खगड़िया/अलौली: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। इस बार पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा दो हिस्सों में विभाजित हो गई है। एक धड़ा चिराग पासवान के नेतृत्व में है, जबकि दूसरा भाई पशुपति पारस के साथ है।
चिराग पासवान की पार्टी एनडीए का हिस्सा है, जबकि पशुपति पारस की पार्टी विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल है। इन राजनीतिक समीकरणों के बीच, पशुपति पारस ने अपने भाई चिराग के राजनीतिक संघर्ष की कहानी साझा की।
1969 में चुनावी हलचल
पशुपति पारस ने बताया कि 1969 में बिहार में चुनावी गतिविधियाँ शुरू हो गई थीं और दो साल पहले हुए चुनाव के बाद तीन मुख्यमंत्री बदल चुके थे। मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो चुकी थी।
हमारा गांव अलौली विधानसभा क्षेत्र में स्थित है। उस समय इस सीट पर कांग्रेस के प्रमुख नेता मिश्री सदा जीतते थे। पशुपति पारस ने बताया कि उस समय रामविलास पासवान विश्वविद्यालय में कानून के छात्र थे।
सरकारी नौकरी की तैयारी
पशुपति पारस ने कहा कि रामविलास पासवान पटना के राजेंद्र नगर में हॉस्टल में रहते थे और बिहार लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। जब मध्यावधि चुनाव की घोषणा हुई, तो समाजवादी पार्टी के नेताओं ने युवा और शिक्षित नेता की आवश्यकता महसूस की।
उन्होंने रामविलास पासवान का नाम सुझाया, जो बीपीएससी की परीक्षा में सफल हुए थे और डीएसपी के पद के लिए योग्य हो गए थे। उनके परिवार को इस सफलता पर गर्व था।
पहला चुनाव और जीत
पशुपति पारस ने बताया कि जब रामविलास पासवान ने अपने पिता को बताया कि उन्हें चुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिला है, तो उनके पिता नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि डीएसपी का पद बड़ा है। लेकिन रामविलास ने चुनाव लड़ने का निर्णय लिया।
पशुपति पारस ने कहा कि उस समय उनकी बहन की शादी हुई थी और दहेज में उन्हें साइकिल दी गई थी। उसी साइकिल पर बैठकर रामविलास ने चुनाव प्रचार किया। अंततः उन्होंने मिश्री सदा को हराकर विधायक बनने में सफलता प्राप्त की।
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