नई दिल्ली: भारत और रूस के बीच गहरे संबंध हैं। दोनों देशों में व्यापारिक रिश्ते भी बेहद मजबूत हैं। लेकिन, अमेरिका के नए टैरिफ और प्रतिबंधों से इन रिश्तों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। भारत को अपनी विदेश और आर्थिक नीति को लेकर मुश्किल फैसले लेने पड़ सकते हैं। पूरे मामले के केंद्र में भारत का रूसी तेल आयात है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूसी तेल के आयात को रोकने का दबाव डाला है। इसके चलते रूस को होने वाले अरबों डॉलर के राजस्व पर खतरा मंडरा रहा है। व्लादिमीर पुतिन अमेरिका की अगुवाई वाली एक प्रमुख तेल पाइपलाइन को बंद करके जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। इससे एक नया ग्लोबल सप्लाई संकट भी पैदा हो सकता है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। 2022 से यह रूस से तेल खरीदने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। भारत रोजाना 20 लाख बैरल तक तेल खरीदता है। यह ग्लोबल सप्लाई का 2% है। चीन और तुर्की भी रूस से तेल खरीदने वाले प्रमुख देश हैं।
पुतिन के पास है जवाबी ऐक्शन का विकल्प
जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों के अनुसार, भारत का रास्ता क्रेमलिन के लिए बहुत अहम है। अगर इसमें कोई बाधा आती है तो रूस कजाकिस्तान से सीपीसी पाइपलाइन को बंद करके जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इस पाइपलाइन में अमेरिकी तेल कंपनियों शेवरॉन और एक्सॉन की बड़ी हिस्सेदारी है। यानी रूस के पास भी दबाव बनाने के तरीके हैं। ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर मॉस्को 7-9 अगस्त तक यूक्रेन के साथ शांति समझौता नहीं करता है तो वह रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर 100% तक का टैरिफ लगा देंगे। भारत से अमेरिका में आने वाले सभी सामानों पर 25% का टैरिफ शुक्रवार से लागू है।
दांव पर लगे हैं 590000 करोड़
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने गुरुवार को बताया था कि ट्रंप की धमकी के बाद भारतीय सरकारी रिफाइनरियों ने इस सप्ताह रूसी तेल की खरीद रोक दी है। इसका मतलब साफ है। अगर भारत अमेरिकी दबाव के चलते रूसी तेल खरीदना बंद करता है तो इसका असर सिर्फ रूस पर नहीं पड़ेगा। अलबत्ता, ग्लोबल ऑयल मार्केट पर भी होगा। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जा सकती हैं।
भारत और रूस के बीच हमेशा से मजबूत रिश्ते रहे हैं। हाल के दिनों में व्यापार संबंध में जोरदार इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2024-25 में दोनों देशों के बीच व्यापार 68.7 अरब डॉलर (करीब 590000 करोड़ रुपये) तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा महामारी से पहले के व्यापार का लगभग 5.8 गुना है। इस व्यापार में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल का है। रूस अब भारत की कुल तेल जरूरतों का 40% तक पूरा करता है। यह रिश्ता सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है। इसमें रक्षा और परमाणु ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र भी शामिल हैं। भारत अपने सैन्य उपकरणों का बड़ा हिस्सा रूस से खरीदता है। दोनों देशों के बीच परमाणु रिएक्टर बनाने के समझौते भी हैं। ट्रंप का दबाव इस मजबूत साझेदारी को कमजोर कर सकता है। इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा क्षमता दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
500% टैरिफ की लटक रही है तलवार
यह भारत के लिए यह मुश्किल स्थिति है। उसे एक तरफ जहां रूस के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को बनाए रखना है। वहीं, दूसरी ओर अमेरिका के साथ अपने महत्वपूर्ण व्यापारिक रिश्तों को भी सुरक्षित रखना है। यह पूरा मामला अब भारत की 68 अरब डॉलर की दुविधा पर आकर टिक गया है। ट्रंप की नीतियों से यह सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है।
बेशक, ट्रंप का दबाव भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती है। लेकिन, भारत इस पर झुकने को तैयार नहीं है। भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने साफ किया है कि भारत पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को 'बंद' नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि यूरोप भी रूस के साथ व्यापार जारी रखे हुए है।
