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₹100 करोड़ की टैक्स चोरी का खुलासा! जानें ज्वैलर्स कैसे सरकार को लगा रहे करोड़ों का चूना?

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सोने की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और इस बीच कुछ ज्वैलर्स ने टैक्स बचाने के लिए चालाकी शुरू कर दी है. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने पाया है कि कुछ ज्वैलरी कंपनियां अपने मुनाफे को कम दिखाने के लिए अकाउंटिंग के तरीकों में बदलाव कर रही हैं. इससे उन्हें कम टैक्स देना पड़ता है. ये कंपनियां अपने स्टॉक की वैल्यू तय करने का तरीका बदल रही हैं. पहले ये FIFO (जो माल पहले खरीदा गया, उसे पहले बेचा मानना) का तरीका अपनाती थीं. अब इन्होंने LIFO (जो माल बाद में खरीदा गया, उसे पहले बेचा मानना) अपनाना शुरू कर दिया है.



सूत्रों के मुताबिक, यह तरीका उन्हें कम मुनाफा दिखाने और कम टैक्स देने में मदद करता है. बताया गया है कि यह गड़बड़ी पिछले 5-6 सालों से चल रही है. एक कंपनी को तो अब तक छुपाए गए मुनाफे पर ₹100 करोड़ से ज्यादा का टैक्स भरना पड़ा है.



इनकम टैक्स विभाग को शक है कि कई ज्वैलर्स ने सोने की कीमतों में तेजी का फायदा उठाकर इस तरह टैक्स से बचने की चाल चली है. इसी वजह से विभाग ने अपने अधिकारियों को ऐसे मामलों की जांच के निर्देश दिए हैं जहां LIFO (लास्ट-इन-फर्स्ट-आउट) पद्धति का इस्तेमाल किया गया है.



क्या होता है LIFO और FIFO?
  • FIFO (First-In-First-Out) का मतलब है: इसका मतलब है कि जो सोना पहले खरीदा गया, उसे पहले बेचा गया माना जाता है. इससे जो सोना स्टॉक में बचता है, वह नया और महंगा होता है. इसलिए स्टॉक की वैल्यू ज्यादा होती है, और मुनाफा भी ज्यादा दिखता है. टैक्स भी ज्यादा देना पड़ता है.
  • LIFO (Last-In-First-Out): इसमें मान लिया जाता है कि जो सोना आखिरी में खरीदा गया (यानी महंगा), वही पहले बेचा गया. बचा हुआ स्टॉक पुराना और सस्ता दिखता है. इससे मुनाफा कम दिखता है और टैक्स भी कम देना पड़ता है.


2016-17 से इनकम टैक्स कानून कहता है कि किसी भी बिजनेस को सिर्फ FIFO या 'वेटेड एवरेज कॉस्ट' तरीका ही अपनाना है. LIFO की इजाजत नहीं है. लेकिन कुछ ज्वैलर्स ने चुपचाप LIFO अपनाया ताकि उनका मुनाफा कम दिखे और टैक्स भी घट जाए. अब टैक्स विभाग इस पर नजर रख रहा है और ऐसे मामलों की जांच शुरू कर दी है.



पहले अपनी मर्जी से स्टॉक का हिसाब रखती थीं कंपनियां

साल 2017-18 से पहले कंपनियों को यह आजादी थी कि वे अपने स्टॉक (जैसे सोना, चांदी) की वैल्यू कैसे तय करें. वे जिस तरीके को सालों से इस्तेमाल कर रहे थे, उसी को जारी रख सकते थे.



फिर आया नया नियम – ICDS-II

2017-18 से इनकम टैक्स विभाग ने एक नया नियम लागू किया, जिसका नाम है ICDS-II (इनकम कम्प्यूटेशन ऐंड डिस्क्लोजर स्टैंडर्ड्स). इस नियम के मुताबिक अब ज्यादातर कंपनियों को सिर्फ दो तरीके अपनाने की इजाजत है:- FIFO (फर्स्ट-इन फर्स्ट-आउट) और वेटेड एवरेज कॉस्ट मेथड. LIFO (लास्ट-इन फर्स्ट-आउट) अब मान्य नहीं है.



कुछ ज्वैलर्स ने LIFO के लिए कोर्ट में गुहार लगाई

एक ज्वैलर ने कोर्ट में याचिका दायर कर दी कि उन्हें LIFO तरीका अपनाने की इजाजत दी जाए. लेकिन अदालत ने कहा कि ICDS-II का नियम सही है और याचिका खारिज कर दी.



लगातार बढ़ती जा रही हैं सोने की कीमतें

कोविड महामारी के बाद और फिर जियोपॉलिटिकल तनाव व सेंट्रल बैंकों द्वारा बड़ी मात्रा में सोने की खरीद सहित अन्य कारणों से सोने की कीमतों में तेजी आई. ऐसे में कई ज्वैलर्स को LIFO मेथड अपनाने का लाभ हुआ होगा.

भारत में सोने की कीमतें: -

  • ₹31,000 प्रति 10 ग्राम (2018)
  • ₹35,000 (2019)
  • ₹48,720 (2021)
  • ₹77,913 (2024)
  • वर्तमान में ₹97,681 प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गई हैं.
इनकम टैक्स विभाग के पास हिसाब-किताब का पूरा हक

CA फर्म KPB & Associates के पार्टनर पारस सावला ने कहा कि इनकम टैक्स विभाग के पास यह पूरा हक है कि वो किसी भी कंपनी की अकाउंटिंग (हिसाब-किताब) की जांच कर सके. विभाग देखता है कि जो तरीका कंपनी ने अपनाया है, क्या उससे असली मुनाफा ठीक से समझ में आता है या नहीं. उन्होंने बताया कि ICDS-II नियम कुछ खास मामलों में, जैसे कि कोई खास प्रोजेक्ट के लिए अलग-अलग तरह का सामान हो या कोई ऐसा माल हो जिसे एक-दूसरे से बदला नहीं जा सकता- वहां तीसरे तरीके (LIFO जैसा) की इजाजत देता है. लेकिन अगर कंपनी का स्टॉक बड़ी संख्या में एक जैसा हो, जैसे ज्वैलरी, तो वहां LIFO की अनुमति नहीं है.



पारस सवला का कहना है कि कंपनी को ऐसा तरीका चुनना चाहिए जिससे साफ पता चले कि उस सामान को मौजूदा हालत तक लाने में कितना खर्च हुआ. और सबसे जरूरी बात- वही तरीका हर साल लगातार अपनाना चाहिए, उसे बार-बार बदलना नहीं चाहिए.

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