है, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका सहित कई अन्य देशों से तनावपूर्ण रिश्ते होने के कारण, इन देशों ने मदद का वादा तो किया है, लेकिन हक़ीक़त में ज़्यादा कुछ होता नहीं दिखा है. वर्तमान में भारत, चीन और रूस जैसे कुछ देशों से आए बचाव दल म्यांमार में सक्रिय हैं.

अभी बचाव कार्य उन इमारतों में चल रहा है जहां ज्यादा लोगों के फंसे होने की संभावना है. जैसे स्काई विला कंडोमिनियम कॉम्प्लेक्स जो कभी हज़ारों लोगों का घर था और यू ह्ला थीन बौद्ध अकादमी, जहां भूकंप के समय कई भिक्षु परीक्षा दे रहे थे.

भारतीय आपदा दल का नेतृत्व कर रहे नीरज सिंह, बौद्ध अकादमी में बचाव अभियान चला रहे हैं. उन्होंने बताया कि इमारत "पैनकेक" की तरह गिर गई थी, एक परत के ऊपर दूसरी परत.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "जिस तरह से ये इमारत गिरी थी, उससे ज़िंदा बचे लोगों को ढूंढने की संभावना बहुत कम है. लेकिन हमें अब भी पूरी उम्मीद है और हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं."

तपती धूप और 40 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में बचाव दल ड्रिल और कटर से कंक्रीट के बड़े टुकड़ों को छोटे हिस्सों मे तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. यह काफ़ी थकाने वाला काम है. जैसे ही क्रेन कंक्रीट को हटाती है, वैसे शवों की तेज़ बदबू हवा में फैल जाती है, जिसे सहना मुश्किल हो जाता है.

बचाव दल को चार से पांच शव दिखाई देते हैं, लेकिन एक शव को निकालने में कई घंटे लग जाते हैं.

अपनों के शवों के इंतज़ार में लोग image BBC मांडले में भूकंप में मारे गए एक दंपती के घर के बाहर जमा लोग.

बौद्ध अकादमी के परिसर में, एक अस्थायी तंबू के नीचे चटाइयों पर बैठे छात्रों के परिवारों के चेहरे चिंता और उदासी से भरे हुए हैं. उन्हें जैसे ही पता चलता है कि यहां से एक शव बरामद हुआ है, वे भागकर एंबुलेंस के पास जाते हैं.

कुछ लोग एक बचावकर्मी के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जो अपने मोबाइल फोन पर शव की तस्वीर दिखा रहा है.

परिवार के लिए यह सबसे मुश्किल पल है. वे तस्वीर को ध्यान से देखते हैं, यह जानने की कोशिश करते हैं कि क्या यह शव उनके किसी अपने का है. लेकिन शव इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षत है कि उसकी पहचान करना संभव नहीं है. आख़िर में, शव को मॉर्चरी में भेज दिया जाता है, जहां फॉरेंसिक जांच के ज़रिए उसकी पहचान की जाएगी.

इन्हीं परिवारों में से एक 29 साल के यू थुज़ाना के पिता भी हैं. अब उन्हें अपने बेटे के ज़िंदा रहने की कोई उम्मीद नहीं है.

यू ह्ला आंग ने रोते हुए कहा, "ये सोचकर कि मेरे बेटे का ऐसा हश्र हुआ, मैं एकदम टूट गया हूं. मैं अंदर से काफ़ी दुखी हूं."

image BBC जब भूकंप आया तब 29 साल के यू थुज़ाना बौद्ध अकादमी में परीक्षा दे रहे थे. कई ऐतिहासिक स्थलों को भी पहुंचा है नुकसान

मांडले के कई ऐतिहासिक स्थलों को ख़ासा नुकसान हुआ है जिसमें मांडले महल और महामुनि पगोडा शामिल हैं, लेकिन हम वहां जाकर यह नहीं देख पाए कि कितना नुकसान हुआ है.

भूकंप प्रभावित इलाकों में जाना, पीड़ितों और उनके परिवारों से मिलना आसान नहीं था क्योंकि सैन्य सरकार के डर के कारण लोग पत्रकारों से बात करने से हिचकिचा रहे थे.

image BBC महामुनि पगोडा उन ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जो भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया है.

पगोडा के पास, एक गिरी हुई इमारत के बाहर हमने एक बौद्ध दंपती का अंतिम संस्कार होते हुए देखा. ये घर यू ह्ला आंग खाइंग और उनकी पत्नी दॉ ममार्थे का था, वो दोनों 60 से ज्यादा उम्र के थे.

उनके बेटे ने हमें बताया, "मैं उनके साथ ही रहता था लेकिन जब भूकंप आया तब मैं बाहर था. इसलिए मैं बच गया. मैंने एक ही पल में अपने माता-पिता को खो दिया."

उनके शवों को प्रशिक्षित बचावकर्मियों ने नहीं निकाला था, बल्कि वहां के स्थानीय लोगों ने निकाला था. यू ह्ला आंग खाइंग और उनकी पत्नी दॉ ममार्थे के शव को निकालने में दो दिन लगे. जब उनके शव मिले तो वो एक-दूसरे को गले लगाए हुए थे.

image BBC यू ह्ला आंग खाइंग और उनकी पत्नी दॉ ममार्थे की इस भूकंप में मौत हो गई. भूकंप प्रभावित इलाकों में मदद की कमी से जूझते लोग image BBC मांडले में पार्क और खुले मैदान में लोग अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं.