इसके अलावा, अमेरिकी सीनेट में एक नया 'सैंक्शनिंग रशिया ऐक्ट ऑफ 2025' बिल पेश किया गया है। यह रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने का प्रस्ताव करता है। यह और बात है कि बिल अभी कानून नहीं बना है। लेकिन, यह भारत पर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।
पुतिन के पास है जवाबी ऐक्शन का विकल्प
जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों के अनुसार, भारत का रास्ता क्रेमलिन के लिए बहुत अहम है। अगर इसमें कोई बाधा आती है तो रूस कजाकिस्तान से सीपीसी पाइपलाइन को बंद करके जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इस पाइपलाइन में अमेरिकी तेल कंपनियों शेवरॉन और एक्सॉन की बड़ी हिस्सेदारी है। यानी रूस के पास भी दबाव बनाने के तरीके हैं। ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर मॉस्को 7-9 अगस्त तक यूक्रेन के साथ शांति समझौता नहीं करता है तो वह रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर 100% तक का टैरिफ लगा देंगे। भारत से अमेरिका में आने वाले सभी सामानों पर 25% का टैरिफ शुक्रवार से लागू है।
दांव पर लगे हैं 590000 करोड़
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने गुरुवार को बताया था कि ट्रंप की धमकी के बाद भारतीय सरकारी रिफाइनरियों ने इस सप्ताह रूसी तेल की खरीद रोक दी है। इसका मतलब साफ है। अगर भारत अमेरिकी दबाव के चलते रूसी तेल खरीदना बंद करता है तो इसका असर सिर्फ रूस पर नहीं पड़ेगा। अलबत्ता, ग्लोबल ऑयल मार्केट पर भी होगा। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जा सकती हैं।
भारत और रूस के बीच हमेशा से मजबूत रिश्ते रहे हैं। हाल के दिनों में व्यापार संबंध में जोरदार इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2024-25 में दोनों देशों के बीच व्यापार 68.7 अरब डॉलर (करीब 590000 करोड़ रुपये) तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा महामारी से पहले के व्यापार का लगभग 5.8 गुना है। इस व्यापार में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल का है। रूस अब भारत की कुल तेल जरूरतों का 40% तक पूरा करता है। यह रिश्ता सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है। इसमें रक्षा और परमाणु ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र भी शामिल हैं। भारत अपने सैन्य उपकरणों का बड़ा हिस्सा रूस से खरीदता है। दोनों देशों के बीच परमाणु रिएक्टर बनाने के समझौते भी हैं। ट्रंप का दबाव इस मजबूत साझेदारी को कमजोर कर सकता है। इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा क्षमता दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
500% टैरिफ की लटक रही है तलवार
यह भारत के लिए यह मुश्किल स्थिति है। उसे एक तरफ जहां रूस के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को बनाए रखना है। वहीं, दूसरी ओर अमेरिका के साथ अपने महत्वपूर्ण व्यापारिक रिश्तों को भी सुरक्षित रखना है। यह पूरा मामला अब भारत की 68 अरब डॉलर की दुविधा पर आकर टिक गया है। ट्रंप की नीतियों से यह सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है।
बेशक, ट्रंप का दबाव भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती है। लेकिन, भारत इस पर झुकने को तैयार नहीं है। भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने साफ किया है कि भारत पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को 'बंद' नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि यूरोप भी रूस के साथ व्यापार जारी रखे हुए है।
इसके अलावा, अमेरिकी सीनेट में एक नया 'सैंक्शनिंग रशिया ऐक्ट ऑफ 2025' बिल पेश किया गया है। यह रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने का प्रस्ताव करता है। यह और बात है कि बिल अभी कानून नहीं बना है। लेकिन, यह भारत पर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।
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