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दिल्ली में PUC जांच के अंदर गजब की धांधली, गाड़ियों को बिना चेकिंग जारी कर दिए सर्टिफिकेट

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नई दिल्ली: दिल्ली में गाड़ियों के धुएं से होने वाले प्रदूषण के मुद्दे पर सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट से कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 के बीच प्रदूषण जांच केंद्रों पर चेकिंग के लिए 22.14 लाख डीजल की गाड़ियां आईं। इनमें से करीब 24 प्रतिशत गाड़ियों की टेस्ट वैल्यू ही रिकॉर्ड नहीं की गई। वहीं, 4007 केस ऐसे थे, जिनमें टेस्ट वैल्यू यानी प्रदूषण की सीमा लिमिट से ज्यादा थी। इसके बावजूद उन्हें पीयूसी सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए।इसी तरह 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 के बीच प्रदूषण जांच केंद्रों पर पेट्रोल, सीएनजी और एलपीजी की कुल 65.36 लाख गाड़ियों की जांच कर उन्हें पीयूसी सर्टिफिकेट जारी किए गए। इनमें से 1.08 लाख गाड़ियां ऐसी थीं, जिन्हें तय सीमा से ज्यादा धुआं छोड़ने के बावजूद पास कर दिया गया। ऑडिट के दौरान 7,643 केस ऐसे भी पाए गए, जिनमें एक ही सेंटर पर एक ही समय पर एक से अधिक गाड़ियों की पॉल्यूशन जांच की गई, जो कि संभव ही नहीं है। कुल 76,865 मामलों में एक मिनट से भी कम समय में गाड़ियों की पॉल्यूशन जांच कर पीयूसी सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए। प्रदूषण जांच केंद्रों पर इतनी गड़बड़ियों के बावजूद न तो सरकार ने खुद उनकी कोई जांच की और ना ही कोई थर्ड पार्टी ऑडिट कराया, जिससे कि जांच की क्वॉलिटी को सुनिश्चित किया जा सके। ऊपरी तौर पर देखकर घोषित किया फिटगाड़ियों की फिटनेस जांच पर भी रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 95 प्रतिशत गाड़ियों की फिटनेस जांच मैनुअल टेस्टिंग सेंटरों पर हुई, जहां केवल गाड़ियों को ऊपरी तौर पर देखकर फिट घोषित कर दिया गया। झुलझुली स्थित ऑटोमेटेड वीकल इंस्पेक्शन यूनिट का भी बेहद कम उपयोग हुआ। 2020-21 के दौरान वहां हर दिन औसतन केवल 24 गाड़ियों की फिटनेस जांच हुई, जबकि इसकी क्षमता प्रतिदिन 167 गाड़ियों की है। पिछले 10 साल में नहीं खरीदी गई एक भी DTC बसरिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि डीटीसी बसों की संख्या में लगातार आ रही कमी के चलते दिल्ली में लोगों को मजबूरन प्राइवेट गाड़ियां खरीदनी पड़ीं। जिन्होंने प्रदूषण बढ़ाने में योगदान दिया। रिपोर्ट में साफतौर से यह नोट किया गया है कि दिल्ली सरकार ने पिछले 10 साल से (2011-12 से 2020-21 के दौरान) डीटीसी के लिए एक भी नई बस नहीं खरीदी, जबकि दिल्ली को 2011 में ही 11 हजार बसों की जरूरत थी। अप्रैल 2014 में डीटीसी 5,223 बसें चला रही थी, जो मार्च 2021 में घटकर 3760 रह गईं। सड़कों पर कम हुईं बसें तो लोगों ने खरीदीं गाड़ियांक्लस्टर स्कीम के तहत चल रही बसों की तादाद मार्च 2015 में 1,292 थी, जो मार्च 2021 तक बढ़कर 2,990 हो गई। इस बीच 2018 में सरकार ने 1000 नई इलेक्ट्रिक बसें खरीदने का फैसला किया और 385 बसों की खरीद के लिए टेंडर भी निकाला। लेकिन जून 2021 में टेंडर रद्द कर दिया गया। सड़कों पर बसें कम होने के कारण लोगों ने अपनी गाड़ियां खरीदनी शुरू कर दीं। मार्च 2011 तक दिल्ली में 43 लाख टू वीलर रजिस्टर्ड थे, जिनकी तादाद मार्च 2021 तक बढ़कर 81 लाख हो गई। वहीं गाड़ियों की कुल संख्या भी 69 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गई।
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