उत्तरकाशी, 18 अगस्त (Udaipur Kiran) । पांच अगस्त को श्रीकंठ ग्लेशियर के बेस से धराली में हुई तबाही के खोज में नीम और एसडीआरएफ की संयुक्त टीम ग्राउंड जीरो पर उतरकर खीर गंगा में आए मालवा का निरीक्षण किया है। ग्राउंड जीरो से लौट कर आई नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की में शामिल दीप साईं और शिवराज पंवार ने बताया कि खीर गंगा का उद्गम स्थल तक गहन अध्ययन और ड्रोन सर्वे के बाद, चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। श्रीकंठ ग्लेशियर के आसपास कहीं भी कोई ग्लेशियर झील नहीं मिली।
टीम ने धराली तबाही के सारे अफवाह पर विराम लगाते हुए साफ किया है कि 5 अगस्त को धराली में खीर गंगा से आये जल सैलाब न तो बादल फटने से आया न ग्लेशियर फटने से बल्कि श्रीकंठ ग्लेशियर के बेस से भारी भूस्खलन से ये तबाही हुई है। टीम ने बताया कि खीर गंगा में पानी के साथ मलवा काफी ऊंचाई से आया है जो करीब 4800 मी ऊंचाई से बताया जा रहा है। यह श्रीकंठ पर्वत का बेस क्षेत्र है। यह पुराना ग्लेशियर क्षेत्र है। यहां ग्लेशियर डिपॉजिट – मोरेन हैं। तीन स्थानों से यह खिसककर नीचे की तरफ आया और तेजी से बहता हुआ धराली को बहा ले गया।
बता दें कि जिला प्रशासन के निर्देश पर धराली के ऊपर श्रीकंठ पर्वत खीर गंगा का करीब 5000 मी ऊंचाई पर नेहरू पर्वतारोहण संस्थान एवं एसडीआरएफ की सात सदस्य टीम 14 अगस्त को धराली से भूस्खलन स्थल के लिए रवाना हुई थे । अतिदुर्गम रास्ते से होकर करीब 11 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर धराली तबाही का सच ढूंढ निकाला है। गौरतलब है कि नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी पर्वतारोहण, रॉक क्लाइम्बिंग, और ऊँचाई पर ट्रैकिंग जैसे विभिन्न पाठ्यक्रम के साथ -साथ हिमालय में खोज और बचाव कार्यों में महारथ हासिल है।
(Udaipur Kiran) / चिरंजीव सेमवाल
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