उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में सामने आए सास-दामाद विवाद के बाद एक बड़ा सवाल चर्चा में है — क्या दामाद ससुर की संपत्ति में कानूनी रूप से कोई दावा कर सकता है? इस सवाल का जवाब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और हाल ही में केरल हाईकोर्ट के एक फैसले में साफ तौर पर मिलता है।
क्या कहता है हिंदू उत्तराधिकार कानून?
भारत में संपत्ति का अधिकार धर्म आधारित उत्तराधिकार कानूनों से तय होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पहले ‘क्लास-1 उत्तराधिकारी’ को जाती है। इसमें बेटा, बेटी, पत्नी, मां और मृत पुत्र की संतानें आती हैं।
दामाद की स्थिति:
दामाद, यानी बेटी का पति, उत्तराधिकारी की इस सूची में शामिल नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि ससुर की संपत्ति में दामाद का कोई स्वाभाविक या कानूनी अधिकार नहीं बनता, चाहे उसने संपत्ति में आर्थिक योगदान दिया हो या शादी के बाद परिवार का हिस्सा बन चुका हो।
कोर्ट का भी यही रुख:
केरल हाईकोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में भी इस बात को दोहराया है कि दामाद ससुर की संपत्ति का मालिक नहीं बन सकता। कोर्ट ने कहा कि दामाद ससुर के घर में तभी तक रह सकता है जब तक ससुर स्वयं इसकी अनुमति देते हैं। संपत्ति पर उसका कोई कानूनी हक नहीं बनता।
हिंदू उत्तराधिकार कानून और कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट है कि दामाद, ससुर की संपत्ति में उत्तराधिकारी नहीं होता। जब तक ससुर खुद संपत्ति में हिस्सेदारी न दें या वसीयत में नाम न लिखें, दामाद का संपत्ति पर दावा मान्य नहीं है।
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