वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में सुहागन महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाने वाला एक विशेष व्रत है। यह उपवास हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। उत्तर भारत में यह व्रत अमावस्या को किया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में महिलाएं इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाती हैं।
धार्मिक ग्रंथों में इस व्रत को लेकर अलग-अलग मत उपलब्ध हैं। स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण के अनुसार व्रत को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को करना चाहिए, जबकि निर्णयामृत जैसे ग्रंथ इसे अमावस्या पर करने की बात कहते हैं। यह व्रत न केवल सुहागन महिलाएं, बल्कि विधवा, वृद्धा, बालिका, सपुत्रा एवं अपुत्रा महिलाएं भी श्रद्धा और आस्था के साथ कर सकती हैं।
वट वृक्ष की पूजा का महत्ववट सावित्री व्रत में विशेष रूप से वट वृक्ष (बरगद) की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष में त्रिदेवों का वास होता है — इसकी जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव निवास करते हैं। यह वृक्ष दीर्घायु, सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, सत्यवान के प्राण संकट में थे और वे वट वृक्ष के नीचे ही लेटे हुए थे। वहीं पर सावित्री ने तपस्या और संकल्प से उन्हें यमराज से वापस प्राप्त किया था, इसलिए वट वृक्ष की पूजा को विशेष फलदायी माना गया है।
वट सावित्री व्रत 2025 की तिथिपंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या तिथि 26 मई 2025, सोमवार को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से प्रारंभ होकर 27 मई, मंगलवार को सुबह 8 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। इस आधार पर व्रत की श्रेष्ठ तिथि 26 मई, सोमवार को मानी गई है।
वट सावित्री व्रत 2025 के शुभ मुहूर्तब्रह्म मुहूर्त – सुबह 4:03 से 4:44 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 11:51 से 12:46 बजे तक
अमृत–सर्वोत्तम मुहूर्त – सुबह 5:25 से 7:08 बजे तक
शुभ–उत्तम मुहूर्त – सुबह 8:52 से 10:35 बजे तक
लाभ–उन्नति मुहूर्त – दोपहर 3:45 से शाम 5:28 बजे तक
इन मुहूर्तों में व्रत, पूजन और वट वृक्ष की परिक्रमा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
विशेष संयोग और नक्षत्रइस वर्ष वट सावित्री व्रत के दिन शोभन योग और भरणी नक्षत्र का विशेष संयोग बन रहा है, जिससे इस व्रत का धार्मिक महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
शोभन योग – प्रातः काल से सुबह 7:02 बजे तक
इसके बाद अतिगंड योग प्रारंभ होगा, जो 27 मई को सुबह 2:55 बजे तक रहेगा।
तत्पश्चात सुकर्मा योग का आरंभ होगा।
भरणी नक्षत्र – सुबह 8:23 बजे तक रहेगा, इसके बाद कृत्तिका नक्षत्र प्रारंभ होगा।
इन शुभ योगों और नक्षत्रों में व्रत करने से व्रत का फल कई गुना अधिक प्रभावकारी होता है।
व्रत का महत्व और प्रेरणावट सावित्री व्रत देवी सावित्री की निष्ठा, तपस्या और अडिग संकल्प का प्रतीक है। सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाकर यह सिद्ध किया कि श्रद्धा, भक्ति और संकल्प से असंभव भी संभव हो सकता है। इस व्रत में न केवल पति की दीर्घायु की कामना की जाती है, बल्कि संतान सुख, पारिवारिक समृद्धि और सुखमय दांपत्य जीवन की प्राप्ति के लिए भी यह विशेष फलदायी माना गया है।
वट सावित्री व्रत भारतीय नारी की आस्था, संस्कार और शक्ति का अद्वितीय उदाहरण है, जो आज भी अपने मूल स्वरूप में अत्यंत श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।
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