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हरिद्वार में श्रमिक आंदोलन: कंपनी के वादों पर क्यों भरोसा नहीं?

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हरिद्वार के सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में मंगलवार का दिन गूंज और गहमागहमी से भरा रहा। एंकर कंपनी के सैकड़ों श्रमिकों ने अपने हक की आवाज बुलंद करते हुए फैक्ट्री के मुख्य द्वार पर जोरदार प्रदर्शन किया। उनकी मांगें साफ थीं—वेतन में बढ़ोतरी, स्थायी नौकरी और ठेका प्रथा का खात्मा। यह प्रदर्शन केवल आर्थिक मांगों तक सीमित नहीं था, बल्कि यह मेहनतकशों के आत्मसम्मान और बेहतर भविष्य की उम्मीदों का प्रतीक बन गया। आइए, इस आंदोलन की गहराई में उतरकर समझें कि क्या है इन श्रमिकों की पीड़ा और कंपनी का पक्ष।

सुबह से सुलगता आक्रोश

सूरज की पहली किरण के साथ ही एंकर कंपनी के गेट पर श्रमिकों की भीड़ जमा होने लगी। हाथों में तख्तियां और दिल में हक की आग लिए ये मेहनतकश एकजुट होकर नारे लगा रहे थे। “हमें चाहिए स्थायी नौकरी, ठेका प्रथा बंद करो!” जैसे नारों की गूंज हवा में तैर रही थी। श्रमिकों का कहना था कि वे सालों से न्यूनतम वेतन पर काम कर रहे हैं, जिससे परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया है। ठेका प्रथा ने उनकी जिंदगी को अनिश्चितता के भंवर में डाल दिया है, जहां नौकरी की सुरक्षा और भविष्य की कोई गारंटी नहीं।

रामलाल, एक प्रदर्शनकारी श्रमिक, ने अपनी आपबीती साझा की। “हम रात-दिन मेहनत करते हैं, लेकिन ठेकेदार और प्रबंधन हमारी बात सुनने को तैयार नहीं। हम सिर्फ सम्मानजनक वेतन और स्थायी नौकरी चाहते हैं, ताकि अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर सकें।” उनकी आवाज में दर्द के साथ-साथ दृढ़ संकल्प भी झलक रहा था। श्रमिकों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें जल्द पूरी न हुईं, तो वे और बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

कंपनी का जवाब: वादे या खोखले दावे?

प्रदर्शन की गर्मी के बीच कंपनी की ओर से जवाब आया। पैनासोनिक के प्रवक्ता पेविन ने एक बयान में कहा कि उनकी कंपनी हमेशा कर्मचारियों के हितों को प्राथमिकता देती है। उन्होंने दावा किया कि पिछले कई सालों से श्रमिकों को समय-समय पर वेतन वृद्धि और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता रहा है। इस साल भले ही कोई औपचारिक वेतन वृद्धि की घोषणा न हुई हो, लेकिन कंपनी ने स्वेच्छा से उचित वेतन बढ़ोतरी की पेशकश की है।

प्रवक्ता ने यह भी जोड़ा कि कंपनी संवाद के लिए तैयार है और सभी पक्षों से मिलकर रचनात्मक समाधान निकालने की अपील करती है। लेकिन श्रमिकों का कहना है कि ये वादे अक्सर कागजों तक ही सीमित रहते हैं। “हर बार हमें सुनवाई का भरोसा दिया जाता है, लेकिन हकीकत में कुछ बदलता नहीं,” एक अन्य श्रमिक ने निराशा भरे लहजे में कहा।

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