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Bhagwan Dukh Sanwad: भगवान ने दुःख से पूछा कि मेरे भक्तों को क्यों सताते हो, इस पर दुःख ने खोला यह राज

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एक बार भगवान ने दुःख से पूछा कि, ‘तू मेरे भक्तों को क्यों सताता है?’ दुःख ने भगवान से कहा, ‘भगवन! मैं कहां किसी को सताता हूं, मैं कभी भी अपने आप किसी के पास बिना बुलाए नहीं जाता हूं, जब मनुष्य स्वयं ही मुझे बुलाता है, तो मैं उसके पास चला जाता हूं। भला बताइए, इसमें मेरा क्या दोष है?’ भगवान का आदेश पाकर दुःख मनुष्यों से कहता है कि, ‘मैं तो बस परिणाम हूं, कारण तुम ही हो।’दुःख ने जो कुछ कहा, वह एकदम सही है, हम अपने दुःखों को स्वयं निमंत्रण देते हैं। हम अपने कर्मों से, अपनी इच्छाओं से और अपनी कामनाओं से स्वयं ऐसी स्थितियां एवं परिस्थितियों का सृजन करवा लेते हैं, जो दुःख को मीलों दूर से हमारे पास खीच लाती हैं। हमारे अनैतिक कर्म, अशुभ संकल्प, नकारात्मक विचार ही दुःख को आकर्षित करते हैं, जैसे गंदगी से मक्खियां आती हैं, वैसे ही बुरे कर्मों से दुःख आता है। मनुष्य अपनी गलती नहीं देखता है, दूसरों का दोष देखता है, इसलिए दुखी रहता है। जब मनुष्य को आत्मज्ञान हो जाता है, तो वह अपने जीवन के दुःखों को अपनी विजय में बदल देता है, दुःख भरी उर्जा को सुख भरी उर्जा में परिवर्तित करना भौतिकी के उर्जा के सिद्धान्त जैसा है। बस व्यक्ति को दुःखों की निवृत्ति और सुखों का सृजन करने का मार्ग पता होना चाहिए। हिन्दु धर्म में कर्म के परिणाम के रूप में दुःख को स्वीकार किया जाता है, जो पिछले कर्मों के कारण मनुष्य के वर्तमान जीवन में प्रभावी हो जाता है, दुःख की उत्पत्ति का कारण हमारे ही पूर्व के कर्मों में निहित है। अगर देखा जाए तो 90 प्रतिशत मानव का दुःख मानसिक है, जो व्यक्ति के भीतर ही उत्पन्न होता है। क्रोध, भय, घृणा, ईर्ष्या, असुरक्षा, लालसा और कई अन्य कारकों से पीड़ित मन दुःख उत्पन्न करता है। अगर आप इस रहस्य को जान गए, तो आप बदल सकते हैं अपना जीवन।
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