कोलकाता, 20 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . अंधकार में जीवन बिताने वाले और अपनी विशिष्ट दृष्टि से संसार को समझने वाले लोगों को समर्पित एक अनोखा प्रयास दक्षिण कोलकाता में देखने को मिल रहा है. टॉलीगंज छात्र संघ की ओर से आयोजित सामुदायिक काली पूजा पंडाल का थीम इस बार है – ‘आलो’ (प्रकाश), जो दृष्टिहीन समुदाय को श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
यह पंडाल उन आवाज़ों की कहानी कहता है जो रोज़ समान अवसर और न्यायपूर्ण व्यवहार के लिए संघर्ष करती हैं, परंतु अक्सर भीड़भरी दुनिया में अनसुनी रह जाती हैं. थीम ‘प्रकाश’ को केवल रोशनी के रूप में नहीं, बल्कि भावना, जागरूकता और सहानुभूति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है.
संस्थान के एक पदाधिकारी ने बताया कि इस पंडाल का उद्देश्य आगंतुकों को यह सोचने पर विवश करना है कि “प्रकाश” का वास्तविक अर्थ क्या है — केवल देखने की क्षमता नहीं, बल्कि महसूस करने और समझने की संवेदना भी. पंडाल के एक भाग में चमकदार रोशनी है, जबकि दूसरा भाग उसी का मृदु प्रतिबिंब है, मानो प्रकाश और छाया एक-दूसरे से संवाद कर रहे हों.
थीम कलाकार बिभास मुखर्जी ने कहा, “मैं चाहता हूं लोग बाहरी रूप से आगे बढ़कर सोचें. देखने की क्षमता ही दुनिया को समझने का एकमात्र तरीका नहीं है.” उन्होंने बताया कि इस विचार की प्रेरणा उन्हें तब मिली जब उन्होंने एक दिन सड़क पार करने में संघर्ष कर रहे एक दृष्टिहीन व्यक्ति की मदद की.
पंडाल समिति ने दृष्टिहीनों के जीवन को नज़दीक से समझने के लिए ‘वॉयस ऑफ वर्ल्ड’ और स्थानीय नेत्रहीन विद्यालयों के साथ काम किया. पूजा समिति के सचिव सुभंकर दे ने बताया, “दृष्टिबाधित समुदाय हमसे दया नहीं, समानता चाहता है. थोड़ी सी सहानुभूति बहुत बड़ा फर्क ला सकती है.”
पंडाल में ब्रेल लूडो और शतरंज बोर्ड, झंकार करते क्रिकेट बॉल, और स्पर्श आधारित पेंटिंग्स जैसी कई रचनात्मक चीज़ें शामिल की गई हैं ताकि आगंतुक दृष्टिहीनों की संवेदनशील दुनिया को महसूस कर सकें.
मुखर्जी ने कहा, “हमने लुई ब्रेल और हेलेन केलर जैसे महान व्यक्तित्वों से प्रेरणा ली है, जिन्होंने अंधत्व और संवाद की परिभाषा बदल दी.”
सुभंकर ने बताया कि “समुदाय के कई लोग पैरालंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं या सफल उद्यमी बने हैं. ब्रेल प्रणाली को समझने से हमें ‘प्रकाश’ का एक अलग अर्थ मिला.”
लगभग चार महीने की तैयारी के बाद यह पंडाल तैयार हुआ है. थीम डिजाइन मुखर्जी ने तैयार किया, जबकि पारंपरिक मूर्ति शिल्पकार प्रशांत पाल ने गढ़ी है. समिति ने पिछले 60 वर्षों से अपने पारंपरिक मूर्तिशिल्प को बनाए रखा है, लेकिन इस बार बदलाव सामाजिक संदेश के रूप में है.
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
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