पूर्व भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह भले ही आधिकारिक तौर पर कोच न हों लेकिन उन्होंने भारतीय क्रिकेट के लिए जो किया है, वह उन्हें महान कोचों की श्रेणी में ला सकता है। अभिषेक शर्मा और शुभमन गिल जैसे युवा खिलाड़ी युवराज के मार्गदर्शन में निखरे हैं। युवराज ने कभी औपचारिक रूप से उन्हें कोचिंग नहीं दी लेकिन दो बार विश्व कप जीतने वाले और भारत के बेहतरीन मैच विनर रहे युवराज ने इन खिलाड़ियों के शुरुआती दिनों से ही उनके साथ काम किया है। आज देखिए उनमें से एक भारत का वनडे और टेस्ट कप्तान है जबकि दूसरा बहुत ही कम समय में दुनिया का नंबर 1 टी20आई बल्लेबाज बन गया है।
योगराज से अलग है युवराज का तरीकायुवराज सिंह का कोचिंग का तरीका उनके पिता योगराज सिंह से बिल्कुल अलग है। जहां योगराज सिंह कड़े अनुशासन और सख्त रवैये में विश्वास रखते हैं वहीं युवराज का तरीका एकदम जुदा है। युवराज ने खुद बताया कि वे कैसे कोचिंग करते हैं। आज भी योगराज सिंह के खिलाड़ियों के बारे में दिए गए बयान उनके बेटे के तरीके से बिल्कुल विपरीत हैं। युवराज ने पीटीआई को बताया, 'मैं निश्चित रूप से योगराज सिंह जैसा बिल्कुल नहीं हूं। मैं एक बहुत अलग इंसान हूं और मेरा व्यक्तित्व भी बहुत अलग है। मेरी कोचिंग का तरीका बहुत अलग है। मेरा मानना है कि जब आप किसी को कोचिंग दे रहे हों या मेंटर कर रहे हों तो आपको उनकी जगह पर खुद को रखकर सोचना चाहिए और उनके मन को समझना चाहिए कि वे क्या महसूस कर रहे हैं बजाय इसके कि उन्हें बताया जाए कि क्या करना है। यह एक 'धक्का और खिंचाव' जैसा होना चाहिए। आप कुछ लेते हैं और कुछ देते हैं। इसलिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि 19 साल के लड़के के दिमाग में क्या चल रहा है।'
बेहद सख्त हैं युवराज सिंहयुवराज सिंह युवा खिलाड़ियों की जरूरतों को समझते हैं। युवराज के साथ योगराज सिंह की सख्ती की कहानियां नई नहीं हैं। एक बार तो उनके पिता ने युवराज के स्केटिंग के जूते फेंक दिए थे जिससे उन्हें क्रिकेट अपनाने और करियर बनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं सूझा। साल 2000 में युवराज ने मोहम्मद कैफ की कप्तानी में अंडर-19 विश्व कप जीता और कुछ ही महीनों बाद उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी शानदार 84 रन की पारी से लेकर विश्व कप 2007 और 2011 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने तक युवराज एक लीजेंड बन गए। इसके बावजूद युवराज अपने तरीकों पर कायम हैं।
युवराज ने कहा, 'जब मैं 19 साल का था तो किसी ने भी उन चुनौतियों को नहीं समझा था जिनका मैं सामना कर रहा था। इसलिए जब मैं 19 या 20 साल के किसी खिलाड़ी को देखता हूं तो मुझे पता होता है कि वे मानसिक रूप से किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह उनके बारे में सुनने,उनके मन को समझने और उसी के अनुसार काम करने के बारे में है न कि उन्हें यह बताने के बारे में कि क्या करना है।'
