वॉशिंगटन: अमेरिका की जासूसी एजेंसियों ने खुलासा किया है कि अपनी एयर टू एयर मिसाइलों की रेंज बढ़ाने के लिए चीन ने यूएई की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है। अमेरिकी जासूसी एजेंसियों को 2022 में खुफिया जानकारी मिली थी कि संयुक्त अरब अमीरात ने हुआवेई को वह तकनीक दी है, जिसका इस्तेमाल चीन ने हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की रेंज बढ़ाने के लिए किया। इन मिसाइलों में PL-15 और PL-10 मिसाइलें शामिल हैं। इन मिसाइलों ने चीन के लड़ाकू विमानों की मार करने की क्षमता को बढ़ा दिया है।
फाइनेंशियल टाइम्स (FT) की रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडेन प्रशासन के दौरान इस खुफिया जानकारी को जमा किया गया था। FT ने इस मामले की जानकारी रखने वाले 6 लोगों के हवाले से खुलासा किया है कि संयुक्त अरब अमीरात के प्रमुख AI समूह G42 ने चीन को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की थी, जिसका इस्तेमाल चीन ने अपनी लंबी दूरी की मिसाइलों की रेंज और क्षमता बढ़ाने के लिए किया था। मामले से परिचित दो लोगों ने कहा कि यह तकनीक हुआवेई को दी गई थी। इन लोगों ने कहा कि ये मिसाइलें PL-15 और PL-17 वैरिएंट थीं। आपको बता दें कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ PL-15 मिसाइल का ही इस्तेमाल किया था।
UAE ने दी थी चीन को मिसाइल टेक्नोलॉजी
अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि यह तकनीक, मिसाइलों की उड़ान को ऑप्टिमाइज करने वाले सॉफ्टवेयर से जुड़ी थी, जो संभवतः डुअल यूज यानी नागरिक और सैन्य, दोनों उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकती थी। हालांकि G42, जिसके शेयरधारकों में माइक्रोसॉफ्ट, सिल्वर लेक और संयुक्त अरब अमीरात का संप्रभु निवेश कोष मुबाडाला शामिल हैं, उसने अमेरिकी खुफिया जानकारी को खारिज कर दिया है। इसने कहा है कि "संदिग्ध मकसद और इरादे वाले स्रोतों" से "झूठे और मानहानिकारक आरोपों" को स्पष्ट रूप से खारिज करता है। आपको बता दें कि अमेरिका में हड़कंप मचने की वजह ये है कि चूंकी UAE अमेरिका का करीबी सहयोगी है, इसलिए उसके पास कई वेस्टर्न टेक्नोलॉजी हैं और अमेरिका को डर है कि PL-15 मिसाइल में भी पश्चिमी टेक्नोलॉजी हो सकती है।
FT की रिपोर्ट के मुताबिक, जहां कई अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा अधिकारी जी42 और चीन के बारे में मिली जानकारी को लेकर चिंतित थे, वहीं कुछ अधिकारी ज्यादा सतर्क थे। अधिकारियों के बीच इस बात पर भी बहस हुई कि क्या जी42 को पता था कि इस तकनीक का इस्तेमाल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की मदद के लिए किया जाएगा? मामले से वाकिफ छह अन्य लोगों ने कहा कि यह जानकारी तब मिली जब अमेरिकी जासूसी एजेंसियों को इस बात के व्यापक सबूत मिले, कि मध्य पूर्व में अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी, यूएई, चीन के करीब जा रहा है। एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने कहा, "खुफिया जानकारी खतरे की घंटी बजा रही थी। जी42 और यूएई चीन की कक्षा में जा रहे थे।"
अमेरिका का सैन्य सहयोगी देश है UAE
रिपोर्ट सामने आने के बाद बाइडेन प्रशासन के भीतर इस बात पर तीखी बहस छिड़ गई थी, कि यूएई जैसे पारंपरिक सहयोगी को किस हद तक भरोसे में रखा जाए। अमेरिका के कई अधिकारियों का मानना था कि अबू धाबी धीरे-धीरे चीन के करीब जा रहा है। अमेरिका का एक सैन्य अड्डा यूएई में है और ये अमेरिका में एक बड़ा निवेशक है। यूएई ने दशकों से वाशिंगटन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं। लेकिन बाइडेन प्रशासन के दौरान दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए। आपको बता दें कि जी42 के चेयरमैन यूएई के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शेख तहनून बिन जायद अल-नाहयान हैं और इसने भू-स्थानिक, वैमानिकी और उपग्रह प्रौद्योगिकी में विस्तार किया है। दो लोगों ने बताया कि इस तकनीक में ऐसा सॉफ्टवेयर शामिल है जो मिसाइलों की उड़ान को अनुकूलित करेगा।
हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से किसी कानून का उल्लंघन हुआ है या नहीं और इस बात की भी जानकारी नहीं है क्या G42 ने जानबूझकर ऐसा किया। यह संभव है कि G42 को इस बात की जानकारी ही न रही हो कि उनकी तकनीक आगे चलकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के काम आ रही है। G42 ने इन आरोपों को "झूठा और अपमानजनक" बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया, जबकि हुवावे ने भी किसी तरह के तकनीकी ट्रांसफर या गलत उपयोग के आरोपों से इनकार किया।
