नई दिल्ली - वक्फ संशोधन कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई चल रही है। तीसरे दिन, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों के बीच एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा, “इस्लाम तो इस्लाम ही रहेगा चाहे कोई कहीं भी रहे।”
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ कानून में वक्फ करने वाले के लिए प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की अनिवार्यता को सही ठहराते हुए कहा कि शरिया कानून के तहत यदि कोई मुस्लिम पर्सनल लॉ का लाभ लेना चाहता है, तो उसे भी मुस्लिम होने का घोषणापत्र देना होगा। उन्होंने बताया कि इस कानून में भी यही प्रावधान है, जिसमें पांच साल के प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की बात की गई है। मेहता ने कहा कि पुराने कानून में भी यह था कि वक्फ करने वाला मुसलमान होगा, लेकिन 20213 के संशोधन में मुसलमान शब्द को हटा दिया गया था। नए संशोधित कानून में इसे फिर से बहाल किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ केवल मुसलमान ही करेगा, लेकिन यदि कोई हिंदू वक्फ को दान करना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है।
सॉलिसिटर जनरल ने ट्राइबल एरिया में वक्फ न होने के प्रावधान को सही ठहराते हुए कहा कि संवैधानिक रूप से एसटी शिड्यूल एरिया को संरक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान ऐसा नहीं है कि इसके आधार पर कानून पर अंतरिम रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधता को चुनौती दी गई है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस मसीह की पीठ इन याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर सुनवाई कर रही है।
केंद्र सरकार ने बुधवार को अपने पक्ष में दलीलें पेश कीं, जिसमें कहा गया कि यह कानून वक्फ के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि यह केवल वक्फ संपत्तियों के प्रशासनिक प्रबंधन से संबंधित है। मेहता ने कहा कि वक्फ एक इस्लामी धारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दान हर धर्म का हिस्सा है, लेकिन यह धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड में केवल दो गैर-मुस्लिम सदस्यों का होना इससे इसके चरित्र को नहीं बदलता। वक्फ बोर्ड वक्फ की किसी भी धार्मिक गतिविधि को प्रभावित नहीं कर रहा है।
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