बांग्लादेश की सत्ता से शेख़ हसीना की बेदख़ली के आठ महीने हो चुके हैं. इन आठ महीनों में भारत बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाता रहा है.
इसी महीने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से बैंकॉक में पीएम मोदी की मुलाक़ात हुई तब भी हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठा था. हालांकि बांग्लादेश इस बात को ख़ारिज करता रहा है कि हिंदुओं को जानबूझकर वहाँ टारगेट किया जा रहा है.
लेकिन अब बांग्लादेश ने भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है. दरअसल, वक़्फ़ संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था. इसमें तीन लोगों की जान भी गई थी.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि कुछ लोग कह रहे हैं कि इस हिंसा में बांग्लादेश का भी हाथ है. अगर ऐसा है तो इसके लिए केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है क्योंकि बीएसएफ़ सरहद की सुरक्षा में है और वह गृह मंत्रालय के मातहत काम करता है.
मुर्शिदाबाद हिंसा में अपना नाम आने पर बांग्लादेश की तरफ़ से गुरुवार को प्रतिक्रिया आई.
मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफिक़ुल आलम ने कहा, ''मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा में बांग्लादेश पर उंगली उठाने की हर कोशिश को मैं ख़ारिज करता हूँ. बांग्लादेश मुसलमानों पर हमले की निंदा करता है. हम भारत और पश्चिम बंगाल की सरकार से आग्रह करते हैं कि अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर ज़रूरी क़दम उठाए.''
भारत का जवाबशफ़िक़ुल आलम के इस बयान पर शुक्रवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया दी.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, ''पश्चिम बंगाल की घटना पर बांग्लादेश की तरफ़ से आई टिप्पणी को हम ख़ारिज करते हैं. भारत बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जारी अत्याचार को लेकर चिंता जताता रहा है और अब जानबूझकर हमारी चिंताओं के समानांतर बांग्लादेश इसी तरह की बात कर रहा है. बांग्लादेश को ग़ैरज़रूरी बयान देने के बजाय अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान देना चाहिए.''
भारत से तनातनी के बीच बांग्लादेश और पाकिस्तान की क़रीबी बढ़ रही है. पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलोच बांग्लादेश के दौरे पर हैं. आमना बलोच की मुलाक़ात मोहम्मद यूनुस से भी हुई है. मोहम्मद यूनुस ने इस मुलाक़ात में पाकिस्तान से संबंध मज़बूत करने पर ज़ोर दिया.
आमना बलोच ने भी कहा कि दोनों देशों के संबंधों में पर्याप्त संभावनाएं हैं. बलोच ने कहा कि अप्रैल के अंत तक पाकिस्तान का उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक़ डार ढाका आएंगे.
बलोच ने कहा कि डार के दौरे से दोनों देशों के संबंधों में और गर्मजोशी आएगी. वहीं मोहम्मद यूनुस ने कहा कि वह पड़ोसी देशों से क़रीबी का संबंध चाहते हैं.

पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना था और फिर इससे बांग्लादेश भाषा के आधार पर अलग हुआ. बांग्लादेश की आज़ादी की बुनियाद बांग्ला राष्ट्रवाद था लेकिन यह राष्ट्रवाद इस्लाम के ख़िलाफ़ नहीं था.
जब बांग्लादेश अलग हुआ तो धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान को लेकर लोग सवाल उठाने लगे थे. लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि धार्मिक पहचान ही सब कुछ नहीं होती है. ऐसे में धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने का फ़ैसला ग़लत था. लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया था कि बंगाली पहचान इस्लामी पहचान से अलग है.
बांग्लादेश जब बना तो उसने बांग्ला राष्ट्रवाद और सेक्युलर गणतंत्र को अपनाया. शेख़ मुजीब-उर रहमान ने फ़ैसला किया था कि एक राष्ट्र-राज्य के रूप में बांग्लादेश की बुनियाद धर्मनिरपेक्षता में होगी. यह फ़ैसला पाकिस्तान के इस्लामिक राष्ट्र के अनुभव के बाद किया गया था. बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी धड़ों को बैन भी किया गया था क्योंकि इन्हें पाकिस्तान परस्त माना जाता था.
लेकिन बांग्लादेश का सेक्युलर किरदार बहुत दिनों तक मज़बूत नहीं रहा. 1975 में बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीब-उर रहमान की हत्या कर दी गई और सैन्य तख़्तापलट हो गया. बांग्लादेश के सेक्युलरिज़म के लिए यह बड़ा झटका था.
सैन्य तानाशाह ज़िआ-उर रहमान ने 1977 में बांग्लादेश के संविधान से सेक्युलरिज़म हटा दिया और इस्लामिक पार्टियों पर लगी पाबंदी भी हटा ली. वर्ष 1988 में जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद ने इस्लाम को राजकीय धर्म बना दिया था.
हालांकि 2009 में शेख़ हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार आई तो संविधान में सेक्युलरिज़म को शामिल करने का वादा किया. 2011 में बांग्लादेश के संविधान में सेक्युलरिज़म को फिर से शामिल कर लिया गया और इस्लाम राजकीय धर्म के रूप में बना रहा.
बांग्लादेश के संविधान के अनुच्छेद दो के मुताबिक़ इस्लाम राजकीय धर्म है लेकिन साथ ही अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और दूसरे धर्म के लोगों को भी वहां बराबर का अधिकार हासिल है.
पिछले साल अगस्त महीने में शेख़ हसीना के बेदख़ल होने के बाद से एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश बांग्ला राष्ट्रवाद से इस्लामिक राष्ट्रवाद की ओर बढ़ रहा है?

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने कई सुधार आयोगों का गठन किया था. इसमें एक संवैधानिक सुधार आयोग भी था. इस आयोग ने बांग्लादेश के संविधान से सेक्युलरिज़म टर्म हटाने के की सिफ़ारिश की थी.
मोहम्मद यूनुस की सरकार को बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी संगठन भी समर्थन कर रहा है. जमात-ए-इस्लामी के बारे में कहा जाता है कि यह बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान के साथ था. जमात एक तरह से स्वतंत्र बांग्लादेश का विरोध करता रहा है.
बांग्लादेश की न्यूज़ वेबसाइट प्रथम आलो को दिए इंटरव्यू में बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफ़ीक़ुर रहमान ने कहा था, ''1971 में हमारा रुख़ सिद्धांत से जुड़ा था. हम भारत के फ़ायदे के लिए स्वतंत्र देश नहीं चाहते थे. हम चाहते थे कि पाकिस्तानी हमें मताधिकार देने के लिए मजबूर हों. अगर यह संभव नहीं होता तो कई देशों ने गुर्रिल्ला युद्ध के ज़रिए आज़ादी हासिल की है."
शफ़ीक़ुर रहमान ने कहा था, "अगर हमें किसी के ज़रिए या किसी के पक्ष में आज़ादी मिलती तो यह एक बोझ हटाकर दूसरे बोझ के तले दबने की तरह होता. पिछले 53 सालों से बांग्लादेश के लिए क्या यह सच नहीं हुआ है? हमें यह क्यों सुनने के लिए मिलना चाहिए कि कोई ख़ास देश किसी ख़ास पार्टी को पसंद नहीं करता है. कोई ख़ास देश अगर नहीं चाहता है तो कोई ख़ास पार्टी सत्ता में नहीं आ पाती है. क्या स्वतंत्र देश का यही तेवर होता है? बांग्लादेश के युवा अब ये सब सुनना नहीं पसंद करते हैं.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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