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सीरिया में सुन्नी और शिया बहुल देश आज़मा रहे ताक़त, इसराइल ने अपनाई ये रणनीति

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Getty Images सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल शरा (फ़ाइल फ़ोटो)

13 जुलाई को द्रूज़ समुदाय के एक व्यक्ति का सब्जियों से लदा ट्रक दक्षिणी सीरिया में लूट लिया गया.

उस व्यक्ति के साथ मारपीट हुई और सशस्त्र हमलावर उसका ट्रक लेकर भाग गए.

हाईवे पर हुई इस लूट के बाद हिंसा का एक भयानक चक्र शुरू हुआ जिसमें लगभग एक हज़ार लोग मारे गए और सवा लाख लोग विस्थापित हो गए.

कई हफ़्तों तक बिदोइन और द्रूज़ समुदाय के लड़ाकों के बीच संघर्ष चलता रहा जिसमें सीरियाई सेना भी शामिल थी.

सीरियाई सेना पर आम नागरिकों की हत्याओं के आरोप लगे.

इस हिंसा में इसराइल भी कूद पड़ा और उसने सीरिया की राजधानी दमिश्क पर हमले किए. बाद में अमेरिका की मध्यस्थता में युद्ध विराम लागू हो गया.

इस ताज़ा हिंसा से पहले मार्च में सीरिया की सेना और उसके सहयोगी मिलिशिया पर एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय- अलवाइत के लोगों को मौत के घाट उतारने के आरोप लग रहे थे.

इससे केवल छह महीने पहले देश में दशकों लंबी असद सरकार की तानाशाही समाप्त किए जाने की ख़ुशियां मनाई जा रही थी और लोगों को देश के भविष्य को लेकर आशा की किरण दिखाई दे रही थी.

लेकिन मौजूदा सामुदायिक हिंसा से दिखता है कि देश बुरी तरह विभाजित है.

इसलिए इस सप्ताह दुनिया-जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि सीरिया के ताज़ा संघर्ष से पूर्ववर्ती अल असद सरकार के बारे में क्या पता चलता है?

  • सीरिया में बढ़ते तनाव पर क्या बोले वहां के निवासी?
  • इसराइल से आख़िरी दम तक लड़ने वाले सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति हाफ़िज़ अल-असद की कहानी
  • तुर्की के साथ ईरान की बढ़ती तनातनी, क्या है अर्दोआन का असली मक़सद?
सीरिया की विविधता image Getty Images सीरिया की राजधानी दमिश्क के उपनगरीय इलाके में बसी द्रूज़ आबादी

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस के सीरिया संघर्ष अध्ययन की निदेशक डॉक्टर रिम तुर्कमानी कहती हैं, "सीरिया भौगोलिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं का देश है, जहां कई समुदाय साथ रहते आए हैं. सीरिया पर शासन करने के लिए इन सभी समुदायों के बीच शांति और सौहार्द हमेशा ज़रूरी रहा है."

1970 से चार दशकों तक सीरिया पर असद परिवार का तानाशाही शासन रहा है. 2011 में बशर अल असद को हटाने के लिए शुरू हुआ विद्रोह बेकाबू हो गया और देश में अराजकता फैल गई.

दस सालों से अधिक समय तक चले इस गृहयुद्ध में क़रीब पांच लाख लोग मारे गए और एक करोड़ चालीस लाख लोग विस्थापित हो गए.

2024 में स्थानीय विद्रोही नेता अहमद अल शरा के नेतृत्व में उनके सहयोगी मिलिशिया गुटों ने तेज़ हमले कर बशर अल असद को सत्ता से हटा दिया.

डॉक्टर रिम तुर्कमानी का मानना है कि नई सरकार अभी तक देश को एकजुट नहीं कर पाई है.

"यही वजह है कि सीरिया में सामुदायिक संघर्ष छिड़ रहा है. ऐसी अधिकांश वारदातें देश के उन इलाकों में हो रही हैं जहां द्रूज़, अलवाइती, इस्माइली और इसाई समुदाय के लोग बसते हैं."

