नई दिल्ली: भारत सरकार अपने राज्य के बिजली वितरण कंपनियों को बचाने के लिए एक बड़ी योजना पर विचार कर रही है। यह योजना करीब 1 लाख करोड़ रुपये यानी 12 अरब डॉलर की हो सकती है। ये कंपनियां भारी कर्ज में डूबी हुई हैं और इन्हें पैसों की सख्त जरूरत है। माना जा रहा है कि इससे अंबानी-अडानी जैसे उद्योगपतियों को फायदा हो सकता है।
इस मदद को पाने के लिए राज्यों को कुछ शर्तें माननी होंगी। रॉयटर्स के मुताबिक तीन सरकारी अधिकारियों और बिजली मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए एक डॉक्यूमेंट के अनुसार राज्यों को या तो अपनी बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों में सौंपना होगा या फिर उनका प्रबंधन निजी कंपनियों को देना होगा। एक और विकल्प यह है कि वे अपनी कंपनियों पर नियंत्रण तो रखें, लेकिन उन्हें शेयर बाजार में लिस्ट कराएं।
बजट में हो सकती है घोषणायह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से एक बड़ा सुधार कदम है। अभी तक राज्य की बिजली वितरण कंपनियां बहुत अक्षम मानी जाती हैं और वे भारत की ऊर्जा व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी हैं। दो सरकारी सूत्रों ने बताया कि बिजली मंत्रालय और वित्त मंत्रालय इस योजना के अंतिम विवरण पर चर्चा कर रहे हैं। उम्मीद है कि इसकी घोषणा फरवरी में आने वाले बजट में की जाएगी।
क्या है सरकार का प्रस्ताव?प्रस्ताव के अनुसार, राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी कुल बिजली खपत का कम से कम 20% हिस्सा निजी कंपनियों द्वारा पूरा किया जाए। साथ ही, राज्यों को इन वितरण कंपनियों के कुछ कर्ज का बोझ भी उठाना होगा। इसके लिए राज्यों के पास अपने वितरण कार्यों को निजी बनाने के दो विकल्प हैं, ताकि वे मौजूदा कर्ज चुकाने के लिए लोन ले सकें।
पहला विकल्पराज्य एक नई वितरण कंपनी बनाएं और उसमें 51% हिस्सेदारी बेच दें। ऐसा करने पर, नई बनी निजी कंपनी को 50 साल के लिए बिना ब्याज वाला लोन मिल सकता है, जो उसके कर्ज को चुकाने के काम आएगा। इसके अलावा अगले पांच साल तक उन्हें केंद्र सरकार से कम ब्याज वाले लोन भी मिलेंगे।
दूसरा विकल्पराज्य अपनी मौजूदा सरकारी बिजली वितरण कंपनी की 26% तक हिस्सेदारी निजी हाथों में बेच सकते हैं। इसके बदले में उन्हें अगले पांच साल तक केंद्र सरकार से कम ब्याज वाले लोन मिलेंगे।
शेयर मार्केट में लिस्टिंगअगर कोई राज्य अपनी कंपनियों का प्रबंधन निजी हाथों में नहीं सौंपना चाहता, तो उसे तीन साल के अंदर अपनी बिजली वितरण कंपनियों को किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कराना होगा। जो राज्य अपनी कंपनियों को सूचीबद्ध कराने का विकल्प चुनेंगे, उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार से कम ब्याज वाले लोन मिलेंगे।
कितना हुआ कंपनियों पर कर्जडॉक्यूमेंट के अनुसार मार्च 2024 तक राज्य की बिजली वितरण कंपनियों पर कुल 7.08 लाख करोड़ रुपये (80.6 अरब डॉलर) का घाटा और 7.42 लाख करोड़ रुपये (84.4 अरब डॉलर) का बकाया कर्ज जमा हो गया है।
पिछले दो दशकों में सरकार ने अरबों डॉलर की तीन बार मदद की है, लेकिन इसके बावजूद राज्य की बिजली वितरण कंपनियां आर्थिक रूप से कमजोर बनी हुई हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बहुत कम सब्सिडी वाले टैरिफ के कारण अपनी लागत वसूल नहीं कर पाती हैं।
अंबानी-अडानी समेत इन्हें होगा फायदा!इस सुधार से गौतम अडानी की कंपनी अडानी पावर, अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस पावर, टाटा पावर, CESC और टॉरेंट पावर जैसी निजी कंपनियों को फायदा होने की उम्मीद है, क्योंकि वे संभवतः सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल कर सकती हैं।
अभी तक क्या रहा है रिजल्ट?पहले भी भारत में सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को निजी बनाने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन कर्मचारियों और विपक्षी दलों के विरोध के कारण ये सुधार अटक गए थे। अभी तक केवल कुछ ही वितरण क्षेत्रों में निजीकरण हुआ है, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और महाराष्ट्र और गुजरात जैसे औद्योगिक राज्य शामिल हैं।