म्यांमार की सैन्य सरकार के मुताबिक, अब तक 2,886 लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन अभी तक कई जगहों पर प्रशासन का बचाव दल पहुंच नहीं पाया है, इसलिए मौत के ये आंकड़े कितने सही हैं, ये बता पाना मुश्किल है. हमें शायद कभी पता चल ही ना चल पाए कि इस भूकंप में कितने लोग मारे गए.

मांडले में पार्क और खुले मैदान अब अस्थायी शिविरों में बदल चुके हैं. महल के चारों ओर की खाई के किनारे भी लोग तंबू गाड़कर रहने को मजबूर हैं. पूरे शहर में लोग अपने घरों के बाहर चटाइयों और गद्दों पर सो रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इमारतें कभी भी गिर सकती हैं.

मांडले में लोग दहशत में जी रहे हैं और इसकी वजह भी है. शुक्रवार के बाद से हर रात को वहां भूकंप के बड़े झटके महसूस किए जा रहे हैं.

लेकिन लोग सिर्फ़ डर की वजह से बाहर नहीं सो रहे हैं, बल्कि उनके पास कोई और चारा ही नहीं है. उनके घर इस भूकंप में तबाह हो गए हैं.

image BBC 72 साल की दॉ खिन सॉ म्यिंट भी इस भूकंप में अपना घर खो चुकी हैं.

72 साल की दॉ खिन सॉ म्यिंट से हमारी मुलाक़ात तब हुई जब वो पानी भरने की लाइन में लगी थी. उनके साथ उनकी छोटी पोती भी थी.

उन्होंने कहा, "अब मैं कुछ भी सोच नहीं पा रही हूं. जब भूकंप आया, उस पल को याद कर मेरा दिल अब भी कांप जाता है."

"हम किसी तरह बाहर भागे, लेकिन मेरा घर पूरी तरह बर्बाद हो गया. अब मैं एक पेड़ के नीचे रह रही हूं. आइए, देखिए."

दॉ खिन कपड़े धोने का काम करती हैं और उनका बेटा विकलांग है.

दॉ खिन कहती हैं, "अब मैं कहां जाऊं? मैं बहुत तकलीफ में हूं. मैं कचरे के ढेर के पास रह रही हूं. कुछ लोगों ने मुझे चावल और कुछ कपड़े दिए. हमने भागते समय जो कपड़े पहने थे, अभी तक हमने वहीं कपड़े पहने हुए हैं."

"हमें बचाने कोई नहीं आया. कृपया हमारी मदद कीजिए." ये कहते हुए वो रोने लगीं.

उनके पास खड़ी दूसरी बुजुर्ग महिला ने डबडबाती आंखों से कहा, "आज किसी ने अभी तक खाना नहीं बांटा. हम सब सुबह से भूखे हैं."

हमने वहां ज्यादातर राहत सामान बांटने वाले छोटी वैन देखी, जिनमें बहुत कम सामान था. यह राहत सामग्री कुछ स्थानीय लोगों और संस्थाओं की ओर से भेजी गई थी. लेकिन ज़रूरतमंद लोगों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि यह सहायता काफ़ी नहीं थी. जो भी राहत सामग्री मिल रही थी, उसे पाने के लिए अफ़रा-तफ़री मची हुई थी.

मांडले के मुख्य अस्पताल के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और हालात पहले से ही ख़राब थे और अब मरीजों को अस्पताल के बाहर बिस्तर लगाकर रखा जा रहा था.

image BBC अस्पताल में डॉक्टर और नर्सों की कमी की वजह से भूकंप से प्रभावित लोग एक-दूसरे का ध्यान रख रहे हैं.

14 साल की श्वे ग्ये थुन फ्यो को सिर में गंभीर चोट लगी है. उनकी आंखें लाल हो चुकी थीं. वह होश में थीं, लेकिन किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थीं. उनके पिता उन्हें आराम देने की पूरी कोशिश कर रहे थे. अस्पताल में डॉक्टर और नर्सों की संख्या बहुत कम थी. इसलिए मरीजों की देखभाल उनके परिवार वाले ही कर रहे थे.

ज़ार ज़ार को पेट में गंभीर चोट लगी थी, जिससे उनका पेट सूज गया था. उनकी बेटी पीछे बैठकर उन्हें सहारा दे रही थी और गर्मी से राहत देने के लिए हाथ से पंखा कर रही थी.

हम ज्यादा देर तक अस्पताल में नहीं रुक सके, क्योंकि हमें डर था कि पुलिस या सेना हमें पकड़ सकती है.

अब जब बचाव कार्य धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, तो अस्पताल में घायलों के बजाय ज्यादातर शव ही लाए जा रहे हैं.

नान सिन हेन, जो गिरी हुई इमारत के बाहर अपने बेटे के फंसे होने की ख़बर मिलने के बाद से इंतज़ार कर रही थीं. शुरू में वो शांत दिख रही थीं, लेकिन अब उनके चेहरे पर दर्द और डर साफ़ झलक रहा था.

उन्होंने कहा, "मेरा दिल टूट गया है. मेरा बेटा मुझसे और अपनी छोटी बहनों से बहुत प्यार करता था. वो हमारी देखभाल के लिए दिन-रात मेहनत करता था."

"अब मैं बस अपने बेटे का चेहरा देखना चाहती हूं, भले ही वो अब इस दुनिया में न हो. मैं उसका शव देखना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि वो मेरे बेटे के शव को ढूंढने की हर संभव कोशिश करें."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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