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माना जाता है कि सीरिया की तीन चौथाई आबादी सुन्नी मुसलमानों की है और शेष आबादी में शिया अलवाइती और द्रूज़ अल्पसंंख्यक शामिल हैं.

द्रूज़ समुदाय के ज़्यादातर लोग सोवेडा क्षेत्र में रहते हैं. असद सरकार के दौरान उन्हें थोड़ी स्वायत्तता दी गई थी.

डॉक्टर रिम तुर्कमानी कहती हैं कि द्रूज़ समुदाय के धार्मिक नेता असद सरकार और इस समुदाय के बीच वार्ता का ज़रिया बने हुए थे जिसकी वजह से उन्हें कुछ हद तक स्वायत्तता मिली हुई थी.

सोवेडा के पूर्व में रेगिस्तान है जहां बिडोइन समुदाय के लोग बसते हैं. डॉक्टर रिम तुर्कमानी कहती हैं कि लंबे अरसे से ज़मीन को लेकर बिडोइन और द्रूज़ समुदाय के बीच संघर्ष चलता रहा है.

इसमें कोई नई बात नहीं है लेकिन राजनीतिक हल नहीं निकल पाने से ये संघर्ष पहले से अधिक हिंसक होते जा रहे हैं.

यह इलाका इसराइल के नज़दीक है इसलिए वह इस संघर्ष को अपने लिए ख़तरा मान कर वहां हस्तक्षेप करता है जिससे समस्या और पेचीदा हो जाती है. द्रूज़ समुदाय की जड़ें और हितों को समझने के लिए इतिहास में झांकना ज़रूरी है.

  • सीरिया में सरकारी सेना पर सैकड़ों आम लोगों की हत्या का आरोप, असद से क्या कनेक्शन
  • विदेशी ताक़तें कैसे खोज रही हैं सीरिया में दख़ल करने के रास्ते
  • सीरिया में असद के पतन के बाद ईरान के सैन्य अड्डों का क्या हाल है?
पुराने संबंध image Getty Images इसराइल में रह रहे द्रूज समुदाय के लोग सीरिया में अपने लोगों पर हो रहे हमलों को लेकर चिंतित हैं.

दुनिया में द्रूज़ समुदाय की आबादी दस लाख से अधिक है जिनमें से आधे से अधिक लोग सीरिया में रहते हैं.

बेरूत स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी में इतिहास के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर माक्रम रबा कहते हैं कि सीरिया के अलावा द्रूज़ समुदाय के लोग लेबनान, इसराइल और जॉर्डन में भी रहते हैं.

वो कहते हैं, "द्रूज़ दसवीं शताब्दी से इस क्षेत्र में रहते आए हैं. वो मुसलमान हैं मगर सुन्नी नहीं हैं. वो पैगंबर को मानते हैं मगर इस्लाम की रूढ़िवादी धारणा या किसी अतिवादी सोच में विश्वास नहीं रखते. वो अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते. दूसरी तरफ़ वो सीमा के पार दूसरे देशों में अपने सगे संबंधियों से संबंध बनाए रखते हैं."

माक्रम रबा ख़ुद एक द्रूज़ हैं और मानते हैं कि इस समुदाय का कबाइली स्वरूप ही इसका आधार है.

वो कहते हैं कि सीरियाई द्रूज़ इसराइल में रहने वाले द्रूज़ लोगों को अपना सगा संबंधी मानते हैं.

वो इसराइली द्रूज़ को सरकार के हिस्से के रूप में नहीं देखते जबकि इसराइल में कई द्रूज़ सरकार और सेना में उच्च पदों पर हैं.

हाल में जब इसराइल ने दमिश्क पर हमला किया तो वो केवल उसके अपने हितों की वजह से नहीं बल्कि घरेलू राजनीति से भी प्रेरित था.