इस मदद को पाने के लिए राज्यों को कुछ शर्तें माननी होंगी। रॉयटर्स के मुताबिक तीन सरकारी अधिकारियों और बिजली मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए एक डॉक्यूमेंट के अनुसार राज्यों को या तो अपनी बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों में सौंपना होगा या फिर उनका प्रबंधन निजी कंपनियों को देना होगा। एक और विकल्प यह है कि वे अपनी कंपनियों पर नियंत्रण तो रखें, लेकिन उन्हें शेयर बाजार में लिस्ट कराएं।
बजट में हो सकती है घोषणायह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से एक बड़ा सुधार कदम है। अभी तक राज्य की बिजली वितरण कंपनियां बहुत अक्षम मानी जाती हैं और वे भारत की ऊर्जा व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी हैं। दो सरकारी सूत्रों ने बताया कि बिजली मंत्रालय और वित्त मंत्रालय इस योजना के अंतिम विवरण पर चर्चा कर रहे हैं। उम्मीद है कि इसकी घोषणा फरवरी में आने वाले बजट में की जाएगी।
क्या है सरकार का प्रस्ताव?प्रस्ताव के अनुसार, राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी कुल बिजली खपत का कम से कम 20% हिस्सा निजी कंपनियों द्वारा पूरा किया जाए। साथ ही, राज्यों को इन वितरण कंपनियों के कुछ कर्ज का बोझ भी उठाना होगा। इसके लिए राज्यों के पास अपने वितरण कार्यों को निजी बनाने के दो विकल्प हैं, ताकि वे मौजूदा कर्ज चुकाने के लिए लोन ले सकें।
पहला विकल्पराज्य एक नई वितरण कंपनी बनाएं और उसमें 51% हिस्सेदारी बेच दें। ऐसा करने पर, नई बनी निजी कंपनी को 50 साल के लिए बिना ब्याज वाला लोन मिल सकता है, जो उसके कर्ज को चुकाने के काम आएगा। इसके अलावा अगले पांच साल तक उन्हें केंद्र सरकार से कम ब्याज वाले लोन भी मिलेंगे।
दूसरा विकल्पराज्य अपनी मौजूदा सरकारी बिजली वितरण कंपनी की 26% तक हिस्सेदारी निजी हाथों में बेच सकते हैं। इसके बदले में उन्हें अगले पांच साल तक केंद्र सरकार से कम ब्याज वाले लोन मिलेंगे।
शेयर मार्केट में लिस्टिंगअगर कोई राज्य अपनी कंपनियों का प्रबंधन निजी हाथों में नहीं सौंपना चाहता, तो उसे तीन साल के अंदर अपनी बिजली वितरण कंपनियों को किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कराना होगा। जो राज्य अपनी कंपनियों को सूचीबद्ध कराने का विकल्प चुनेंगे, उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार से कम ब्याज वाले लोन मिलेंगे।
कितना हुआ कंपनियों पर कर्जडॉक्यूमेंट के अनुसार मार्च 2024 तक राज्य की बिजली वितरण कंपनियों पर कुल 7.08 लाख करोड़ रुपये (80.6 अरब डॉलर) का घाटा और 7.42 लाख करोड़ रुपये (84.4 अरब डॉलर) का बकाया कर्ज जमा हो गया है।
पिछले दो दशकों में सरकार ने अरबों डॉलर की तीन बार मदद की है, लेकिन इसके बावजूद राज्य की बिजली वितरण कंपनियां आर्थिक रूप से कमजोर बनी हुई हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बहुत कम सब्सिडी वाले टैरिफ के कारण अपनी लागत वसूल नहीं कर पाती हैं।
अंबानी-अडानी समेत इन्हें होगा फायदा!इस सुधार से गौतम अडानी की कंपनी अडानी पावर, अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस पावर, टाटा पावर, CESC और टॉरेंट पावर जैसी निजी कंपनियों को फायदा होने की उम्मीद है, क्योंकि वे संभवतः सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल कर सकती हैं।
अभी तक क्या रहा है रिजल्ट?पहले भी भारत में सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को निजी बनाने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन कर्मचारियों और विपक्षी दलों के विरोध के कारण ये सुधार अटक गए थे। अभी तक केवल कुछ ही वितरण क्षेत्रों में निजीकरण हुआ है, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और महाराष्ट्र और गुजरात जैसे औद्योगिक राज्य शामिल हैं।
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