भारत अब उन रेयर अर्थ मटीरियल्स पर ध्यान दे रहा है, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और डिफेंस इक्विपमेंट्स में होता है. अभी तक भारत इनकी जरूरत के लिए के लिए ज्यादातर आयात पर निर्भर है. कंसल्टिंग फर्म प्राइमस पार्टनर्स ने हाल ही में फ्रॉम एक्सट्रैक्शन टू इनोवेशन नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें बताया गया है कि भारत कैसै घरेलू स्तर पर रेयल अर्थ मैग्नेट्स का प्रोडक्शन बढ़ा सकता है. ये योजना सरकार के उस टारगेट का हिस्सा है, जिसमें आयात पर निर्भरता घटाकर देश में ही विकास और प्रोडक्शन को बढ़ावा देना शामिल है.
नीति और जमीनी हकीकतरिपोर्ट में बताया गया है कि भारत को रेयर अर्थ मैग्नेट्स के सेक्टर में आगे बढ़ाने के लिए पांच मुख्य कदम उठाए जा सकते हैं. ये कदम एक बढ़िया रोडमैप दिखाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू करना अभी बड़ी चुनौती है. इसमें सबसे पहले ये सुझाव दिया गया है कि नियोडिमियम-प्रसीओडिमियम (NdPr) ऑक्साइड और NdFeB मैग्नेट्स के लिए लंबे समय तक कीमतों की गारंटी दी जाए. ताकि कंपनियों को निवेश और प्रोडक्शन में भरोसा मिले.
दूसरा मिनिरल्स से समृद्ध राज्यों में पायलट हब यानी छोटे -छोटे केंद्र बनाए जाएं, जहां से प्रोडक्शन और रिसर्च को बढ़ावा मिल सके. तीसरा इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) की प्रोडक्शन कैपेसिटी को तेजी से बढ़ाने की जरूरत है, ताकि घरेलू स्तर पर सप्लाई मजबूत हो. चौथा एक राष्ट्रीय मैग्नेट भंडार (National Magnet Stockpile) तैयार किया जाए जिससे आने वाले टाइम में बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके. पांचवां इसी पूरे प्रोसेस को कॉनडिनेट करने के लिए नीति आयोग या वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (DPIIT) के तहत एक केंद्रीय सेल बनाई जाए, जो योजनाओं पर निगरानी रख सके.
छोटे-छोटे कदम, लंबा रास्तापिछले एक दो साल में सरकार ने कुछ ठोस कदम भी उठाए हैं. 2024-25 के बजट में कई महत्वपूर्ण खनिजों पर कस्टम ड्यूटी हटाई गई. वहीं पिछले ही साल विशाखापट्टनम में IREL का Rare Earth Permanent Magnet (REPM) प्लांट शुरू हुआ. करीब 197 करोड़ रुपए की लागत से बने इस प्लांट की क्षमता 3,000 किलोग्राम सालाना है.
चीन की पकड़ और भारत की चुनौतीरेयर अर्थ मैग्नेट प्रोडक्शन में आज भी चीन लगभग 90 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है. यानी पूरी दुनिया की सप्लाई बीजिंग की नीतियों और निर्यात प्रतिबंधों पर निर्भर है. भारत के पास खनिज भंडार जरूर हैं, लेकिन उन्हें खोजने, निकालने और प्रोसेस करने की क्षमता अभी बहुत सीमित है. जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, झारखंड और कर्नाटक में खोज का काम शुरू हुआ है.
बढ़ती मांग और बढ़ता दबावभारत ने 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक व्हीकल पेनिट्रेशन और 2070 तक नेट-जीरो एमिशन का टारगेट तय किया है. हर इलेक्ट्रिक वाहन में लगभग 2 किलो NdFeB मैग्नेट लगता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2030 तक भारत की मांग 7,000 टन से भी ज्यादा हो सकती है और ये मांग सिर्फ EV तक सीमित नहीं है रिन्यूएबल एनर्जी, ऑटोमेशन और डिफेंस सेक्टर भी इन्हीं के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.
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