प्राचीन काल में संभोग की विधियाँ और उनके प्रति दृष्टिकोण विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न थे। यह केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं थी, बल्कि इसे धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता था।
विभिन्न देशों में लैंगिक जीवन के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण थे।
भारत में 'कामसूत्र' और 'तंत्रशास्त्र' जैसे ग्रंथों में लैंगिक संबंधों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। कामसूत्र में केवल संभोग की विधियाँ ही नहीं, बल्कि प्रेम, सौंदर्य और संबंधों पर भी ध्यान दिया गया है। वहीं, तंत्रशास्त्र में इसे आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण माना गया।
राजमहलों और उच्च वर्गों में संभोग केवल संतान उत्पत्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि इसे आनंद और आपसी संतोष के लिए भी किया जाता था।
प्राचीन ग्रीस और रोम में लैंगिकता
ग्रीक और रोमन संस्कृतियों में लैंगिक संबंधों के प्रति एक खुलापन था। ये संबंध केवल विवाह तक सीमित नहीं थे; इन्हें कला, सौंदर्य और दैवी कृपा के रूप में देखा जाता था। मंदिरों में 'सेक्रेड प्रॉस्टिट्यूशन' की प्रथा थी, जहां धार्मिक कार्य के रूप में संभोग किया जाता था। ग्रीक दार्शनिकों ने लैंगिकता पर विभिन्न विचार प्रस्तुत किए, जैसे प्लेटो का 'अवर्णनीय प्रेम' का सिद्धांत।
मध्यकालीन काल में लैंगिकता
इस काल में चर्च का प्रभाव बढ़ा और लैंगिक संबंधों पर कई प्रतिबंध लगाए गए। विवाह के बिना संबंधों को पाप माना जाता था। कुछ समाजों में इसे केवल संतान उत्पत्ति के लिए आवश्यक समझा जाता था।
पारंपरिक आदिवासी और प्राकृतिक संस्कृतियों में संभोग
कुछ आदिवासी समाजों में लैंगिकता अधिक मुक्त थी और उस पर कोई प्रतिबंध नहीं था। यहाँ लैंगिक शिक्षा छोटी उम्र में दी जाती थी ताकि रिश्तों और गर्भावस्था के प्रति जागरूकता बनी रहे। संभोग को एक प्राकृतिक प्रक्रिया माना जाता था।
प्राचीन चीन और जापान में लैंगिकता
ताओवाद के अनुसार, संभोग को जीवनशक्ति (Chi) को बढ़ाने के लिए आवश्यक माना जाता था। यिन और यांग के सिद्धांत में लैंगिक संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया जाता था। सम्राटों के लिए हरम की व्यवस्था थी, जहां वे कई स्त्रियों के साथ संबंध बना सकते थे। जापानी गीशा संस्कृति ने सौंदर्य, संभोग और प्रेम के एक अलग दृष्टिकोण को विकसित किया।
संक्षेप में
हर काल और संस्कृति में लैंगिक संबंधों का महत्व भिन्न था। कुछ समाजों में इसे मुक्त रूप से स्वीकार किया गया, जबकि अन्य में इस पर कठोर प्रतिबंध थे। प्राचीन भारत में इसे केवल प्रजनन तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि इसे आनंद, कला और आध्यात्मिक उन्नति का एक माध्यम माना गया। आधुनिक समय में, विज्ञान और मानसिकता के मद्देनजर, परस्पर आनंद और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
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