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भागलपुर में 'प्रधानमंत्री मुद्रा योजना' से व्यापारियों को मिली संजीवनी

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भागलपुर, 8 अप्रैल . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई मुद्रा योजना आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ता हुआ एक सशक्त कदम है. पीएम मोदी के नेतृत्व में इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई. इस योजना का लाभ लाखों लोगों को हुआ है. बिहार के भागलपुर में रहने वाले छोटे व्यापारियों ने अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए पीएम मोदी की इस सराहनीय योजना का लाभ लिया और अपने व्यापार को एक अलग ऊंचाई तक ले गए. इस योजना के सफलतापूर्वक 10 वर्ष पूरे होने पर कुछ लाभार्थियों ने न्यूज एजेंसी से बात की.

पीएम मुद्रा योजना के लाभार्थी मनीष भगत ने बताया कि पीएम मोदी द्वारा शुरू की गई यह मुद्रा योजना हम जैसे व्यापारियों के लिए वरदान है. क्योंकि, व्यापार को बढ़ाने के लिए पूंजी की जरूरत होती है और बैंक से लोन लेना भी एक चुनौती होती है. लेकिन, मुद्रा योजना के तहत बैंक से आसानी से लोन मिला. कोई गारंटी नहीं देनी पड़ी. इस योजना के तहत 5 लाख रुपये का लोन मिला. उन्होंने कहा कि अब मैं अपने व्यापार को बढ़ा रहा हूं.

लाभार्थी राजीव ने बताया कि पीएम मुद्रा योजना के तहत पांच लाख रुपये का लोन लिया. इस योजना के तहत मिले लोन से व्यापार को बढ़ाने में आसानी हुई है. मैं पीएम मोदी का आभार जताना चाहता हूं कि जिसकी वजह से हमें लोन की सुविधा मिली है. यह योजना छोटे व्यापारियों के लिए वरदान है.

लाभार्थी नानक कुमार ने बताया कि पीएम मोदी की यह योजना काफी लाभकारी है. मैंने इस योजना के तहत बैंक से छह लाख का लोन लिया है. मैं इस योजना के लिए पीएम मोदी का आभार जताना चाहता हूं. उन्होंने बताया कि वह अपने व्यापार को बढ़ा रहे हैं और उनके जीवन में इस योजना की वजह से बदलाव आया है.

बता दें कि लाभार्थी मनीष हार्डवेयर की दुकान चलाते हैं. राजीव पेपर ब्लॉक बनाने का काम करते हैं. वहीं, नानक भागलपुर में आइसक्रीम पार्लर चला रहे हैं.

ज्ञात हो कि अप्रैल 2015 में लॉन्च होने के बाद से, पीएमएमवाई ने 32.61 लाख करोड़ रुपये के 52 करोड़ से ज्यादा लोन स्वीकृत किए हैं, जिससे देश भर में उद्यमिता क्रांति को बढ़ावा मिला है. व्यापार वृद्धि अब सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं रह गई है. यह छोटे शहरों और गांवों तक फैल रही है, जहां पहली बार उद्यमी अपने भाग्य की बागडोर संभाल रहे हैं. मानसिकता में बदलाव स्पष्ट है कि लोग अब नौकरी चाहने वाले नहीं रह गए हैं, वे नौकरी देने वाले बन रहे हैं.

डीकेएम/एएस

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