फाइनेंशियल टाइम्स (FT) की रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडेन प्रशासन के दौरान इस खुफिया जानकारी को जमा किया गया था। FT ने इस मामले की जानकारी रखने वाले 6 लोगों के हवाले से खुलासा किया है कि संयुक्त अरब अमीरात के प्रमुख AI समूह G42 ने चीन को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की थी, जिसका इस्तेमाल चीन ने अपनी लंबी दूरी की मिसाइलों की रेंज और क्षमता बढ़ाने के लिए किया था। मामले से परिचित दो लोगों ने कहा कि यह तकनीक हुआवेई को दी गई थी। इन लोगों ने कहा कि ये मिसाइलें PL-15 और PL-17 वैरिएंट थीं। आपको बता दें कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ PL-15 मिसाइल का ही इस्तेमाल किया था।
UAE ने दी थी चीन को मिसाइल टेक्नोलॉजी
अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि यह तकनीक, मिसाइलों की उड़ान को ऑप्टिमाइज करने वाले सॉफ्टवेयर से जुड़ी थी, जो संभवतः डुअल यूज यानी नागरिक और सैन्य, दोनों उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकती थी। हालांकि G42, जिसके शेयरधारकों में माइक्रोसॉफ्ट, सिल्वर लेक और संयुक्त अरब अमीरात का संप्रभु निवेश कोष मुबाडाला शामिल हैं, उसने अमेरिकी खुफिया जानकारी को खारिज कर दिया है। इसने कहा है कि "संदिग्ध मकसद और इरादे वाले स्रोतों" से "झूठे और मानहानिकारक आरोपों" को स्पष्ट रूप से खारिज करता है। आपको बता दें कि अमेरिका में हड़कंप मचने की वजह ये है कि चूंकी UAE अमेरिका का करीबी सहयोगी है, इसलिए उसके पास कई वेस्टर्न टेक्नोलॉजी हैं और अमेरिका को डर है कि PL-15 मिसाइल में भी पश्चिमी टेक्नोलॉजी हो सकती है।
FT की रिपोर्ट के मुताबिक, जहां कई अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा अधिकारी जी42 और चीन के बारे में मिली जानकारी को लेकर चिंतित थे, वहीं कुछ अधिकारी ज्यादा सतर्क थे। अधिकारियों के बीच इस बात पर भी बहस हुई कि क्या जी42 को पता था कि इस तकनीक का इस्तेमाल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की मदद के लिए किया जाएगा? मामले से वाकिफ छह अन्य लोगों ने कहा कि यह जानकारी तब मिली जब अमेरिकी जासूसी एजेंसियों को इस बात के व्यापक सबूत मिले, कि मध्य पूर्व में अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी, यूएई, चीन के करीब जा रहा है। एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने कहा, "खुफिया जानकारी खतरे की घंटी बजा रही थी। जी42 और यूएई चीन की कक्षा में जा रहे थे।"
One read of this story is a tale of the options middle powers have when they are frustrated with great power patrons. https://t.co/e63JVAdrob pic.twitter.com/xUpnDnB25E
— Christopher Clary (@clary_co) October 25, 2025
अमेरिका का सैन्य सहयोगी देश है UAE
रिपोर्ट सामने आने के बाद बाइडेन प्रशासन के भीतर इस बात पर तीखी बहस छिड़ गई थी, कि यूएई जैसे पारंपरिक सहयोगी को किस हद तक भरोसे में रखा जाए। अमेरिका के कई अधिकारियों का मानना था कि अबू धाबी धीरे-धीरे चीन के करीब जा रहा है। अमेरिका का एक सैन्य अड्डा यूएई में है और ये अमेरिका में एक बड़ा निवेशक है। यूएई ने दशकों से वाशिंगटन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं। लेकिन बाइडेन प्रशासन के दौरान दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए। आपको बता दें कि जी42 के चेयरमैन यूएई के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शेख तहनून बिन जायद अल-नाहयान हैं और इसने भू-स्थानिक, वैमानिकी और उपग्रह प्रौद्योगिकी में विस्तार किया है। दो लोगों ने बताया कि इस तकनीक में ऐसा सॉफ्टवेयर शामिल है जो मिसाइलों की उड़ान को अनुकूलित करेगा।
हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से किसी कानून का उल्लंघन हुआ है या नहीं और इस बात की भी जानकारी नहीं है क्या G42 ने जानबूझकर ऐसा किया। यह संभव है कि G42 को इस बात की जानकारी ही न रही हो कि उनकी तकनीक आगे चलकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के काम आ रही है। G42 ने इन आरोपों को "झूठा और अपमानजनक" बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया, जबकि हुवावे ने भी किसी तरह के तकनीकी ट्रांसफर या गलत उपयोग के आरोपों से इनकार किया।
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