मृत्युंजय राय: अमेरिका में पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में क्या डोनाल्ड ट्रंप की जीत पक्की थी? पहले डेमोक्रेट्स की तरफ से जो बाइडन उन्हें चुनौती देने वाले थे। हालांकि, बढ़ती उम्र ने दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के उनके अरमानों पर पानी फेर दिया और अपनी ही पार्टी के दबाव के कारण उन्हें इस रेस से बाहर होना पड़ा। पार्टी ने तब की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को ट्रंप के मुकाबले उतारा।
तब ट्रंप का हाल । कई लोग मानते हैं कि पिछले साल हुए चुनाव में ट्रंप की जीत पक्की थी, लेकिन 2024: How Trump Retook the White House and the Democrats Lost America में दावा किया गया है कि जब ट्रंप ने अपना प्रचार अभियान शुरू किया था, तब उनके करीबियों को भी अभियान बेहद ठंडा लगा था। उस वक्त उनके जीतने की आशा नहीं थी।
कमला की एंट्री । इस किताब को Josh Dawsey, Tyler Pager and Isaac Arnsdorf ने लिखा है। तीनों ही जर्नलिस्ट हैं। जॉश वॉल स्ट्रीट जर्नल, टायलर द न्यूयॉर्क टाइम्स और आइजैक वॉशिंगटन पोस्ट के। वे यह भी लिखते हैं कि जब तक बाइडन डेमोक्रेट्स की ओर से प्रत्याशी थे, तब तक पार्टी का चुनाव प्रचार बेजान लग रहा था। वह संगठित भी नहीं था और हार का अंदेशा भी था। हालांकि, कमला हैरिस के उनके बदले प्रत्याशी बनने के बाद प्रचार अभियान में जान लौटी और मुकाबला करीबी भी रहा।
महाभियोग का रोल । दूसरी तरफ, ट्रंप के चुनाव अभियान की शुरुआत भले ही ठंडी रही हो, लेकिन पहले महाभियोग के बाद उसमें जान लौटी। उसके बाद ट्रंप में आत्मविश्वास दिखने लगा। वह अनुशासित दिखे। फिर वह चुनाव से जुड़े सख्त फैसले भी ले रहे थे। ऐसा लग रहा था कि ट्रंप चुनाव जीतना चाहते हैं।
लीडर्स की अनसुनी । इस किताब के लिए ट्रंप का लेखकों ने इंटरव्यू किया। वहीं, बाइडन ने फोन पर कुछ सवालों के जवाब दिए क्योंकि बीच में ही सहयोगियों के दखल देने के कारण उन्होंने बातचीत रोक दी। लेखकों ने कमला हैरिस का भी इंटरव्यू करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। कुछ डेमोक्रेट्स लीडर्स से जो बातचीत किताब में शामिल की गई है, उन्होंने लेखकों को बताया कि पार्टी की हार की कई वजहें हैं, जिनकी तरफ चुनाव से पहले उन लोगों ने ध्यान दिलाने की कोशिश की थी, लेकिन तब उनकी नहीं सुनी गई। इसी तरह से रिपब्लिकन पार्टी की ओर से ट्रंप के प्रचार अभियान से जुड़े लोगों की बातचीत भी इसमें दी गई है। इन लोगों ने बताया कि किन वजहों से ट्रंप को जीत मिली।
‘पागल’ केनेडी जूनियर । किताब यह भी बताती है कि रॉबर्ट एफ केनेडी जूनियर को ट्रंप ने क्यों वाइस प्रेसिडेंट पद का प्रत्याशी नहीं बनाया। लेखकों के मुताबिक, ट्रंप ने कहा- रॉबर्ट कुछ ज्यादा ही पागल हैं, लेकिन वह डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ के लिए सही रहेंगे। उसके लिए उनके पागलपन का लेवल ठीक है।
करीबियों की गलती । किताब में यह भी बताया गया है कि टेलिविजन पर डिबेट में ट्रंप के सामने कमजोर पड़ने के बाद बाइडन ने कई गलतियां कीं। बाइडन के करीबी लोगों ने चुनाव पूर्व जो डेटा सामने आ रहे थे, उन पर यकीन नहीं किया। बाइडन की टीम ने ट्रंप के सामने उनके कमजोर पड़ने के लिए मीडिया तक को कसूरवार ठहराया। खैर, अधिक उम्र और लोकप्रियता में ट्रंप से कमतर ठहरने की वजह से बाइडन को आखिरकार पीछे हटना पड़ा और फिर कमला हैरिस को प्रत्याशी बनाया गया।
तो क्या होता । बाइडन के कुछ करीबी लोगों ने इसे गलत ठहराया। उनके एक करीबी माइक डॉनिलन ने तो यहां तक कहा कि यह डेमोक्रेटिक पार्टी का पागलपन था। उनकी बात इस लिहाज से कुछ सही ठहरती है कि चुनाव में कमला हैरिस हार गईं। यह किताब खासतौर से इस लिहाज से दिलचस्प है कि अगर डेमोक्रेट्स की ओर से कई गलतियां न की गई होंती तो क्या चुनाव का नतीजा अलग हो सकता था?
