सुकमा, 3 सितंबर (Udaipur Kiran) । छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में शबरी नदी के बीच बसा नाड़ीगुफा गांव बारिश के मौसम में टापू में तब्दील हो जाता है। ऐसे में स्कूल तक पहुंचना न केवल कठिन, बल्कि खतरनाक भी हो जाता है। शिक्षकों ने बार-बार सुरक्षित नाव की मांग की है, लेकिन अब तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं हो सकी है।
सुकमा जिला मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर स्थित रामाराम ग्राम पंचायत के नाड़ीगुफा गांव में शिक्षक सुबह से नदी किनारे बैठकर नाविक का इंतजार करते हैं। सोमवार को सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक नाविक का इंतजार करने के बाद भी, नाव नहीं आई और शिक्षक मजबूरन वापस लौट गए। गांव में स्कूल तक पहुंचने के लिए शिक्षक हर रोज अपनी जान जोखिम में डालते हैं। अक्सर नदी के किनारे घंटों बैठकर नाव का इंतजार करना पड़ता है। कई बार नाविक न मिलने या तेज बहाव के कारण शिक्षक स्कूल तक नहीं पहुंच पाते और बच्चों को पढ़ाए बिना लौटना पड़ता है। शिक्षकों का कहना है कि छोटी डोंगी नुमा नाव में बैठकर जाना मुश्किल और खतरनाक होता है। यदि सुरक्षित और बड़ी नाव की व्यवस्था की जाए, तो शिक्षा की अलख को बनाए रखना आसान होगा और शिक्षक सुरक्षित तरीके से स्कूल पहुंच सकेंगे।
शिक्षक राजू बघेल ने बताया, “शबरी नदी दो हिस्सों में बट जाती है और बीच में नाड़ीगुफा बसा है। बारिश के दिनों में नदी में तेज बहाव होता है और कई जगह पेड़-पौधों में फंस जाने के कारण नाव पलट जाती है। सौभाग्य से हमें तैरना आता है, इसलिए जान बच जाती है।” मंतूराम मौर्य ने बताया, “कई बार नाविक का इंतजार करते-करते हम थक जाते हैं। छोटी डोंगी को चलाना संभव नहीं है। हमारी मांग है कि इस छोटे नाव की जगह बड़ी नाव की व्यवस्था की जाए ताकि शिक्षक और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।”
नाड़ीगुफा में 2005 में प्राथमिक शाला और 2006 में माध्यमिक शाला की स्वीकृति मिली थी। स्कूल पहले पाता सुकमा में संचालित होता था। पिछले शिक्षा सत्र में स्कूल को नाड़ीगुफा में अतिरिक्त कक्ष बनाकर संचालित किया गया है। अब कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से हो रही है। नाड़ीगुफा में 26 घर हैं और लगभग 130 लोग रहते हैं। बारिश के चार महीने गांव टापू में तब्दील हो जाता है। लोग खाने-पीने का सामान पहले से स्टोर करते हैं। इस दौरान किसी की स्वास्थ्य खराब होने पर अस्पताल ले जाना भी मुश्किल होता है, क्योंकि नदी में तेज बहाव रहता है।
शिक्षकों की चिंता
शिक्षकों का कहना है कि शिक्षा की अलख जगाने के लिए वे रोज अपनी जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचने की कोशिश करते हैं। प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को कई बार नाव की व्यवस्था के लिए पत्र लिखा गया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
(Udaipur Kiran) / मोहन ठाकुर