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माक्रम रबा का मानना है कि इसराइल ने सीरियाई द्रूज़ की सहायता इसलिए नहीं की क्योंकि वो उन्हें पसंद करते हैं बल्कि इसलिए की क्योंकि वो इसराइली द्रूज़ को ख़ुश रखना चाहते हैं.

द्रूज सीरिया में नए राष्ट्रपति का समर्थन नहीं करते क्योंकि वो अपने मामलों में किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहते.

माक्रम रबा कहते हैं कि असद सरकार के गिरने के बाद द्रूज़ समुदाय ने सरकार के ख़िलाफ़ बगावत कर दी क्योंकि वो सीरिया में अपने साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं करना चाहते.

जहां हाल में हिंसा हुई, वहां 90 प्रतिशत लोग द्रूज़ समुदाय के हैं इसलिए सरकार को उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था. वहीं द्रूज समुदाय की रक्षा भी नहीं की गई.

माक्रम रबा ने कहा, "यह तो कोई नहीं कह सकता कि द्रूज़ यहां के निवासी नहीं हैं इसलिए यह कह कर उन्हें निशाना बनाया जाता है कि उनकी धार्मिक धारणाएं और रीति रिवाज ग़लत हैं और इस्लामी धारणाओं के ख़िलाफ़ हैं. किसी द्रूज़ व्यक्ति की मूंछें काट देना उसे मौत के घाट उतारने जैसा माना जाता है.

इसलिए हाल के संघर्षों में अल शरा के लड़ाकों ने वरिष्ठ द्रूज़ धार्मिक नेताओं को पकड़ कर उनकी मूंछें मुंडा दीं और उसका वीडियो बना लिया."

सवाल उठता है कि इस संघर्ष में नए राष्ट्रपति अल शरा किस तरफ़ हैं?

  • सीरिया आगे किस दिशा में जा सकता है?
  • नए सीरिया को बनाने की शुरू हुई क़वायद
  • सीरिया: अहमद अल-शरा के विद्रोही गुट का अपने जिहादी अतीत से नाता तोड़ने का दावा कितना सच?
राष्ट्रपति अल शरा image BBC सीरिया के राष्ट्रपति अल शरा

सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल शरा एक राजनेता और मिलिशिया नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं.

उनके मिलिशिया गुट हयात तहरीर अल शम या एचटीएस का इदलिब प्रांत पर नियंत्रण था.

उनके नेतृत्व में इस गुट ने हमला कर बशर अल असद की सरकार को उखाड़ फेंका जिसके साथ ही सीरिया में गृहयुद्ध समाप्त हो गया.

यूके की लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी में मध्यपूर्व और उत्तर अफ़्रीकी अध्ययन की प्रोफ़ेसर डॉक्टर रहाफ़ अलडुगली कहती हैं कि अल शरा के नेतृत्व को कोई ख़ास चुनौती नहीं मिली. मगर उनके नेतृत्व में जो विश्वास जगा था वो तेज़ी से टूटता जा रहा है.

वो कहती हैं, "वो काफ़ी लोकप्रिय थे और देश भर में सीरिया के लोगों ने माना कि उन्होंने क्रांतिकारी बदलाव की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई है. मगर यह भी सच है कि उन्होंने एक तानाशाही सरकार का अंत भी सैनिक तरीके से किया है. शुरुआत में उन्हें जो लोकप्रियता हासिल हुई थी, ख़ास तौर पर सुन्नी तबके में वह अब सभी तबकों में घटती जा रही है."

सीरिया सरकार की एक जांच समिति के अनुसार, मार्च में उत्तर पश्चिमी सीरिया में 1400 से अधिक लोग मारे गए. यह हिंसा तब शुरू हुई थी जब पूर्व राष्ट्रपति असद के समर्थकों ने सुरक्षाबलों पर हमले शुरू कर दिए. उसके बाद जवाबी हमलों में अलवाइती समुदाय के आम लोगों को निशाना बनाया गया.

