सुप्रीम कोर्ट ने अंबानी परिवार के वनतारा वाइल्डलाइफ़ फ़ैसिलिटी की जांच के लिए स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया है.
टीम जांच करेगी कि वनतारा में क्या वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन से जुड़े क़ानूनों का उल्लंघन हुआ है, या नहीं.
मसलन, यहां लाए गए जानवरों को तय कानून के हिसाब से अधिकृत किया गया है या नहीं, उन्हें सही स्थिति में रखा गया है या नहीं. इसके अलावा मनी लॉन्ड्रिंग, वित्तीय अनियमितताओं समेत कई अन्य आरोपों की भी जांच होगी.
गुजरात के जामनगर में स्थित वनतारा, ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर के नाम से रजिस्टर्ड है.
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लेकिन, कई वाइल्डलाइफ़ एक्टिविस्ट और मीडिया रिपोर्ट्स में लंबे समय से आरोप लगाए जा रहे हैं कि वनतारा में कथित तौर पर कई वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन लॉ का उल्लंघन हो रहा है.
बहरहाल, एसआईटी इन कथित आरोपों की जांच करके 12 सितंबर को रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी.
वनतारा पर एक आरोप यह भी रहा है कि यह कोई रेस्क्यू सेंटर नहीं बल्कि अंबानी परिवार का एक 'प्राइवेट ज़ू' है, यानी उनका पर्सनल चिड़ियाघर.
इस आर्टिकल में आपको यही बताएंगे कि भारत में क्या कोई अपना पर्सनल चिड़ियाघर बना सकता है?
यानी आप और हम अपना निजी चिड़ियाघर खोल सकते हैं या नहीं? क़ानूनी तौर पर क्या यह मुमकिन है?
अगर हां, तो इसे खोलने की प्रक्रिया क्या है? किन-किन जानवरों को रखा जा सकता है और किन जानवरों को रखने पर सज़ा हो सकती है?
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वाइल्डलाइफ़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के सीईओ जोसे लुई ने बीबीसी को बताया कि क़ानूनी तौर पर 'प्राइवेट ज़ू' जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है.
वह कहते हैं, "आप कई जानवरों को अपने घर पर रखकर उसे अपना प्राइवेट चिड़ियाघर नहीं कह सकते. भले ही उन्हें रखने के लिए आपके पास लाइसेंस क्यों ना हो."
चिड़ियाघर की क़ानूनी तौर पर बाक़ायदा एक तय परिभाषा है.
लुई बताते हैं, "वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत 'चिड़ियाघर' सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी से मान्यता प्राप्त एक ऐसी संस्था है, जहां कैप्टिव एनिमल लोगों के सामने प्रदर्शनी या सर्कस के लिए या ब्रीडिंग के लिए रखे गए हों."
इसे खोलने के लिए तय नियम के हिसाब से मंज़ूरी लेनी पड़ती है. यह तो साफ़ हो गया कि प्राइवेट ज़ू जैसी कोई चीज़ क़ानून में नहीं है.
लेकिन प्राइवेट ना सही, अगर आप क़ानूनी तौर पर परिभाषित सांचे वाला चिड़ियाघर खोलना चाहते हैं तो उसके लिए क्या प्रक्रिया है, यह जानते हैं.
चिड़ियाघर खोलने की प्रक्रियावाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट का सेक्शन 38एच चिड़ियाघर बनाने के नियमों की बात करता है.
नियमों के मुताबिक़, चिड़ियाघर खोलने के लिए सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी से परमिशन लेनी पड़ती है. एक तय प्रारूप में आवेदन देना होता है.
मिनी, स्मॉल, मीडियम और लार्ज जिस कैटेगरी में ज़ू खोल रहे हैं, उसके हिसाब से एक तय फ़ीस देनी होती है.
सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी आवेदन मिलने के बाद चेक करती है कि शर्तों का पालन हो रहा है या नहीं. उसके बाद परमिशन पर फ़ैसला देती है.
