राजस्थान के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू की अरावली पर्वतमाला में स्थित अधर देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर लगभग 5500 वर्ष पुराना है और इसकी सबसे अनोखी बात यह है कि यहां माता के दर्शन के लिए गुफा के भीतर से होकर गुजरना पड़ता है। यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और इसे मां कात्यायनी के गुप्त रूप की पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
अधर देवी या अर्बुदा देवी – एक ही शक्ति के विभिन्न नाम
इस मंदिर को अधर देवी, अर्बुदा देवी, और अंबिका देवी—इन तीनों नामों से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां मां पार्वती के अधर (होंठ) गिरे थे, जिसके कारण इसका नाम अधर देवी मंदिर पड़ा। स्कंद पुराण में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जहां मां के छठे स्वरूप कात्यायनी के रूप में विराजमान होने का वर्णन है।
अंबाजी शक्तिपीठ से पौराणिक संबंध
अधर देवी मंदिर का संबंध गुजरात में स्थित अंबाजी शक्तिपीठ से भी जुड़ा है, जो माउंट आबू के पास ही स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कात्यायनी और मां अंबा को बहनें माना जाता है। अंबाजी में मां के आठवें स्वरूप की पूजा होती है, और यह भी शक्तिपीठों में गिना जाता है।
विशेषताएं जो अधर देवी मंदिर को अन्य शक्तिपीठों से अलग बनाती हैं
अधर देवी मंदिर की विशेषताओं में सबसे पहली बात यह है कि यहां मां की गुप्त रूप में पूजा होती है, जो इसे अन्य शक्तिपीठों से अलग और विशिष्ट बनाती है। श्रद्धालुओं को मां के दर्शन के लिए गुफा के अंदर से होकर गुजरना पड़ता है, जो एक रहस्यमयी और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यह मंदिर लगभग 5500 साल पुराना है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को और भी बढ़ाता है। इतना ही नहीं, इस मंदिर का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों, विशेष रूप से स्कंद पुराण में भी मिलता है, जहां इसे शक्ति की छठी स्वरूप मां कात्यायनी का निवास स्थान बताया गया है। इसके अलावा, मंदिर का गुजरात स्थित अंबाजी शक्तिपीठ से आध्यात्मिक जुड़ाव भी इसे विशेष बनाता है, जहां मां के आठवें स्वरूप की पूजा होती है और मान्यता है कि ये दोनों बहनें हैं।
नवरात्रि में उमड़ता श्रद्धालुओं का जनसैलाब
नवरात्रि के पावन अवसर पर अधर देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। देशभर से भक्त मां कात्यायनी के दर्शन हेतु यहां आते हैं। अष्टमी की रात मंदिर परिसर में विशेष महायज्ञ आयोजित किया जाता है, जिसकी पूर्णाहुति नवमी की सुबह होती है। इन पावन दिनों में अखंड पाठ का भी आयोजन होता है, जो दिन-रात निरंतर चलता है। नवरात्रि के दौरान रोजाना लाखों श्रद्धालु मां के दरबार में पहुंचते हैं, जिससे मंदिर परिसर पूरी तरह आस्था और भक्ति से सराबोर हो जाता है। यह मंदिर भारत के 52 शक्तिपीठों में से एक है और पौराणिक मान्यता है कि इसी स्थान पर मां पार्वती का अधर (होंठ) गिरा था। तभी से इस शक्ति स्थल को अधर देवी या अर्बुदा देवी के नाम से जाना जाता है।
350 सीढ़ियों की कठिन राह, लेकिन मां के दर्शन सरल
मां अधर देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को करीब 350 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। हालांकि, भक्तों का मानना है कि मां की कृपा से यह चढ़ाई बेहद आसान प्रतीत होती है, और मां के दर्शन सहजता से हो जाते हैं।
कात्यायनी शक्तिपीठ की विशेषता
5500 वर्ष पुराना यह कात्यायनी शक्तिपीठ, एक विशाल प्राकृतिक गुफा में स्थित है। इस गुफा में एक समय में लगभग 100 व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। यह मंदिर न केवल पौराणिक महिमा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण भी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक रूप से आनंदित करता है। यह शक्तिपीठ श्रद्धा, आस्था और अध्यात्म का ऐसा संगम है, जहां हर भक्त को मां की दिव्य ऊर्जा का अहसास होता है। नवरात्रि के नौ दिनों में यहां की हर एक सीढ़ी, हर एक मंत्र और हर एक श्रद्धालु की उपस्थिति इस स्थान को और भी पावन बना देती है।
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