चीन पर अमेरिकी टैरिफ़ के 125% किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच बड़े पैमाने पर ट्रेड वॉर छिड़ने की आशंका तेज़ हो गई है.
चीन पर पहले ही 20% का टैरिफ़ लगा हुआ था. पिछले हफ़्ते ही राष्ट्रपति ट्रंप ने अतिरिक्त 34% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी. यह 9 अप्रैल को लागू होना था लेकिन इसके चंद घंटे पहले ट्रंप ने इसमें 50% टैरिफ़ और बढ़ाने की घोषणा कर दी.
चीन ने इसके जवाब में बुधवार को अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ़ को 50% बढ़ाते हुए 84% कर दिया. इसके बाद बुधवार को अचानक ट्रंप ने चीन पर टैरिफ़ को 125% करने का एलान कर दिया. और बाकी देशों को 90 दिन की छूट देते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ़ घटाकर एक समान 10 फ़ीसदी कर दिया.
चीन का कहना है कि अमेरिका की 'ज़बरदस्ती' के आगे झुकने की बजाय वह 'आख़िर दम तक लड़ना पसंद करेगा.'

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लेकिन इस बढ़ते व्यापार तनाव का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?
ट्रंप के अचानक फ़ैसला बदलने से अमेरिकी शेयर बाज़ार में बुधवार के कारोबारी सत्र में ऐतिहासिक उछाल देखने को मिला, वहीं चीन को छोड़ जिन देशों पर टैरिफ़ की तलवार लटक रही थी, उन्होंने राहत की सांस ली.
तेज़ी से बदले हालात में अमेरिका और एशियाई बाज़ारों में अच्छी बढ़त देखने को मिली. अमेरिकी शेयर बाज़ार के सूचकांक एसएंडपी-500 में 9.5%, नैसडेक में 12.2% और डाउ जोंस में 7.9% की उछाल देखी गई.
एशियाई बाज़ारों में जापान के निक्केई 225 में 8.6%, दक्षिण कोरिया के कोस्पी में 4.8%, ताइवान के ताईएक्स में 9.3% और ऑस्ट्रेलिया के एएसएक्स-200 में 5% का उछाल देखने को मिला.
हांगकांग और मेनलैंड चाइना के शेयर बाज़ार सूचकाकों में भी बढ़त देखने को मिली, शांघाई कंपोज़िट 1.3% और हैंग सेंग में 3% की बढ़त देखी गई.
बाज़ार के जानकारों का कहना है कि ट्रंप की ओर से दी गई राहत ने बाज़ार के सेंटिमेंट को में बदल दिया है, हालांकि ख़तरा अभी टला नहीं है क्योंकि टकराव दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच है.
ट्रंप के ताज़ा एलान पर चीन ने कहा है कि वह 'चुपचाप' नहीं बैठेगा. चीन के सरकारी मीडिया शिन्हुआ ने वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से कहा, "जब अपने लोगों के वैध अधिकारों और हितों पर चोट पहुंचाई जा रही हो और उन्हें रोका जा रहा हो, चीन की सरकार चुपचाप नहीं बैठेगी."
अमेरिकी और चीन का आपसी व्यापार कितना है?अमेरिका और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले साल क़रीब 585 अरब डॉलर का रहा.
इसमें अमेरिका ने चीन से 440 अरब डॉलर का आयात किया जबकि चीन ने अमेरिका से 145 अरब डॉलर का आयात किया.
इसकी वजह से साल 2024 में अमेरिका का चीन के साथ 295 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था.
हालांकि यह कुल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के 1% के बराबर है, लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए यह अच्छा ख़ासा व्यापार घाटा है.
लेकिन यह एक ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े से काफ़ी कम है, जिसका डोनाल्ड ट्रंप ने इस सप्ताह दावा किया था.
जब ट्रंप पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन की वस्तुओं पर भारी टैरिफ़ लगाया था. उनके बाद राष्ट्रपति बने जो बाइडन ने इन टैरिफ़ को बरक़रार रखा.
इन टैरिफ़ की वजह से चीन से अमेरिकी आयात में कमी आई और 2016 में जहां यह कुल अमेरिकी आयात का 21% था, पिछले साल यह गिरकर 13% हो गया.
इसलिए व्यापार को लेकर चीन पर अमेरिकी निर्भरता पिछले एक दशक में कम हुई है.
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका को होने वाले चीन के कुछ निर्यातों को दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के मार्फ़त किया जाने लगा था.
उदाहरण के लिए ट्रंप ने चीन से इम्पोर्ट किए जाने वाले सोलर पैनल पर 2018 में 30% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.
लेकिन अमेरिकी कॉमर्स डिपार्टमेंट ने 2023 में इस बात के सबूत पेश किए कि चीन के सोलर पैनल निर्माताओं ने मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों में अपनी असेंबली स्थापित कर ली और उन देशों के रास्ते उत्पादों को अमेरिका भेजा.
इस तरह चीन की कंपनियां टैरिफ़ के प्रभावों से बच निकलीं.
अब नए रेसिप्रोकल टैरिफ़ उन देशों पर भी लगाए जाएंगे, इससे अमेरिका में उन वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ेंगी जो मूल रूप से चीन में बनती हैं.

साल 2024 में अमेरिका से चीन को निर्यात होने वाली वस्तुओं में सबसे बड़ा हिस्सा सोयाबीन का था, जोकि मुख्य रूप से चीन के 44 करोड़ सूअरों के भोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
अमेरिका चीन को फ़ार्मास्यूटिकल्स और पेट्रोलियम पदार्थ भी निर्यात करता है.