जबकि, 38आई नियम उस चिड़ियाघर में रखे जाने वाले जानवरों की ख़रीद-प्रक्रिया के लिए भी शर्तें तय करता है.
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दरअसल, जानवरों और पक्षियों की सुरक्षा और उनके रख-रखाव के लिए भारत में वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 काम करता है.
ताकि देश की पारिस्थितिकी और पर्यावरण को संतुलित और सुरक्षित किया जा सके.
इस क़ानून के ज़रिए ऐसे जीव-जन्तुओं, पक्षियों और पौधों को सुरक्षा दी गई है जो पर्यावरण और ईको सिस्टम के लिए ज़रूरी हैं.
साथ ही जिनकी आबादी अब कम हो रही है, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं, या जिनसे कई क़ीमती चीज़ें बनती हों और इस वजह से उनका व्यापार हो रहा हो.
शेड्यूल 1-4 में शामिल जानवरों-पक्षियों को रखना है अपराधऐसे जानवरों और पक्षियों को एक्ट के शेड्यूल 1, 2, 3, 4 में शामिल करके उन्हें सुरक्षा दी गई है. इन्हें 'वाइल्ड एनिमल' कहा गया है.
शेड्यूल 1 और शेड्यूल 2 के पार्ट 2 के जानवर और पक्षियों को हाई सिक्योरिटी दी गई है.
इन्हें ना तो ख़रीदा-बेचा जा सकता है. ना इनसे बनी चीज़ों का कारोबार किया जा सकता है. ना इनका शिकार किया जा सकता है.
अगर ये जानवर आपके पास जीवित या मृत किसी भी स्थिति में पाए जाते हैं, तो कड़ी सज़ा हो सकती है. इन पर सिर्फ़ सरकार का अधिकार है.
बंगाल टाइगर, स्नो लेपर्ड, काला हिरण, गैंडा, चिंकारा और हिमालयन भालू शेड्यूल 1 में आते हैं.
वाइल्डलाइफ़ ट्रस्ट के सीईओ लुई ने बीबीसी को बताया, "अगर आप इन जानवरों को कहीं से भी पाते हैं, जीवित, घायल या मृत किसी भी स्थिति में, 48 घंटे के अंदर आपको इसकी जानकारी संबंधित वन्य अधिकारी को देनी होगी."
शेड्यूल 3-4 में आने वाले जानवरों को भी क़ानूनी सुरक्षा दी गई है. इनके शिकार, ख़रीद बिक्री पर रोक है लेकिन, दोषी पाए जाने पर ज़्यादा गंभीर सज़ा नहीं है.
चीतल, भरल (नीली भेड़), पॉर्क्यूपाइन, लकड़बग्घा शेड्यूल 3 में आते हैं. फ्लेमिंगो, किंगफिशर, बाज़ जैसे पक्षी शेड्यूल 4 में आते हैं.
शेड्यूल 5 में उन जानवर-पक्षियों को रखा गया है जो जंगली तो हैं लेकिन, इन्हें क़ानूनी तौर पर सुरक्षा नहीं दी गई है. यानी इन्हें अपने पास रखने पर किसी तरह की सज़ा नहीं होगी.
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इन शेड्यूल्ड एनिमल में से कुछ ऐसे जानवर हैं जो वाइल्ड कैटेगरी में आते तो हैं लेकिन उन्हें चारदीवारी में या घेरे में या बांधकर रखने की भी इजाज़त है. क़ानून में इन्हें 'कैप्टिव एनिमल' कहा गया है.
पर्यावरण से जुड़े मामलों की वकालत करने वाले वकील रित्विक दत्ता ने बीबीसी को बताया, "वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट के मुताबिक़, सिर्फ कैप्टिव एनिमल्स को ही चिड़ियाघर में रखा जा सकता है."
