New Delhi, 5 अक्टूबर . आज जब दुनिया डिजिटल क्रांति, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चंद्रमा तक पहुंचने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर लाखों बच्चे और वयस्क ऐसे भी हैं, जो जीवन की बुनियादी जरूरतों और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सेरेब्रल पाल्सी एक ऐसा ही रोग है, जो न सिर्फ व्यक्ति के शरीर को प्रभावित करता है, बल्कि उसके पूरे जीवन और सामाजिक अस्तित्व को चुनौती देता है. इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 6 अक्टूबर को दुनियाभर में विश्व सेरेब्रल पाल्सी दिवस मनाया जाता है.
सेरेब्रल पाल्सी या सीपी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो मस्तिष्क के उस हिस्से को प्रभावित करता है जो शरीर की हरकतों, मांसपेशियों और संतुलन को नियंत्रित करता है. यह आमतौर पर जन्म से पहले, जन्म के समय या जन्म के तुरंत बाद मस्तिष्क को हुई चोट या ऑक्सीजन की कमी के कारण होता है. इसके परिणामस्वरूप बच्चों में चलने-फिरने में कठिनाई, बोलने, देखने या निगलने में परेशानी, मानसिक विकास में बाधा और मांसपेशियों में कमजोरी जैसे लक्षण देखे जाते हैं. सीपी पूरी जिंदगी तक बनी रहती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, सेरेब्रल पाल्सी दुनिया भर में बच्चों में पाई जाने वाली सबसे आम शारीरिक विकलांगता है. India में भी इसका प्रसार चिंताजनक है. अनुमान है कि हर एक हजार जन्मों में करीब तीन बच्चे सेरेब्रल पाल्सी से प्रभावित होते हैं. इसके बावजूद, इस बीमारी को लेकर समाज में जागरूकता की कमी है. कई बार इसे मानसिक विकलांगता समझ लिया जाता है, जबकि यह पूरी तरह सही नहीं है. हर व्यक्ति में इसके लक्षण अलग होते हैं और कुछ मामलों में हल्की देखभाल से ही सामान्य जीवन संभव होता है.
विश्व सेरेब्रल पाल्सी दिवस की शुरुआत 2012 में सेरेब्रल पाल्सी एलायंस द्वारा की गई थी. इसका उद्देश्य सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित बच्चों, वयस्कों और उनके परिवारों की आवाज को वैश्विक स्तर पर मंच देना है. इस दिन दुनिया भर के संगठन, स्कूल, अस्पताल और स्वयंसेवी संस्थाएं सेमिनार, वर्कशॉप और जन जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और लोगों को इस स्थिति के बारे में सही जानकारी, इसके लक्षणों की पहचान और इससे जुड़े सामाजिक भेदभाव को कम करने की कोशिश करते हैं.
विश्व सेरेब्रल पाल्सी दिवस का इस साल का थीम ‘अद्वितीय और एकजुट’ है. यह थीम एक गहरे सामाजिक संदेश को उजागर करता है. यह थीम हमें याद दिलाती है कि सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित व्यक्ति को दया नहीं, बल्कि बराबरी का हक चाहिए.
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पीके/एएस
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