महाराष्ट्र के बीड जिले से निकलकर Infosys में 9,000 की नौकरी करने वाले दादासाहेब भगत ने अपनी मेहनत और लगन से एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। कभी ऑफिस की सफाई और छोटे-मोटे काम करने वाले भगत आज एक सफल डिज़ाइन प्लेटफॉर्म 'डिज़ाइन टेम्पलेट' के फाउंडर हैं। लोग जिसे अक्सर Canva से कम्पेयर करते हैं। उनका सफर इस बात का उदाहरण है कि अगर किसी में सीखने की चाह और मेहनत करने की हिम्मत हो तो वह किसी भी मुश्किल हालातों को पार कर सकता है। आइए जानते हैं उनके सफर की पूरी कहानी को।
बीड से पुणे तक का सफर
दादासाहेब भगत का जन्म महाराष्ट्र के बीड जिले में हुआ जो अक्सर सूखे की मार झेलता है। उनके परिवार में शिक्षा को ज्यादा महत्व कभी नहीं दिया गया था। उन्होंने 10वीं कि पढ़ाई की और इसके बाद एक ITI कोर्स किया जो आमतौर पर फैक्ट्री की नौकरी के लिए होता है। नौकरी की तलाश में वे पुणे आए और उनकी पहली सैलरी 4,000 रुपये थी। इसके बाद उन्होंने Infosys में एक ऑफिस बॉय की नौकरी जॉइन की थी जिसमें उन्हें 9,000 रुपये महीने मिला करते थे।
Infosys में मिला असली इंस्पिरेशन
Infosys में भगत ऑफिस की सफाई सामान लाना और गेस्टहाउस के छोटे-मोटे काम करना होता था। वहां उन्होंने देखा कि बाकी लोग कंप्यूटर पर काम करते हैं। उन्हें यह महसूस हुआ कि स्किल वाले लोग आपनी बेहतर जिंदगी जी रहे हैं। उन्होंने कुछ कर्मचारियों से पूछा कि वे ऐसे काम कैसे करते हैं। जवाब मिला कि डिग्री जरूरी है लेकिन कुछ ने कहा कि ग्राफिक डिजाइन और एनिमेशन जैसे क्रिएटिव फील्ड्स में टैलेंट ज्यादा जरूरी होता है। इससे भगत को अपने बचपन का ड्रॉइंग का शौक याद आया जिसे उन्होंने कभी सीरियस नहीं ही नहीं।
स्किल सीखकर बनाया खुद का प्लेटफॉर्मInfosys की नौकरी के बाद उन्होंने ग्राफिक डिजाइन सीखने की शुरुआत की। एक साल के अंदर उन्होंने कंप्यूटर चलाना और डिजाइनिंग करना आसानी से सीख लिया। फिर उन्होंने फ्रीलांसिंग से शुरुआत करी और आगे चलकर खुद की कंपनी शुरू की। जब कोविड-19 का समय आया था तब उन्हें पुणे का ऑफिस बंद करके अपने गांव लौटना पड़ गया था। गांव में बिजली और इंटरनेट की दिक्कतों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने एक पहाड़ी पर गायों के तबेले के पास ऑफिस बनाया जहां नेटवर्क अच्छा आया करता था। यहीं से डिज़ाइन टेम्पलेट की शुरुआत हुई जो अब एक सक्सेसफुल डिज़ाइन प्लेटफॉर्म बन चुका है।
कैसे मिली कामयाबीडिज़ाइन टेम्पलेट के ज़रिए भगत सिर्फ खुद ही नहीं बढ़े बल्कि गांव के युवाओं को भी डिजिटल स्किल्स सिखाने लगे। उनके इस प्रयास की सराहना खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की और इसे Make in India की सच्ची मिसाल बताया। बाद में दादासाहेब भगत ने Shark Tank India में हिस्सा लिया और boAt के को-फाउंडर अमन गुप्ता से 1 करोड़ रुपये की इन्वेस्टमेंट हासिल किया।
बीड से पुणे तक का सफर
दादासाहेब भगत का जन्म महाराष्ट्र के बीड जिले में हुआ जो अक्सर सूखे की मार झेलता है। उनके परिवार में शिक्षा को ज्यादा महत्व कभी नहीं दिया गया था। उन्होंने 10वीं कि पढ़ाई की और इसके बाद एक ITI कोर्स किया जो आमतौर पर फैक्ट्री की नौकरी के लिए होता है। नौकरी की तलाश में वे पुणे आए और उनकी पहली सैलरी 4,000 रुपये थी। इसके बाद उन्होंने Infosys में एक ऑफिस बॉय की नौकरी जॉइन की थी जिसमें उन्हें 9,000 रुपये महीने मिला करते थे।
Infosys में मिला असली इंस्पिरेशन
Infosys में भगत ऑफिस की सफाई सामान लाना और गेस्टहाउस के छोटे-मोटे काम करना होता था। वहां उन्होंने देखा कि बाकी लोग कंप्यूटर पर काम करते हैं। उन्हें यह महसूस हुआ कि स्किल वाले लोग आपनी बेहतर जिंदगी जी रहे हैं। उन्होंने कुछ कर्मचारियों से पूछा कि वे ऐसे काम कैसे करते हैं। जवाब मिला कि डिग्री जरूरी है लेकिन कुछ ने कहा कि ग्राफिक डिजाइन और एनिमेशन जैसे क्रिएटिव फील्ड्स में टैलेंट ज्यादा जरूरी होता है। इससे भगत को अपने बचपन का ड्रॉइंग का शौक याद आया जिसे उन्होंने कभी सीरियस नहीं ही नहीं।
स्किल सीखकर बनाया खुद का प्लेटफॉर्मInfosys की नौकरी के बाद उन्होंने ग्राफिक डिजाइन सीखने की शुरुआत की। एक साल के अंदर उन्होंने कंप्यूटर चलाना और डिजाइनिंग करना आसानी से सीख लिया। फिर उन्होंने फ्रीलांसिंग से शुरुआत करी और आगे चलकर खुद की कंपनी शुरू की। जब कोविड-19 का समय आया था तब उन्हें पुणे का ऑफिस बंद करके अपने गांव लौटना पड़ गया था। गांव में बिजली और इंटरनेट की दिक्कतों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने एक पहाड़ी पर गायों के तबेले के पास ऑफिस बनाया जहां नेटवर्क अच्छा आया करता था। यहीं से डिज़ाइन टेम्पलेट की शुरुआत हुई जो अब एक सक्सेसफुल डिज़ाइन प्लेटफॉर्म बन चुका है।
कैसे मिली कामयाबीडिज़ाइन टेम्पलेट के ज़रिए भगत सिर्फ खुद ही नहीं बढ़े बल्कि गांव के युवाओं को भी डिजिटल स्किल्स सिखाने लगे। उनके इस प्रयास की सराहना खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की और इसे Make in India की सच्ची मिसाल बताया। बाद में दादासाहेब भगत ने Shark Tank India में हिस्सा लिया और boAt के को-फाउंडर अमन गुप्ता से 1 करोड़ रुपये की इन्वेस्टमेंट हासिल किया।
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