घरेलू जानवर किन्हें कहते हैं?ये सब पढ़कर मन में सवाल उठ सकता है, हम अभी तक अपने घरों में जो जानवर रखते आए हैं वो किस कैटेगरी में आते हैं. उन्हें रखना क़ानूनी है या नहीं?
रित्विक बताते हैं, "वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट में शेड्यूल्ड जानवरों के अलावा आप किसी भी जानवर को अपने घर में रख सकते हैं."
"उसके लिए ना किसी लाइसेंस की ज़रूरत होगी और ना ही इन्हें रखने पर कोई सज़ा."
"इन्हें घरेलू जानवर माना जाता है. जैसे- गाय, भैंस, कुत्ता, बिल्ली, सुअर, खरगोश."
"इन्हें घर में रखने के लिए प्रिवेंशन ऑफ़ क्रूएल्टी टू एनिमल्स एक्ट में बनाए नियमों का पालन करना होता है."
घायल जानवरों के लिए बना है रेस्क्यू सेंटर
कई बार एक्सीडेंट में या अवैध तस्करी से कई जानवरों को बचाया जाता है. अगर ये घरेलू जानवर हैं तो आप इन्हें अपने घर ले जाकर उनकी देखभाल कर सकते हैं. या अपने पास रख भी सकते हैं.
लेकिन, अगर ये जानवर या पक्षी वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट में बताए गए जानवरों या पक्षियों की लिस्ट में आता है तो इन्हें रेस्क्यू सेंटर में रखा जाता है.
चिड़ियाघर की तरह रेस्क्यू सेंटर के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता है. कोई अपनी मर्ज़ी से रेस्क्यू सेंटर नहीं खोल सकता.
क़ानून में रेस्क्यू सेंटर भी ज़ू माने गए हैं, इसलिए उसके लिए भी सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी से परमिशन लेनी होती है.
लुई बताते हैं, "चिड़ियाघर और रेस्क्यू सेंटर में बस एक फर्क होता है. चिड़ियाघर में जानवरों, पक्षियों को लोगों के लिए प्रदर्शनी में रखा जा सकता है, लेकिन रेस्क्यू सेंटर में नहीं."
रेस्क्यू किए जानवरों का पहला मक़सद रिहैबिलिटेशन ही होता है. इसलिए यहां रखे गए जानवरों को ठीक होने के बाद उन्हें उनके असली घर में छोड़ना होता है.
अगर जानवर कोई विदेशी प्रजाति का है, तो उसे उसकी ओरिजिनल कंट्री में ही छोड़ा जाएगा.
जब हमने पूछा कि क्या कोई जानवरों का इलाज करने के बहाने उन्हें हमेशा के लिए रेस्क्यू सेंटर में नहीं रख सकता?
इस पर रित्विक ने बताया, "जानवर के ठीक हो जाने के बाद उन्हें वापस जंगल में छोड़ना ही होगा. रेस्क्यू करने का मक़सद ही ये होता है."
"उन्हें सेंटर में तभी तक रखा जा सकता है, जब तक जंगल में छोड़े जाने की स्थिति में ना हो."
"चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वॉर्डन इस बात को सर्टिफाई करेगा कि उक्त जानवर जंगल में जाने के लिए अभी अस्वस्थ है, उसके बाद ही जानवर को सेंटर में रख सकेंगे."
रित्विक दत्त ने बताया, "रेस्क्यू सेंटर में रखे जाने वाले जानवरों का ब्योरा देना होता है. ये भी बताना होता है कि वो जानवर आपको कहां मिला."
वनतारा मामले में एसआईटी इस एंगल पर भी जांच करेगी कि जिन जानवरों को रेस्क्यू करके वहां लाया गया है, उन्हें किस स्थिति में पाया गया था. क्या उन्हें लाते वक्त रेस्क्यू से जुड़े नियमों का पालन हुआ है.
