जब भी अप्सराओं का जिक्र होता है, इंद्र देव का नाम भी सामने आता है। यह बात वेदों और पुराणों में भी उल्लेखित है कि इंद्र, जो स्वर्ग के देवता हैं, अपने स्वार्थ के लिए छल और कपट से भी पीछे नहीं हटते। एक बार ऋषि कंडु, जो ऋषियों में सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं, गोमती नदी के किनारे कठोर तपस्या कर रहे थे। इंद्र ने उनकी तपस्या को बाधित करने के लिए बेहद सुंदर अप्सरा प्रम्लोचा को भेजा।
प्रम्लोचा की सुंदरता ने ऋषि कंडु को मोहित कर दिया और वे उसकी मोहिनी में खो गए। इस प्रकार, ऋषि कंडु ने अपनी तपस्या और पूजा को भुला दिया और गृहस्थ जीवन के मोह में फंस गए।
इंद्र और प्रम्लोचा की योजना सफल हो गई थी, लेकिन अब प्रम्लोचा स्वर्ग लौटना चाहती थी। हालांकि, ऋषि कंडु के प्रेम में डूबी हुई प्रम्लोचा ने जाने से मना कर दिया। वह कंडु के श्राप से भी डरती थी, इसलिए वह कहीं नहीं जा सकी।
एक दिन, ऋषि कंडु को अपनी साधना की याद आई और उन्होंने कहा कि वह पूजा करने जा रहे हैं। प्रम्लोचा ने आश्चर्य से पूछा कि इतने वर्षों बाद उन्हें साधना की याद आई है। ऋषि कंडु ने कहा कि वह सुबह ही आई हैं और उन्हें साधना के बारे में बता रही हैं। तब प्रम्लोचा ने इंद्र के बारे में सब कुछ बताया और कहा कि वह यहाँ 907 वर्षों से हैं। यह सुनकर ऋषि कंडु ने कहा कि उन्हें अपने आप पर धिक्कार है, क्योंकि उनकी सारी साधना और तपस्या व्यर्थ गई।
आखिरकार, ऋषि कंडु ने अपनी स्थिति को समझा और अप्सरा को त्याग कर फिर से तपस्या करने का निर्णय लिया।
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