कई लोगों ने इन हमलों में सरकारी सुरक्षाबलों का हाथ होने का आरोप लगाया मगर अल शरा सरकार ने इसका खंडन किया है. सरकार ने इन हमलों की जांच के आदेश देते हुए कहा कि सेना के कमांडरों ने बदले की कार्रवाई के आदेश नहीं दिए थे.

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डॉक्टर रहाफ़ अलडुगली ने कहा कि उन्होंने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा किया था मगर वास्तव में इसका सबूत दिखाई नहीं दिया. ना ही प्रशासनिक मामलों में अल्पसंख्यकों को शामिल करने का कोई सबूत दिखा. वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता उन वादों में कोई ईमानदारी थी."

अल शरा सरकार में उनके संगठन एचटीएस के चरमपंथियों का सबसे अधिक प्रभाव है.

गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर उसका नियंत्रण है. डॉक्टर रहाफ़ अलडुगली की राय है कि पिछले सात महीनों में अल शरा सरकार के फ़ैसलों में ना तो कोई पारदर्शिता दिखाई दी, ना ही सरकारी संस्थाओं को मज़बूत करने की ओर कदम उठाए गए. लोगों को इस प्रक्रिया में शामिल भी नहीं किया गया.

सरकार के फ़ैसलों में भविष्य की कोई योजना या दिशा दिखाई नहीं दी.

इस सरकार के पास देश को एकजुट करने का एक बढ़िया मौका था जो उसने गंवा दिया. डॉक्टर रहाफ़ अलडुगली मानती हैं कि देश पर शासन करना और उसे एकजुट करना बेहद पेचीदा काम है जो सरकार के लिए आसान नहीं होगा.

डॉक्टर रहाफ़ अलडुगली कहती हैं कि अगर कोई सही फ़ैसले और योजनाएं पेश करता भी है तो लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत करने में लंबा समय लगता है.

लंबे समय से चली आ रही तानाशाही के बाद देश में एक ऐसी संस्कृति कायम करना जो विविधता और पारदर्शिता लाए, यह कोई आसान काम नहीं है.

वो कहती हैं, "पिछले सात महीनों में कई ग़लतियां हुई हैं. लेकिन मुझे लगता है कि अब भी अल शरा के पास सीरिया को एकजुट करने और लोगों का विश्वास हासिल करने का समय है. मगर इसके लिए उन्हें कदम उठाने पड़ेंगे. इसके लिए उन्हें पड़ोसी देशों या अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अनुमोदन की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि सीरियाई जनता का विश्वास हासिल करना चाहिए."

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विभाजित परिदृश्य image Getty Images सीरिया में द्रूज़ बहुल इलाकों में हिंसक टकराव

ब्रिटेन के थिंक टैंक रूसि में मध्यपूर्व सुरक्षा मामलों की वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर बोर्जिया ओज़ेलिक का मानना है कि अल शरा ने असद सरकार को उखाड़ कर ना सिर्फ़ सीरिया की घरेलू राजनीति का परिदृश्य बदल दिया है बल्कि क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी बदल दिया है.

वो कहती हैं कि अहमद अल शरा का इतिहास भी महत्वपूर्ण है.

उनका कहना है, "वो सलाफ़ी जिहादी सोच के समर्थक रहे हैं. हालांकि वो यह दिखाना चाहते हैं कि अब उन्होंने अपनी उस छवि को बदलने के लिए अतीत से किनारा कर लिया है. लेकिन उनके अतीत के अतिवादी समय को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता."

दरअसल, डॉक्टर बोर्जिया ओज़ेलिक का इशारा अल शरा के पूर्व में अल क़ायदा जैसे चरमपंथी गुट के साथ संबंधों की ओर है. उनके नेतृत्व की शुरुआत में उनके अतीत के संबंधों को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे और चर्चा हो रही थी कि उनकी सोच क्षेत्र को कैसे प्रभावित कर सकती है.

लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा सीरिया के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंधों को हटाने के बाद दूसरे देशों ने भी अल शरा के लिए यही रुख़ अपनाया. लेकिन सीरिया में एक सुन्नी नेता के राष्ट्रपति बनने के बाद उसके पूर्व सहयोगी ईरान के साथ संबंधों पर ज़रूर असर पड़ सकता है.

ईरान एक शिया देश है और वह असद सरकार की मदद करता रहा है जिसके बदले वो सीरिया का इस्तेमाल लेबनान के चरमपंथी गुट हिज़्बुल्लाह को हथियार सप्लाई के एक रास्ते की तरह करता रहा है.

इसके बदले हिज़्बुल्लाह असद सरकार की सहायता के लिए वहां अपने लड़ाके भेजता रहा है.

डॉक्टर बोर्जिया ओज़ेलिक के अनुसार, सीरिया में अब यह भावना है कि वहां ईरान के लिए कोई जगह नहीं है.

वो कहती हैं, "इसके पीछे कई कारण हैं. गृहयुद्ध के दौरान ईरान ने खुल कर असद सरकार का समर्थन किया और विरोध प्रदर्शनों को कुचलने में उनकी मदद की. साथ ही वह हिज़्बुल्लाह की मदद भी करता रहा है."

अल शरा के सत्ता में आने के बाद सीरिया के तुर्की के साथ संबंधों पर भी असर पड़ेगा.

तुर्की असद सरकार के खिलाफ़ सीरिया के विद्रोही गुटों का समर्थन करता रहा है. उसने सीरिया की अंतरिम सरकार का समर्थन भी किया क्योंकि दोनों ही सुन्नी गुट हैं.

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डॉक्टर बोर्जिया ओज़ेलिक कहती हैं कि इसे शिया बनाम सुन्नी लड़ाई के रूप में देखना भी ग़लत होगा. यह धारणा ज़रूर बन रही है कि अल शरा के सत्ता में आने के बाद तुर्की का प्रभाव सीरिया में बढ़ रहा है.

मगर इसका यह अर्थ भी नहीं है कि सीरिया पूरी तरह ईरान के प्रभाव से बाहर हो गया है, जहां तक इसराइल का संबंध है, वह सीरिया को एक ख़तरे के रूप में देखता है और वो नहीं मानता कि अल शरा ने जिहादी गुटों के साथ अपने संबंध तोड़ लिए हैं.

मगर अल शरा के सामने एक बड़ी चुनौती सीरिया के सामरिक हितों को विकसित कर अर्थव्यवस्था को सुधारने की है.

डॉक्टर बोर्जिया ओज़ेलिक ने कहा कि सीरिया की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए अल शरा को तुरंत प्रभावी कदम उठाने होंगे ताकि देश में पूंजी निवेश को आकर्षित किया जा सके और आम सीरियाई लोगों की ज़िंदगी बेहतर हो.

"वो इस दिशा में अमेरिका से सहायता प्राप्त करने में सफल रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सीरिया पर से प्रतिबंध हटा दिए हैं. यही यूरोपीय देशों ने भी किया है. यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है. मगर इसके लिए अल शरा को अपने आप को ईरान से दूर करना पड़ा है."

क्षेत्र के ताकतवर देशों के साथ पेचीदा संबंधों को संभालना भी सीरिया सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है.

तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- सीरिया के ताज़ा संघर्ष से अल शरा सरकार के बारे में क्या पता चलता है? सीरिया सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश के विभिन्न धार्मिक और जातीय समुदायों को एकजुट करना है.

सरकार का नेतृत्व सुन्नी है और देश की तीन चौथाई आबादी सुन्नी है. सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि देश में ना सिर्फ़ अल्पसंख्यकों को दबाया जा रहा है बल्कि उनकी हत्याएं की जा रही हैं.

सोवेडा में हुई हिंसा इसका एक उदाहरण है. सीरियाई जनता के पास सितंबर में अपना फ़ैसला करने का मौका होगा. उम्मीद जताई जा रही है कि देश में चुनाव से उसके अतीत के कुछ ज़ख्म भर पाएंगे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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