तब ट्रंप का हाल । कई लोग मानते हैं कि पिछले साल हुए चुनाव में ट्रंप की जीत पक्की थी, लेकिन 2024: How Trump Retook the White House and the Democrats Lost America में दावा किया गया है कि जब ट्रंप ने अपना प्रचार अभियान शुरू किया था, तब उनके करीबियों को भी अभियान बेहद ठंडा लगा था। उस वक्त उनके जीतने की आशा नहीं थी।
कमला की एंट्री । इस किताब को Josh Dawsey, Tyler Pager and Isaac Arnsdorf ने लिखा है। तीनों ही जर्नलिस्ट हैं। जॉश वॉल स्ट्रीट जर्नल, टायलर द न्यूयॉर्क टाइम्स और आइजैक वॉशिंगटन पोस्ट के। वे यह भी लिखते हैं कि जब तक बाइडन डेमोक्रेट्स की ओर से प्रत्याशी थे, तब तक पार्टी का चुनाव प्रचार बेजान लग रहा था। वह संगठित भी नहीं था और हार का अंदेशा भी था। हालांकि, कमला हैरिस के उनके बदले प्रत्याशी बनने के बाद प्रचार अभियान में जान लौटी और मुकाबला करीबी भी रहा।
महाभियोग का रोल । दूसरी तरफ, ट्रंप के चुनाव अभियान की शुरुआत भले ही ठंडी रही हो, लेकिन पहले महाभियोग के बाद उसमें जान लौटी। उसके बाद ट्रंप में आत्मविश्वास दिखने लगा। वह अनुशासित दिखे। फिर वह चुनाव से जुड़े सख्त फैसले भी ले रहे थे। ऐसा लग रहा था कि ट्रंप चुनाव जीतना चाहते हैं।
लीडर्स की अनसुनी । इस किताब के लिए ट्रंप का लेखकों ने इंटरव्यू किया। वहीं, बाइडन ने फोन पर कुछ सवालों के जवाब दिए क्योंकि बीच में ही सहयोगियों के दखल देने के कारण उन्होंने बातचीत रोक दी। लेखकों ने कमला हैरिस का भी इंटरव्यू करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। कुछ डेमोक्रेट्स लीडर्स से जो बातचीत किताब में शामिल की गई है, उन्होंने लेखकों को बताया कि पार्टी की हार की कई वजहें हैं, जिनकी तरफ चुनाव से पहले उन लोगों ने ध्यान दिलाने की कोशिश की थी, लेकिन तब उनकी नहीं सुनी गई। इसी तरह से रिपब्लिकन पार्टी की ओर से ट्रंप के प्रचार अभियान से जुड़े लोगों की बातचीत भी इसमें दी गई है। इन लोगों ने बताया कि किन वजहों से ट्रंप को जीत मिली।
‘पागल’ केनेडी जूनियर । किताब यह भी बताती है कि रॉबर्ट एफ केनेडी जूनियर को ट्रंप ने क्यों वाइस प्रेसिडेंट पद का प्रत्याशी नहीं बनाया। लेखकों के मुताबिक, ट्रंप ने कहा- रॉबर्ट कुछ ज्यादा ही पागल हैं, लेकिन वह डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ के लिए सही रहेंगे। उसके लिए उनके पागलपन का लेवल ठीक है।
करीबियों की गलती । किताब में यह भी बताया गया है कि टेलिविजन पर डिबेट में ट्रंप के सामने कमजोर पड़ने के बाद बाइडन ने कई गलतियां कीं। बाइडन के करीबी लोगों ने चुनाव पूर्व जो डेटा सामने आ रहे थे, उन पर यकीन नहीं किया। बाइडन की टीम ने ट्रंप के सामने उनके कमजोर पड़ने के लिए मीडिया तक को कसूरवार ठहराया। खैर, अधिक उम्र और लोकप्रियता में ट्रंप से कमतर ठहरने की वजह से बाइडन को आखिरकार पीछे हटना पड़ा और फिर कमला हैरिस को प्रत्याशी बनाया गया।
तो क्या होता । बाइडन के कुछ करीबी लोगों ने इसे गलत ठहराया। उनके एक करीबी माइक डॉनिलन ने तो यहां तक कहा कि यह डेमोक्रेटिक पार्टी का पागलपन था। उनकी बात इस लिहाज से कुछ सही ठहरती है कि चुनाव में कमला हैरिस हार गईं। यह किताब खासतौर से इस लिहाज से दिलचस्प है कि अगर डेमोक्रेट्स की ओर से कई गलतियां न की गई होंती तो क्या चुनाव का नतीजा अलग हो सकता था?
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