हाथी रखने के लिए क्या प्रावधान है?रित्विक दत्त बताते हैं कि हाथी एक ऐसा जानवर है, जो वाइल्ड तो है लेकिन इन्हें शुरू से बांधकर भी रखा गया है, इसलिए इन्हें कैप्टिव एनिमल कहा गया है.
यानी इन्हें रखने के लिए आपको क़ानूनी तौर पर लाइसेंस चाहिए होता है. बिना लाइसेंस के आप इन्हें नहीं रख सकते हैं, अगर रखते हैं तो आपको सज़ा हो सकती है.
उन्होंने बताया कि इसी वजह से सोनपुर के मेले में पहले हाथी बिकते थे, लेकिन अब वहां इनकी ख़रीद-बिक्री नहीं होती.
इसके अलावा हाथी के ओनरशिप को लेकर भी क़ानून है. लाइसेंस लेने के बाद हाथी आप किसी तीसरे शख़्स को नहीं दे सकते. अपने बेटा या बेटी को ही दे सकते हैं.
अगर आपने उसका ठीक से रख-रखाव नहीं किया तो ख़राब रख-रखाव के कारण वन विभाग आपके पास से हाथी अपने पास ले जा सकता है.
विदेश से जानवर मंगाना नहीं है आसानये तो घरेलू प्रजातियों की बात हो गई. कई लोग विदेशी प्रजाति के जानवरों और पक्षियों को रखने के शौकीन होते हैं. लेकिन, ये काम शौक रखने जितना आसान नहीं है.
विदेशी जानवर-पक्षी की ख़रीद बिक्री के लिए कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इंडेंजर्ड स्पीशीज़ ऑफ़ वाइल्ड फ़ॉना एंड फ़्लोरा (साइटिस) संधि के नियम लागू होते हैं. साइटिस वाइल्ड एनिमल्स के अंतरराष्ट्रीय कारोबार को नियंत्रित करने वाली एक संधि है.
विदेशों से लाए गए जानवर या पक्षी फ़ॉरेन या एग्ज़ाटिक स्पीशीज़ कहलाते हैं.
रित्विक ने बताया कि विदेश से कोई जानवर या पक्षी लाने के लिए सबसे पहले ये देखना पड़ता है कि उनका आयात वैध है या नहीं है.
जिस देश से जानवर को ला रहे हैं, उसकी इजाज़त लेनी होती है. अपने देश में लाने के लिए साइटिस और फिर संबंधित वन विभाग से परमिशन लेनी होती है.
साइटिस से मंज़ूरी मिलना बहुत मुश्किल है. साइटिस मैनेजमेंट देखता है कि आप किस मक़सद से जानवर को ला रहे हैं. उसके रहने लायक आपके पास पर्याप्त जगह है या नहीं. उसका रख-रखाव कर सकते हैं या नहीं.
परमिशन मिलने के बाद अगर आपने जानवर की ब्रीडिंग कराई है तो उससे पैदा होने वाले सभी जानवरों की जानकारी भी साइटिस को देनी होती है.
दूसरे देशों में क्या है पॉलिसीजानवर-पक्षियों के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए सभी देश साइटिस संधि को मानते हैं. अन्य देशों में जानवरों और पक्षियों को रखने के लिए क्या नियम कायदे हैं? इस पर लुई ने बताया कि जानवरों-पक्षियों को रखने के लिए सभी देशों की अपनी-अपनी शर्तें हैं.
जैसे, अमेरिका में प्राइवेट ज़ू रख सकते हैं. दुबई में कोई भी जानवर रख सकते हैं, शेर-चीता कुछ भी.
मेक्सिको में प्राइवेट पार्क, प्राइवेट ज़ू कह सकते हैं. साउथ अफ्रीका में भी प्राइवेट फॉरेस्ट बना सकते हैं.
लेकिन, भारत में जानवरों को रखने के लिए वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट का ही पालन किया जाता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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