अक्सर केवल थोड़ा-सा परिवर्तन या संतुलन ही वांछित परिणाम दे देता है। जैसे प्रयोगशाला में वैज्ञानिक जब किसी रासायनिक प्रयोग में तत्वों के अनुपात या क्रम में सूक्ष्म फेरबदल करते हैं, तो वही तत्व एक नया सूत्र या उत्पाद बना देते हैं। उसी प्रकार जीवन में भी जब हम अपने विचार, कर्म और परिवेश में हल्का-सा सुधार लाते हैं, तो परिणाम पूरी तरह बदल जाते हैं। आइए इसे विज्ञान की भाषा में समझते हैं।
जब आप हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन के एक परमाणु को मिलाते हैं, तो परिणाम स्वरूप जल यानि पानी उत्पन्न होता हैै। इसी तरह जब आप ऑक्सीजन के एक परमाणु और कार्बन के एक परमाणु को मिलाते हैं तो कार्बन मोनोऑक्साइड नामक जहरीली गैस उत्पन्न होती है, इस संयोग में आप अगर एक और ऑक्सीजन का परमाणु जोड़ देते हैं तो आपको कार्बन डाइऑक्साइड मिलती है जो प्राणियों के लिए निष्क्रिय और पौधों के लिए जीवन दायिनी होती है, यही शाश्वत और अपरिवर्तनीय तत्व है, जिन्हें हम सिद्धांत कहते
हैं। इसी प्रकार ज्योतिष, वास्तु और अध्यात्म बाकी सब सिद्धांतों से अलग नहीं है, बस इनके प्रयोग की उचित विधि हमें पता होनी चाहिए।
जिस प्रकार विज्ञान में सूत्र बदलने से परिणाम बदलता है, वैसे ही विचार की दिशा बदलने से कर्म का परिणाम बदलता है, कर्म की विधि बदलने से भाग्य की रचना बदल जाती है और चेतना की आवृत्ति बदलने से जीवन की पूरी रचना परिवर्तित हो जाती है। इसलिए वास्तु शास्त्री कहते हैं, ऊर्जा की दिशा सही होनी चाहिए। ज्योतिषी कहते हैं, समय और ग्रह की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए। अध्यात्मवेत्ता कहते हैं, दृष्टिकोण और भाव, दोनों शुद्ध होने चाहिए। आपने देखा कि जैसे रसायन में तत्वों का अनुपात और संयोजन परिणाम निर्धारित करता है, वैसे ही जीवन के सिद्धांतों में ग्रह, दिशा, समय और कर्म का सही संतुलन जीवन की दिशा तय करता है। वास्तु का आधार भी पंचतत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पर टिका है। यदि किसी भवन में इन तत्वों का संतुलन बिगड़ जाए तो जीवन में असंतुलन दिखाई देने लगता है। ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति भाग्य दर्शन के साथ-साथ यह संकेत करती है कि कौन-से तत्व और ऊर्जा हमारे जीवन में अधिक या कम प्रभावी हैं। यदि इन ऊर्जाओं का सही उपयोग करना सीख लिया जाए, तो जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और प्रगति संभव है।
जब आप हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन के एक परमाणु को मिलाते हैं, तो परिणाम स्वरूप जल यानि पानी उत्पन्न होता हैै। इसी तरह जब आप ऑक्सीजन के एक परमाणु और कार्बन के एक परमाणु को मिलाते हैं तो कार्बन मोनोऑक्साइड नामक जहरीली गैस उत्पन्न होती है, इस संयोग में आप अगर एक और ऑक्सीजन का परमाणु जोड़ देते हैं तो आपको कार्बन डाइऑक्साइड मिलती है जो प्राणियों के लिए निष्क्रिय और पौधों के लिए जीवन दायिनी होती है, यही शाश्वत और अपरिवर्तनीय तत्व है, जिन्हें हम सिद्धांत कहते
हैं। इसी प्रकार ज्योतिष, वास्तु और अध्यात्म बाकी सब सिद्धांतों से अलग नहीं है, बस इनके प्रयोग की उचित विधि हमें पता होनी चाहिए।
जिस प्रकार विज्ञान में सूत्र बदलने से परिणाम बदलता है, वैसे ही विचार की दिशा बदलने से कर्म का परिणाम बदलता है, कर्म की विधि बदलने से भाग्य की रचना बदल जाती है और चेतना की आवृत्ति बदलने से जीवन की पूरी रचना परिवर्तित हो जाती है। इसलिए वास्तु शास्त्री कहते हैं, ऊर्जा की दिशा सही होनी चाहिए। ज्योतिषी कहते हैं, समय और ग्रह की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए। अध्यात्मवेत्ता कहते हैं, दृष्टिकोण और भाव, दोनों शुद्ध होने चाहिए। आपने देखा कि जैसे रसायन में तत्वों का अनुपात और संयोजन परिणाम निर्धारित करता है, वैसे ही जीवन के सिद्धांतों में ग्रह, दिशा, समय और कर्म का सही संतुलन जीवन की दिशा तय करता है। वास्तु का आधार भी पंचतत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पर टिका है। यदि किसी भवन में इन तत्वों का संतुलन बिगड़ जाए तो जीवन में असंतुलन दिखाई देने लगता है। ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति भाग्य दर्शन के साथ-साथ यह संकेत करती है कि कौन-से तत्व और ऊर्जा हमारे जीवन में अधिक या कम प्रभावी हैं। यदि इन ऊर्जाओं का सही उपयोग करना सीख लिया जाए, तो जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और प्रगति संभव है।
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