Shailputri Mata Puja Vidhi, Bhog And Katha : आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इस पावन अवसर पर मां दुर्गा के पहले रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना करना के बाद माता शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से बेहद शुभ फल की प्राप्ति होती है। माता पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है। शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के चलते पार्वती माता को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं और जीवन में हर प्रकार के दुखों से मुक्ति मिल सकती है। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं शैलपुत्री माता की पूजा करने की विधि, प्रिय भोग, मंत्र और व्रत कथा...
मां शैलपुत्री का ऐसा है स्वरूप
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है, जिनका स्वरूप बेहद शांत, सुशील, सरल और दया से पूर्ण होता है। माता के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभायमान है। ये माता रानी के अद्भुत और शक्ति से भरे स्वरूप का प्रतीक होता है। शैलपुत्री माता की सवारी वृषभ होने के कारण उन्हें वृषभारूढ़ा भी कहा जाता है। उनका तपस्वी रूप बहुत ही प्रेरणादायक नजर आता है। माता ने घोर तपस्या की, जो समस्त जीवों की रक्षिका हैं। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा और व्रत करने से माता विशेष रूप से कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं। कोई भी विपत्ति पड़ने पर मां शैलपुत्री भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं। मां शैलपुत्री साधक के मूलाधार चक्र को जागृत करने में भी सहायता करती हैं। यह चक्र हमारे शरीर का ऐसा ऊर्जा केंद्र है दो हमें स्थिरता, सुरक्षा और मानसिक शांति दिलाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री को लगाएं इन चीजों का भोग
पूजा और कथा का पाठ करने के बाद मां शैलपुत्री को विशेष रूप से सफेद रंग की सामग्री अर्पित की जाती है। उनकी पूजा में सफेद रंग का खास महत्व होता है, जिसे शांति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में माता की पूजा के बाद उन्हें सफेद रंग की मिठाई, खीर, खाजा, सफेद लड्डू आदि भोग में लगाएं। इसके अलावा, आप दूध, दही आदि भी चढ़ा सकते हैं। शाम के समय भी माता की पूजा और आरती करनी चाहिए।
क्या है मां शैलपुत्री का मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्,
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम्,
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:,
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
मां शैलपुत्री व्रत कथा
देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। एक बार दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इसमें सभी देवताओं को दक्ष द्वारा आमंत्रित किया गया था। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा था। लेकिन देवी सती को यज्ञ में भाग लेने की तीव्र इच्छा थी। इस पर भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि शायद उन्हें जानबूझकर इस यज्ञ में नहीं आमंत्रित किया गया है। भगवान शिव ने सती को यह बात समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन देवी सती अपनी जिद पर अड़ी रहीं। ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें आखिर में यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।
देवी सती जब अपने पिता के यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने सती के साथ बुरा व्यवहार किया। सती की माता को छोड़कर किसी ने भी उनसे सम्मानपूर्वक वार्तालाप नहीं किया और सभी उनका मजाक उड़ाने लगे। यह अपमान सती के लिए असहनीय हो गया था। अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा किए गए अपमान के चलते सती बहुत आहत हुईं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह बहुत क्रोधित हो गए और दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया जो सती को बिल्कुल पसंद नहीं आया। उस समय देवी सती ने खुद को अग्नि में जला लिया।
भोलेनाथ ने क्रोधित होकर दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद, सती ने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप जन्म लिया और वो हिमालय की पुत्री बनीं। मान्यता है कि शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में ही सती का अगला जन्म हुआ था। इसीलिए उन्हें शैलपुत्री कहा गया, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ और वो दोबारा उनकी पत्नी बन गईं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा-अर्चना करने से जातक की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। वहीं, कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है।
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार, करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी, तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे, जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू, दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी, आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो, सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के, गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं, प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अम्बे, शिव मुख चंद्र चकोरी अम्बे।
मनोकामना पूर्ण कर दो, भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
जोर से बोलो जय माता दी, सारे बोले जय माता दी।
मां शैलपुत्री का ऐसा है स्वरूप
