भारतीय समाज में, वैवाहिक संबंधों में न केवल भावनात्मक बंधन, बल्कि वित्तीय और कानूनी ज़िम्मेदारियाँ भी शामिल होती हैं। यह प्रश्न कि क्या पत्नी अपने पति के जीवित रहते हुए उसकी संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा कर सकती है, कानूनी ढाँचे के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी उजागर करता है।कानूनी ढांचा: संपत्ति अधिकारों की स्थितिभारतीय कानून में, खासकर हिंदू कानून के तहत, पत्नी को अपने पति के जीवित रहते हुए उसकी विरासत में मिली संपत्ति में सीधे हिस्से का दावा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, पति की विरासत में मिली संपत्ति उसकी निजी संपत्ति होती है और जब तक वह जीवित है, उस पर उसका पूरा नियंत्रण होता है। हालाँकि, कुछ शर्तों के तहत, पत्नी आर्थिक सहायता या भरण-पोषण पाने की हकदार होती है।गुजारा भत्ता का अधिकार: वित्तीय सुरक्षा का मार्गहिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 के तहत, पत्नी तलाक, कानूनी अलगाव या विवाह के दौरान आर्थिक तंगी की स्थिति में भरण-पोषण का दावा करने के लिए कानूनी संरक्षण प्राप्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत, किसी भी कारण से अपने पति से आर्थिक उपेक्षा का सामना कर रही पत्नी न्यायालय के माध्यम से भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकती है। यह भरण-पोषण पत्नी की दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने और आर्थिक स्थिरता प्रदान करने के लिए दिया जाता है।संयुक्त परिवार की संपत्ति: एक विशेष आयामयदि पति की संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति है, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत, पति की मृत्यु के बाद पत्नी संपत्ति में हिस्से की हकदार हो जाती है। हालाँकि, यदि पति जीवित रहते हुए संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिस्सा मांगता है, तो यह कानून के प्रावधानों के अधीन है। संयुक्त परिवार की संपत्ति में, पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार परिवार के मुखिया (कर्ता) या संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों के पास होता है। हालाँकि, आमतौर पर पति की सहमति के बिना इस संपत्ति में हिस्सा मांगना संभव नहीं होता है।घरेलू हिंसा और वित्तीय सुरक्षापति द्वारा शारीरिक, मानसिक या वित्तीय दुर्व्यवहार के मामले में, पत्नी घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत वित्तीय सहायता, आवास अधिकार और सुरक्षा के लिए कानून का सहारा ले सकती है। हालांकि यह अधिनियम महिलाओं को अपने पति की संपत्ति में प्रत्यक्ष हिस्सा प्रदान नहीं करता है, लेकिन यह उन्हें वित्तीय सुरक्षा के लिए आवास और रखरखाव के अधिकार की गारंटी देता है।कानून की सीमाएँ और सामाजिक आयामइस कानून की एक सीमा यह है कि पत्नी को अपने पति की स्व-अर्जित संपत्ति पर सीधा अधिकार नहीं है। हालाँकि, यह नियम सामाजिक रूप से विवादास्पद है, क्योंकि कई महिलाएँ अपने विवाहित जीवन के दौरान परिवार की आर्थिक स्थिरता में योगदान देती हैं, फिर भी कानून के तहत उन्हें संपत्ति में हिस्सेदारी नहीं मिलती। इस संदर्भ में, कानून में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के संबंध में, सक्रिय रूप से चर्चाएँ हो रही हैं।पति के जीवित रहते हुए, पत्नी कानूनी तौर पर उसकी विरासत में मिली संपत्ति में सीधे हिस्से का दावा नहीं कर सकती। हालाँकि, गुजारा भत्ता, आवास अधिकार और घरेलू हिंसा से सुरक्षा जैसे कानूनी रास्ते पत्नी की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
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