सबसे पहले,यह समझना होगा कि'नेपाल जैसा हाल'का मतलब क्या है। इसका मतलब है-त्रिशंकु संसद (Hung Parliament),यानी किसी भी एक पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए ज़रूरी272सीटों का जादुई आंकड़ा न मिलना।अगर ऐसा हुआ,तो हमारे नेताओं की ज़िंदगी24x7चलने वाले किसी थ्रिलर सीरियल जैसी हो जाएगी:1.प्रधानमंत्री बनेंगे'मैनेजर',नेता नहींसबसे पहली गाज गिरेगी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर। प्रधानमंत्री देश चलाने वाले एक मज़बूत नेता नहीं,बल्कि गठबंधन के अलग-अलग नेताओं को खुश रखने वाले एक'मैनेजर'बनकर रह जाएंगे। उनका आधा से ज़्यादा समय नीतियां बनाने में नहीं,बल्कि "कौन सा मंत्री नाराज़ है?", "किस पार्टी को और मलाई चाहिए?"और "मेरी कुर्सी कैसे बचेगी?"इसी जुगाड़ में जाएगा।2.छोटे दलों की होगी'चांदी ही चांदी'वो छोटी-छोटी पार्टियां,जिनके पास सिर्फ10-15सांसद हैं,अचानक से'किंगमेकर'बन जाएंगी। सत्ता की चाबी उन्हीं के हाथ में होगी।असंभव मांगें: 10सीटों वाला नेता भी गृह मंत्रालय या वित्त मंत्रालय जैसी बड़ी मांग करेगा।ब्लैकमेलिंग का खेल:वे हर कानून पर सरकार को ब्लैकमेल करेंगे - "हमारे राज्य को स्पेशल पैकेज दो,वरना हम समर्थन वापस ले लेंगे।"3. 'रिसॉर्ट पॉलिटिक्स'बन जाएगी राष्ट्रीय खेलआप जो आजकल राज्यों में'रिसॉर्ट पॉलिटिक्स'देखते हैं (जहाँ विधायकों को टूटने से बचाने के लिए5-स्टार होटलों या रिसॉर्ट में बंद कर दिया जाता है),वो दिल्ली में रोज़ की बात हो जाएगी।सांसदों कीखरीद-फरोख्त (हॉर्स ट्रेडिंग)खुलेआम होगी।हर6महीने पर'अविश्वास प्रस्ताव'का खतरा मंडराएगा और सरकार बचाने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जाएंगे।4.कैबिनेट मीटिंग लगेगी'सर्कस'जैसीकैबिनेट का गठन योग्यता पर नहीं,बल्कि गठबंधन की मजबूरियों पर होगा। हो सकता है किसी ऐसी पार्टी के नेता को रक्षा मंत्री बना दिया जाए,जिसे रक्षा मामलों कीA-B-C-Dभी न पता हो,सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके पास5ज़रूरी सांसद हैं।5.नेताओं की विश्वसनीयता'ज़ीरो'हो जाएगीआज जो नेता एक पार्टी के साथ है,कल सुबह वो दूसरी पार्टी के साथ चाय पीता नज़र आएगा। नेताओं के लिए विचारधारा या जनता से किए गए वादे कोई मायने नहीं रखेंगे। उनका सिर्फ एक ही धर्म होगा -सत्ता!आम आदमी और देश का क्या होगा?यह तो हुई नेताओं की बात,लेकिन इसका असली खामियाजा तो हमें और आपको भुगतना पड़ेगा:विकास पर ब्रेक:सरकार हर दिन अपनी कुर्सी बचाने में लगी होगी,तो सड़क,बिजली,पानी और रोज़गार जैसे मुद्दों पर कौन ध्यान देगा?देश का विकास ठप पड़ जाएगा।अर्थव्यवस्था का दिवाला:विदेशी निवेशक ऐसे अस्थिर देश में एक रुपया भी लगाने से डरेंगे। शेयर बाज़ार रोज़ गिरेगा और महंगाई आसमान छूने लगेगी।अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती:दुनिया में भारत की छवि एक कमज़ोर और हमेशा लड़ते-झगड़ते रहने वाले देश की बन जाएगी। चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेंगे।जनता का लोकतंत्र से उठेगा विश्वास:बार-बार चुनाव और नेताओं की खरीद-फरोख्त देखकर आम आदमी का पूरेdemocratic systemसे ही भरोसा उठ जाएगा।संक्षेप में कहें तो,अगर भारत में नेपाल जैसा राजनीतिक माहौल बन गया,तो हमारे नेता'चाणक्य'नहीं,बल्कि'जोड़-तोड़'के मास्टर कहलाएंगे और देश का भगवान ही मालिक होगा। शुक्र है कि हमारे लोकतंत्र की जड़ें काफी गहरी और मज़बूत हैं।
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