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है, जिनका स्वरूप बेहद शांत, सुशील, सरल और दया से पूर्ण होता है। माता के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभायमान है। ये माता रानी के अद्भुत और शक्ति से भरे स्वरूप का प्रतीक होता है। शैलपुत्री माता की सवारी वृषभ होने के कारण उन्हें वृषभारूढ़ा भी कहा जाता है। उनका तपस्वी रूप बहुत ही प्रेरणादायक नजर आता है। माता ने घोर तपस्या की, जो समस्त जीवों की रक्षिका हैं। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा और व्रत करने से माता विशेष रूप से कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं। कोई भी विपत्ति पड़ने पर मां शैलपुत्री भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं। मां शैलपुत्री साधक के मूलाधार चक्र को जागृत करने में भी सहायता करती हैं। यह चक्र हमारे शरीर का ऐसा ऊर्जा केंद्र है दो हमें स्थिरता, सुरक्षा और मानसिक शांति दिलाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि
- माता की पूजन विधि का वर्णन भागवत पुराण में भी मिलता है। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री मां की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह जल्दी उठें क्योंकि उनकी पूजा का आरंभ ब्रह्म मुहूर्त में होता है।
- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शुद्ध व साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध कर लें।
- अब मां शैलपुत्री प्रतिमा या मूर्ति चौकी पर स्थापित करें और पूरे परिवार के साथ विधि-पूर्वक कलश की स्थापना कर लें। इसके बाद, मां शैलपुत्री के ध्यान मंत्र का उच्चारण करें।
- 'ओम देवी शैलपुत्र्यै नमः, वंदे वाञ्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्, वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्, या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः' मंत्र का जाप करें। साथ ही, नवरात्रि व्रत का संकल्प भी लें।
- नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से करनी चाहिए। इसमें सभी दिशाओं, तीर्थों और नदियों का आह्वान करने का विधान होता है।
- इसके बाद, मां को सफेद, पीले या लाल रंग के ताजे पुष्प अर्पित करें और कुमकुम का तिलक लगाएं। फिर, माता शैलपुत्री के सामने धूप-दीपक जलाएं और पांच देसी घी के दीये भी अवश्य प्रज्वलित करें।
- अब मां शैलपुत्री की आरती उतारें। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जातक पर माता की विशेष कृपा बनी रहती है।
- आरती के बाद मां शैलपुत्री की कथा, दुर्गा स्तुति, दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। साथ ही, पूरे परिवार के साथ 'जय माता दी' के जयकारे जरूर लगाएं।
मां शैलपुत्री को लगाएं इन चीजों का भोग
पूजा और कथा का पाठ करने के बाद मां शैलपुत्री को विशेष रूप से सफेद रंग की सामग्री अर्पित की जाती है। उनकी पूजा में सफेद रंग का खास महत्व होता है, जिसे शांति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में माता की पूजा के बाद उन्हें सफेद रंग की मिठाई, खीर, खाजा, सफेद लड्डू आदि भोग में लगाएं। इसके अलावा, आप दूध, दही आदि भी चढ़ा सकते हैं। शाम के समय भी माता की पूजा और आरती करनी चाहिए।
क्या है मां शैलपुत्री का मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्,
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम्,
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:,
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
मां शैलपुत्री व्रत कथा
देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। एक बार दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इसमें सभी देवताओं को दक्ष द्वारा आमंत्रित किया गया था। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा था। लेकिन देवी सती को यज्ञ में भाग लेने की तीव्र इच्छा थी। इस पर भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि शायद उन्हें जानबूझकर इस यज्ञ में नहीं आमंत्रित किया गया है। भगवान शिव ने सती को यह बात समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन देवी सती अपनी जिद पर अड़ी रहीं। ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें आखिर में यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।
देवी सती जब अपने पिता के यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने सती के साथ बुरा व्यवहार किया। सती की माता को छोड़कर किसी ने भी उनसे सम्मानपूर्वक वार्तालाप नहीं किया और सभी उनका मजाक उड़ाने लगे। यह अपमान सती के लिए असहनीय हो गया था। अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा किए गए अपमान के चलते सती बहुत आहत हुईं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह बहुत क्रोधित हो गए और दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया जो सती को बिल्कुल पसंद नहीं आया। उस समय देवी सती ने खुद को अग्नि में जला लिया।
भोलेनाथ ने क्रोधित होकर दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद, सती ने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप जन्म लिया और वो हिमालय की पुत्री बनीं। मान्यता है कि शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में ही सती का अगला जन्म हुआ था। इसीलिए उन्हें शैलपुत्री कहा गया, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ और वो दोबारा उनकी पत्नी बन गईं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा-अर्चना करने से जातक की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। वहीं, कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है।
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार, करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी, तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे, जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू, दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी, आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो, सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के, गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं, प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अम्बे, शिव मुख चंद्र चकोरी अम्बे।
मनोकामना पूर्ण कर दो, भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
जोर से बोलो जय माता दी, सारे बोले जय माता दी।
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