युवराज सिंह का मानना है कि युवा खिलाड़ियों को समझने के लिए उनके साथ एक अलग तरह का रिश्ता बनाना जरूरी है। वे खुद को उनकी जगह पर रखकर सोचते हैं। वे समझते हैं कि युवावस्था में कई तरह की परेशानियां आती हैं चाहे वह मैदान पर हो या मैदान के बाहर। युवराज का मानना है कि एक मेंटर का काम सिर्फ सलाह देना नहीं है बल्कि खिलाड़ी की भावनाओं को समझना और उसे सही दिशा दिखाना है। वे कहते हैं कि यह एक दो-तरफा प्रक्रिया है जिसमें खिलाड़ी और मेंटर दोनों एक-दूसरे से सीखते हैं।
योगराज से अलग है युवराज का तरीकायुवराज सिंह का कोचिंग का तरीका उनके पिता योगराज सिंह से बिल्कुल अलग है। जहां योगराज सिंह कड़े अनुशासन और सख्त रवैये में विश्वास रखते हैं वहीं युवराज का तरीका एकदम जुदा है। युवराज ने खुद बताया कि वे कैसे कोचिंग करते हैं। आज भी योगराज सिंह के खिलाड़ियों के बारे में दिए गए बयान उनके बेटे के तरीके से बिल्कुल विपरीत हैं। युवराज ने पीटीआई को बताया, 'मैं निश्चित रूप से योगराज सिंह जैसा बिल्कुल नहीं हूं। मैं एक बहुत अलग इंसान हूं और मेरा व्यक्तित्व भी बहुत अलग है। मेरी कोचिंग का तरीका बहुत अलग है। मेरा मानना है कि जब आप किसी को कोचिंग दे रहे हों या मेंटर कर रहे हों तो आपको उनकी जगह पर खुद को रखकर सोचना चाहिए और उनके मन को समझना चाहिए कि वे क्या महसूस कर रहे हैं बजाय इसके कि उन्हें बताया जाए कि क्या करना है। यह एक 'धक्का और खिंचाव' जैसा होना चाहिए। आप कुछ लेते हैं और कुछ देते हैं। इसलिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि 19 साल के लड़के के दिमाग में क्या चल रहा है।'
बेहद सख्त हैं युवराज सिंहयुवराज सिंह युवा खिलाड़ियों की जरूरतों को समझते हैं। युवराज के साथ योगराज सिंह की सख्ती की कहानियां नई नहीं हैं। एक बार तो उनके पिता ने युवराज के स्केटिंग के जूते फेंक दिए थे जिससे उन्हें क्रिकेट अपनाने और करियर बनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं सूझा। साल 2000 में युवराज ने मोहम्मद कैफ की कप्तानी में अंडर-19 विश्व कप जीता और कुछ ही महीनों बाद उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी शानदार 84 रन की पारी से लेकर विश्व कप 2007 और 2011 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने तक युवराज एक लीजेंड बन गए। इसके बावजूद युवराज अपने तरीकों पर कायम हैं।
युवराज ने कहा, 'जब मैं 19 साल का था तो किसी ने भी उन चुनौतियों को नहीं समझा था जिनका मैं सामना कर रहा था। इसलिए जब मैं 19 या 20 साल के किसी खिलाड़ी को देखता हूं तो मुझे पता होता है कि वे मानसिक रूप से किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह उनके बारे में सुनने,उनके मन को समझने और उसी के अनुसार काम करने के बारे में है न कि उन्हें यह बताने के बारे में कि क्या करना है।'
युवराज सिंह का मानना है कि युवा खिलाड़ियों को समझने के लिए उनके साथ एक अलग तरह का रिश्ता बनाना जरूरी है। वे खुद को उनकी जगह पर रखकर सोचते हैं। वे समझते हैं कि युवावस्था में कई तरह की परेशानियां आती हैं चाहे वह मैदान पर हो या मैदान के बाहर। युवराज का मानना है कि एक मेंटर का काम सिर्फ सलाह देना नहीं है बल्कि खिलाड़ी की भावनाओं को समझना और उसे सही दिशा दिखाना है। वे कहते हैं कि यह एक दो-तरफा प्रक्रिया है जिसमें खिलाड़ी और मेंटर दोनों एक-दूसरे से सीखते हैं।
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