विवेक शुक्ला: 1956 में साउथ दिल्ली के सरोजिनी नगर के फ्लैट नए-नए बने थे। यहां केंद्र सरकार के कर्मचारियों को घर आवंटित हो रहे थे, कुछ फ्लैट अभी भी खाली पडे थे। श्रीकांत दुबे अपने परिवार के साथ फ्लैट नंबर सी-155 में रहते थे। वो रेलवे में थे और खासे सामाजिक भी। एक शाम उनके घर में विवेक शुक्ला बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के पडोसी बैठकर गपशप कर रहे थे। छठ पर्व आने वाला था। बातचीत में किसी ने सुझाव दिया कि सरोजिनी नगर में ही छठ मनाई जाए।
राजेंद्र और राजवंशी। तब सरोजिनी नगर और आसपास रहने वाले पूर्वांचल के करीब एक दर्जन परिवारों ने दिल्ली में पहली बार छठ उत्सव आयोजित करने की ठानी। उन्होंने अपने क्षेत्र में एक कृत्रिम तालाब बनाया और वहां छठ के अनुष्ठान किए। इसके बाद दिल्ली भोजपुरी समाज की स्थापना हुई। इसके सदस्यों ने 1957 में साइकल पर सवार होकर राष्ट्रपति भवन जाकर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को छठ उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण दिया। हालांकि, विभिन्न कारणों से राजेंद्र प्रसाद शामिल नहीं हो सके, लेकिन उनकी पत्नी राजवंशी देवी ने सरोजिनी नगर में आयोजित दूसरे छठ महापर्व में शिरकत की। अगले कुछ वर्षों तक वह इस आयोजन में शामिल होती रहीं। वह सभी के साथ आत्मीयता से मिलती। राजवंशी देवी कुछ समय अपने सरोजनी नगर में रहने वाले रिश्तेदार विश्वेश्वर नारायण के फ्लैट पर भी आती थी। उन्हें सब मां जी कहते।
ग्वायर हॉल से जेएनयू। बिहारी छात्र 1960 के दशक से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने लगे थे, जहां ग्वायर हॉल उनका गढ़ था। 1970 के दशक में जेएनयू की स्थापना के बाद उनकी संख्या में और इजाफा हुआ। इस बीच, दिल्ली से दूर पश्चिम बंगाल में 1970 के दशक में जूट मिलें बंद होने लगीं, जिससे कई मजदूर, जिनमें से अधिकांश बिहार के रहने वाले थे, बेरोजगार हो गए। इससे बिहारियों का दिल्ली की ओर पलायन शुरू हुआ। इस पलायन को अप्रत्यक्ष रूप से तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने आसान बनाया, जिन्होंने दिल्ली और पटना के बीच कई ट्रेनें शुरू की। धीरे-धीरे दिल्ली में बिहार की झलक दिखने लगी।
छठ की छटा । दिल्ली में लगभग 1985 से यमुना के तट पर छठ उत्सव शुरू हुआ। हालांकि छठ बिहार का प्राचीन पर्व है, लेकिन 30-35 साल पहले दिल्ली में ज्यादातर लोग इससे अनजान थे। बहरहाल अब छठ दिल्ली का भी पर्व हो चुका है। बेशक, छठ का उत्साह हर बिहारी को अपने घर की याद दिलाता है। इस दौरान यमुना के किनारे खड़े बिहारी ऐसा महसूस करते हैं जैसे वे बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, सोन, घाघरा या गंगा में डुबकी लगा रहे हों। अब तो हाल यह है कि बिहार की राजधानी भले पटना हो, बिहारियों की राजधानी दिल्ली बन चुकी है।
राजेंद्र और राजवंशी। तब सरोजिनी नगर और आसपास रहने वाले पूर्वांचल के करीब एक दर्जन परिवारों ने दिल्ली में पहली बार छठ उत्सव आयोजित करने की ठानी। उन्होंने अपने क्षेत्र में एक कृत्रिम तालाब बनाया और वहां छठ के अनुष्ठान किए। इसके बाद दिल्ली भोजपुरी समाज की स्थापना हुई। इसके सदस्यों ने 1957 में साइकल पर सवार होकर राष्ट्रपति भवन जाकर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को छठ उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण दिया। हालांकि, विभिन्न कारणों से राजेंद्र प्रसाद शामिल नहीं हो सके, लेकिन उनकी पत्नी राजवंशी देवी ने सरोजिनी नगर में आयोजित दूसरे छठ महापर्व में शिरकत की। अगले कुछ वर्षों तक वह इस आयोजन में शामिल होती रहीं। वह सभी के साथ आत्मीयता से मिलती। राजवंशी देवी कुछ समय अपने सरोजनी नगर में रहने वाले रिश्तेदार विश्वेश्वर नारायण के फ्लैट पर भी आती थी। उन्हें सब मां जी कहते।
ग्वायर हॉल से जेएनयू। बिहारी छात्र 1960 के दशक से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने लगे थे, जहां ग्वायर हॉल उनका गढ़ था। 1970 के दशक में जेएनयू की स्थापना के बाद उनकी संख्या में और इजाफा हुआ। इस बीच, दिल्ली से दूर पश्चिम बंगाल में 1970 के दशक में जूट मिलें बंद होने लगीं, जिससे कई मजदूर, जिनमें से अधिकांश बिहार के रहने वाले थे, बेरोजगार हो गए। इससे बिहारियों का दिल्ली की ओर पलायन शुरू हुआ। इस पलायन को अप्रत्यक्ष रूप से तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने आसान बनाया, जिन्होंने दिल्ली और पटना के बीच कई ट्रेनें शुरू की। धीरे-धीरे दिल्ली में बिहार की झलक दिखने लगी।
छठ की छटा । दिल्ली में लगभग 1985 से यमुना के तट पर छठ उत्सव शुरू हुआ। हालांकि छठ बिहार का प्राचीन पर्व है, लेकिन 30-35 साल पहले दिल्ली में ज्यादातर लोग इससे अनजान थे। बहरहाल अब छठ दिल्ली का भी पर्व हो चुका है। बेशक, छठ का उत्साह हर बिहारी को अपने घर की याद दिलाता है। इस दौरान यमुना के किनारे खड़े बिहारी ऐसा महसूस करते हैं जैसे वे बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, सोन, घाघरा या गंगा में डुबकी लगा रहे हों। अब तो हाल यह है कि बिहार की राजधानी भले पटना हो, बिहारियों की राजधानी दिल्ली बन चुकी है।
You may also like
क्या खेसारी लाल यादव की पत्नी चंदा यादव करेंगी चुनावी मैदान में धमाल? जानें पूरी कहानी!
उज्जैनः मामूली विवाद पर बदमाशों ने युवक को मारी तलवार
हंगरी में शांति रैली: 1956 की क्रांति को याद करने का जश्न
कौन हैं 'ठुमरी की रानी' गिरिजा देवी? जानें उनके संगीत सफर की अनकही बातें
हिमानी शिवपुरी की दिल दहला देने वाली कहानी: 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के सेट पर छिपा दर्द