देहरादून से एक बड़ी खबर सामने आई है, जहां धामी सरकार ने प्रदेश के कई जिलों में पुराने नामों को बदलकर नए नामों की घोषणा की है। इस फैसले ने न सिर्फ लोगों के बीच चर्चा छेड़ दी है, बल्कि सियासी गलियारों में भी हलचल मचा दी है। खासकर रुड़की के सलेमपुर राजपूताना का नाम बदलकर शूरसेन नगर करने पर कांग्रेस ने बीजेपी को जमकर घेरा है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस कदम को लेकर धामी सरकार पर तीखा हमला बोला है। तो आखिर क्या है इस नाम बदलने की कहानी और क्यों हो रहा है इतना बवाल? आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।
सलेमपुर का नाम बदला, उठे सवाल
हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा कि धामी सरकार को नाम बदलने की इतनी जल्दबाजी क्यों है, यह शायद वही बता सकती है। उन्होंने बताया कि सलेमपुर राजपूताना, हरिद्वार जिले के रुड़की के पास एक गांव है, जिसका नाम सलेम सिंह नामक एक प्रतिष्ठित शख्सियत से जुड़ा है।
सलेम सिंह ने बाद में धर्म परिवर्तन कर लिया था, लेकिन उनके योगदान को गांव के हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय सम्मान देते हैं। उनके नाम पर ही इस गांव का नाम सलेमपुर राजपूताना पड़ा। रावत ने सवाल उठाया कि आखिर सरकार को सलेम सिंह से क्या परेशानी थी, जो यह नाम बदल दिया गया? उनका कहना है कि अगर हर उस नाम को बदल दिया जाए, जिसमें मुस्लिम प्रभाव झलकता हो, तो देश के 25 करोड़ मुस्लिम आबादी के बीच क्या संदेश जाएगा?
इतिहास से छेड़छाड़ या सियासी दांव?
यह पहली बार नहीं है जब उत्तराखंड में जगहों के नाम बदलने की बात उठी हो। धामी सरकार ने हरिद्वार, नैनीताल, उधम सिंह नगर और देहरादून जैसे जिलों में करीब 17 जगहों के नाम बदल दिए हैं। मसलन, चांदपुर जैसे गांवों का भी अपना ऐतिहासिक महत्व रहा है, लेकिन अब इनके नाम बदलने की प्रक्रिया ने नई बहस को जन्म दे दिया है। रावत का तर्क है कि हर गांव का नाम उसकी पहचान और इतिहास से जुड़ा होता है। इसे यूं ही बदल देना न सिर्फ परंपराओं से खिलवाड़ है, बल्कि समाज में गलत संदेश भी दे सकता है। उनका कहना है कि सरकार को इस फैसले के सामाजिक प्रभाव पर विचार करना चाहिए था, लेकिन ऐसा लगता है कि यह सियासी फायदे के लिए उठाया गया कदम है।
धामी सरकार का फैसला, जनता की राय क्या?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के इस फैसले के बाद प्रदेश की सियासत गरमा गई है। जहां बीजेपी इसे अपनी नीति और संस्कृति से जोड़कर देख रही है, वहीं विपक्ष इसे वोट बैंक की राजनीति करार दे रहा है। आम लोग भी इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं। कुछ का मानना है कि पुराने नामों में इतिहास और संस्कृति की झलक होती है, जिन्हें बदलना ठीक नहीं, तो कुछ इसे विकास और नई पहचान से जोड़कर देखते हैं। लेकिन सवाल वही है कि क्या नाम बदलने से वाकई कोई बड़ा बदलाव आएगा, या यह सिर्फ सियासी शोर बनकर रह जाएगा?
आगे क्या होगा?
उत्तराखंड में नाम बदलने का यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच यह मुद्दा आने वाले दिनों में और तूल पकड़ सकता है। हरीश रावत ने सरकार से अपील की है कि वह इस फैसले पर दोबारा विचार करे और समाज की भावनाओं को समझे। वहीं, धामी सरकार अपने फैसले पर अडिग दिख रही है।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सियासी जंग किस दिशा में जाती है और जनता इसका जवाब कैसे देती है।देहरादून से एक बड़ी खबर सामने आई है, जहां धामी सरकार ने प्रदेश के कई जिलों में पुराने नामों को बदलकर नए नामों की घोषणा की है। इस फैसले ने न सिर्फ लोगों के बीच चर्चा छेड़ दी है, बल्कि सियासी गलियारों में भी हलचल मचा दी है।
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