दूसरी तरफ़ चीन से अमेरिका को निर्यात होने वाले सामान में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर और खिलौने हैं. इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए ज़रूरी बैटरी का एक बड़ा हिस्सा भी चीन निर्यात करता है.
लेकिन अमेरिका को चीन से होने वाले निर्यात में सबसे बड़ी हिस्सेदारी स्मार्टफ़ोन की है, जोकि अमेरिका को चीन से होने वाले कुल निर्यात का 9% है.
इन स्मार्टफ़ोन का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी मल्टिनेशनल कंपनी एप्पल के लिए बनाया जाता है.
यही वजह है कि चीन पर अमेरिकी टैरिफ़ लगाने के बाद हाल के सप्ताहों में एप्पल का बाज़ार मूल्य सबसे अधिक गिरा. पिछले एक महीने में ही इसके शेयर में 20% तक की गिरावट आई है.
जब अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने चीन पर 20% टैरिफ़ लगाया था तो अमेरिका में चीन से आयातित सामान की क़ीमतें अच्छी ख़ासी बढ़ गई थीं.
अब सभी वस्तुओं पर 125% टैरिफ़ लगने से अमेरिका में इन पर पड़ने वाला असर कई गुना अधिक हो जाएगा.
यही स्थिति चीन के साथ भी होने वाली है और अमेरिकी निर्यात पर जवाबी टैरिफ़ लगाने से वहां भी दाम बढ़ेंगे और चीन के उपभोक्ताओं पर इसका बोझ पड़ेगा.
लेकिन टैरिफ़ से परे, व्यापार के माध्यम से एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए इन दोनों देशों के पास दूसरे रास्ते भी हैं.
उद्योगों के लिए ज़रूरी तांबे से लेकर लीथियम जैसी धातुओं को रिफ़ाइन करने में चीन की मुख्य भूमिका है.
बीजिंग इन धातुओं को अमेरिका तक पहुंचने में बाधाएं खड़ी कर सकता है.
और चीन ने जर्मेनियम और गैलियम जैसी दो धातुओं के बारे में ऐसा कर भी दिया है. इन दोनों धातुओं का इस्तेमाल सेना में थर्मल इमेजिंग के लिए किया जाता है.
जबकि अमेरिका चीन पर टेक्नोलॉजिकल ब्लॉकेड को और कड़ा कर सकता है जिसकी शुरुआत जो बाइडन प्रशासन ने की थी.
इससे चीन को एडवांस्ड माइक्रोचिप्स इम्पोर्ट करने में और कठिनाई हो सकती है, जोकि आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस जैसे एप्लिकेशंस के लिए बहुत ज़रूरी है. चीन अभी भी इसे खुद नहीं बना सका है.
डोनाल्ड ट्रंप के ट्रेड एडवाइज़र पीटर नावारो ने इसी सप्ताह सुझाव दिया था कि अमेरिका, कंबोडिया, मैक्सिको और वियतनाम समेत अन्य देशों पर ये दबाव बढ़ाया जा सकता है कि अगर वे अमेरिका के साथ व्यापार करना चाहते हैं तो वे चीन से व्यापार न करें.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ के अनुसार, इस साल कुल वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी क़रीब 43% है.
अगर इन दोनों देशों के बीच व्यापक ट्रेड वॉर छिड़ जाता है तो यह दोनों की विकास दर को धीमा करेगा या यहां तक कि उन्हें मंदी में भी खींच सकता है और इससे पैदा हुई सुस्त वैश्विक विकास दर से अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी नुकसान पहुंचेगा.
इसके अलावा वैश्विक निवेश पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा. हालांकि और भी संभावित ख़तरे हैं. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्यूफ़ैक्चरिंग राष्ट्र है और वह घरेलू स्तर पर पैदा होने वाली मांग से बहुत अधिक उत्पादन करता है.
यह पहले ही एक ट्रिलियन डॉलर के 'गुड्स सरप्लस' पर बैठा है, यानी यह बाकी दुनिया से जितना सामान ख़रीदता है उससे कहीं ज़्यादा निर्यात करता है.
चीन घरेलू रियायतों और पसंदीदा कंपनियों को कम ब्याज़ पर कर्ज़ देकर वस्तुओं के उत्पादन को सस्ता रखता है.
स्टील इसका एक उदाहरण है.
इस बात का ख़तरा है कि अगर ऐसे उत्पाद अमेरिका नहीं भेजे गए तो चीन की कंपनियां उन्हें दूसरे देशों में 'डंप' कर सकती हैं.
हालांकि यह उपभोक्ताओं के लिए यह फ़ायदेमंद हो सकता है. लेकिन उन देशों के उद्योगों पर इस डंपिंग का बुरा असर पड़ेगा. वहां नौकरियां जाएंगी और बेरोज़गारी बढ़ेगी.
यूके स्टील नाम की संस्था ने आशंका जताई है कि चीन 'दूसरे रास्तों से' स्टील ब्रिटेन में भेज सकता है.
लेकिन इतना तो तय है कि चीन और अमेरिका के बीच खुले ट्रेड वॉर का खामियाजा वैश्विक स्तर पर होगा.
अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं को लग रहा है कि यह असर काफ़ी नकारात्मक होने वाला है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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