Mumbai , 10 अक्टूबर . शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी दलों के प्रति नीति और India की विदेश नीति को लेकर तीखी टिप्पणी की.
उन्होंने कहा कि बिहार में हाल के Political घटनाक्रम भाजपा की पुरानी रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें वह पहले सहयोगी दलों की शक्ति बढ़ाती है और फिर उन्हें कमजोर कर खत्म कर देती है. Maharashtra में शिवसेना को सत्ता से हटाने के बाद संविधान की अनदेखी कर तोड़फोड़ की गई, जो 25 साल तक भाजपा की सहयोगी रही. यही तरीका उन्होंने रामविलास पासवान की पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के साथ भी अपनाया. भाजपा सहयोग नहीं, बल्कि वर्चस्व स्थापित करना चाहती है.
उन्होंने एसआईआर के मुद्दे पर बात करते हुए मतदाता सूची में हेरफेर के आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि जिस तरह एसआईआर लागू की गई और जिस पर Supreme court तक मामला पहुंचा, उससे साबित होता है कि विपक्ष समर्थक वोटर सेक्शन को रणनीतिक रूप से हटाया जा रहा है. Maharashtra में भी बिना नाम लिए वोटर्स की जोड़तोड़ की गई, जिसके खिलाफ अब भी लड़ाई जारी है. ऐसी ही स्थिति Odisha, Haryana और दिल्ली में भी दिखी, जहां बीजेडी और आम आदमी पार्टी ने इसका अनुभव किया. अगर यही प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में भी अपनाई जा रही है, तो यह एक सुनियोजित साजिश लगती है और आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े करती है.
विदेश नीति पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इजरायल-फिलीस्तीन दोनों के साथ हमारे राजनयिक संबंध हैं. पश्चिम एशिया में दो वर्षों से चल रहे संघर्ष के बीच अगर अब शांति समझौते की दिशा में कदम उठ रहे हैं, तो उसका स्वागत होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि इजरायल की हर कार्रवाई का मूल्यांकन अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ लॉ और संयुक्त राष्ट्र करे. India ने हमेशा गाजा के लोगों को चिकित्सा और खाद्य सहायता दी है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस शांति प्रयास पर भी नकारात्मक माहौल बनाया जा रहा है.
अफगानिस्तान के साथ India के संबंधों पर सांसद ने कहा कि India और अफगानिस्तान के संबंध लंबे, गहरे और सहयोगपूर्ण रहे हैं. मुश्किल परिस्थितियों में भी India ने अफगानिस्तान की जनता की मदद की है, यहां तक कि उनकी क्रिकेट टीम को भी समर्थन दिया. लेकिन, तालिबान शासन के तहत महिलाओं पर लगाई गई पाबंदियां चिंताजनक हैं. यह Government देश को फिर से पिछड़ी सोच की ओर ले जा रही है.
उन्होंने कहा कि India लोकतंत्र, संविधान और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है, इसलिए यह विचार करना जरूरी है कि क्या ऐसे शासन के साथ स्थायी सहयोग संभव है, जहां महिला सशक्तीकरण की अनदेखी हो रही है.
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एकेएस/एबीएम
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